असुर
सम्राट रावण के पिता एक ऋषि थे और उसकी माता एक असुर कन्या। उसे एक महापंडित, महाज्ञानी, महान ज्योतिषशात्री और महान शिव भक्त
के तौर पर भी जाना जाता है। रावण के पास शास्त्र, तंत्र-मंत्र, संगीत, ज्योतिष और खगोलविद्या का भी ज्ञान था। पौराणिक कथा के अनुसार रावण अपने
पूर्वजन्म में स्वर्गलोक से संबंध रखता है। लेकिन ऐसा क्या हुआ जो उसे ना सिर्फ
आगामी जन्म में बल्कि आने वाले तीन जन्मों तक असुर के रूप में ही जन्म लेना पड़ा?
सम्राट रावण के पिता एक ऋषि थे और उसकी माता एक असुर कन्या। उसे एक महापंडित, महाज्ञानी, महान ज्योतिषशात्री और महान शिव भक्त
के तौर पर भी जाना जाता है। रावण के पास शास्त्र, तंत्र-मंत्र, संगीत, ज्योतिष और खगोलविद्या का भी ज्ञान था। पौराणिक कथा के अनुसार रावण अपने
पूर्वजन्म में स्वर्गलोक से संबंध रखता है। लेकिन ऐसा क्या हुआ जो उसे ना सिर्फ
आगामी जन्म में बल्कि आने वाले तीन जन्मों तक असुर के रूप में ही जन्म लेना पड़ा?
ये
काल चक्र है इस काल चक्र में मैं आप सब का अभिनन्दन करता हूँ. मै आशा करता हूँ की
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जानते हैं रावण के स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर आने की कहानी.
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जानते हैं रावण के स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर आने की कहानी.
एक
बार ब्रह्मा जी के मानसपुत्र सनक, सनन्दन, सनातन एवं सनतकुमार भगवान विष्णु के
दर्शन हेतु बैकुण्ठधाम पहुँचे। जब वे भगवान विष्णु के द्वार पर पहुँचे
तो जय और विजय नामक दो द्वारपालों ने उन्हें रोककर कहा कि इस समय भगवान विष्णु
विश्राम कर रहे हैं, अतः आप लोग भीतर नहीं जा सकते।
बार ब्रह्मा जी के मानसपुत्र सनक, सनन्दन, सनातन एवं सनतकुमार भगवान विष्णु के
दर्शन हेतु बैकुण्ठधाम पहुँचे। जब वे भगवान विष्णु के द्वार पर पहुँचे
तो जय और विजय नामक दो द्वारपालों ने उन्हें रोककर कहा कि इस समय भगवान विष्णु
विश्राम कर रहे हैं, अतः आप लोग भीतर नहीं जा सकते।
जय
और विजय के द्वारा इस प्रकार से रोके जाने पर ऋषिगणों ने क्रोधित होकर कहा, "अरे मूर्खों! हम भगवान विष्णु के भक्त
हैं और भगवान विष्णु तो अपने भक्तों के लिए सदैव उपलब्ध रहते हैं। तुम दोनों अपनी
कुबुद्धि के कारण हम लोगो को भगवान विष्णु के दर्शन से विमुख रखना चाहते हो। ऐसे
कुबुद्धि वाले विष्णुलोक में रहने के योग्य नहीं है। अतः हम तुम्हें शाप देते हैं
कि तुम दोनों का देवत्व समाप्त हो जाये और तुम दोनों भूलोक में जाकर पापमय योनियों
में जन्म लेकर अपने पाप का फल भोगो।"सनकादिक ऋषियों के इस घोर शाप को सुनकर जय
और विजय भयभीत होकर उनसे क्षमा याचना करने लगे। इसी समय भगवान विष्णु भी वहाँ पर आ
गये। जय और विजय भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे कि वे ऋषियों से अपना शाप
वापस ले लेने का अनुरोध करें।
और विजय के द्वारा इस प्रकार से रोके जाने पर ऋषिगणों ने क्रोधित होकर कहा, "अरे मूर्खों! हम भगवान विष्णु के भक्त
हैं और भगवान विष्णु तो अपने भक्तों के लिए सदैव उपलब्ध रहते हैं। तुम दोनों अपनी
कुबुद्धि के कारण हम लोगो को भगवान विष्णु के दर्शन से विमुख रखना चाहते हो। ऐसे
कुबुद्धि वाले विष्णुलोक में रहने के योग्य नहीं है। अतः हम तुम्हें शाप देते हैं
कि तुम दोनों का देवत्व समाप्त हो जाये और तुम दोनों भूलोक में जाकर पापमय योनियों
में जन्म लेकर अपने पाप का फल भोगो।"सनकादिक ऋषियों के इस घोर शाप को सुनकर जय
और विजय भयभीत होकर उनसे क्षमा याचना करने लगे। इसी समय भगवान विष्णु भी वहाँ पर आ
गये। जय और विजय भगवान विष्णु से प्रार्थना करने लगे कि वे ऋषियों से अपना शाप
वापस ले लेने का अनुरोध करें।
भगवान
विष्णु ने उन दोनों से कहा,
"ऋषियों का शाप
कदापि व्यर्थ नहीं जा सकता। तुम दोनों को भूलोक में जाकर जन्म लेना ही पड़ेगा। अपने
अहंकार का फल भोग लेने के बाद तुम दोनों पुनः मेरे पास वापस आवोगे। तुम दोनों के
पास यहाँ वापस आने के लिए दो विकल्प है, पहला
यह कि यदि तुम दोनों भूलोक में मेरे भक्त बन कर रहोगे तो सात जन्मों के बाद यहाँ
वापस आवोगे और दूसरा यह कि यदि भूलोक में जाकर मुझसे शत्रुता रखोगे तो तीन जन्मों
के बाद तुम दोनों यहाँ वापस आवोगे क्योंकि उन तीनों जन्मों में मैं ही तुम्हारा
संहार करूँगा।"
विष्णु ने उन दोनों से कहा,
"ऋषियों का शाप
कदापि व्यर्थ नहीं जा सकता। तुम दोनों को भूलोक में जाकर जन्म लेना ही पड़ेगा। अपने
अहंकार का फल भोग लेने के बाद तुम दोनों पुनः मेरे पास वापस आवोगे। तुम दोनों के
पास यहाँ वापस आने के लिए दो विकल्प है, पहला
यह कि यदि तुम दोनों भूलोक में मेरे भक्त बन कर रहोगे तो सात जन्मों के बाद यहाँ
वापस आवोगे और दूसरा यह कि यदि भूलोक में जाकर मुझसे शत्रुता रखोगे तो तीन जन्मों
के बाद तुम दोनों यहाँ वापस आवोगे क्योंकि उन तीनों जन्मों में मैं ही तुम्हारा
संहार करूँगा।"
जय
और विजय सात जन्मों तक पृथ्वीलोक में नहीं रहना चाहते थे इसलिए उन्होंने दूसरे
विकल्प को मान लिया। उन्हीं जय और विजय भूलोक में सत् युग
में अपने पहले जन्म में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु, त्रेता युग में अपने दूसरे जन्म में रावण और कुम्भकर्ण तथा द्वापर
में अपने तीसरे जन्म में शिशुपाल और दन्तवक्र बने।
और विजय सात जन्मों तक पृथ्वीलोक में नहीं रहना चाहते थे इसलिए उन्होंने दूसरे
विकल्प को मान लिया। उन्हीं जय और विजय भूलोक में सत् युग
में अपने पहले जन्म में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु, त्रेता युग में अपने दूसरे जन्म में रावण और कुम्भकर्ण तथा द्वापर
में अपने तीसरे जन्म में शिशुपाल और दन्तवक्र बने।
यस्य
कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।
कृत्यं न जानन्ति मन्त्रं वा मन्त्रितं परे।
कृतमेवास्य
जानन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥
जानन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥
भावार्थ
:
:
दूसरे
लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार को कार्य पूरा हो जाने
के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है ।
लोग जिसके कार्य, व्यवहार, गोपनीयता, सलाह और विचार को कार्य पूरा हो जाने
के बाद ही जान पाते हैं, वही व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है ।
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