Wednesday, 27 June 2018

जब रावण को झेलना पड़ा हनुमान जी का महाप्रलयंकारी मुक्का ..... Kaal Chakra



          रावण और हनुमान जी युद्ध
हनुमान हिंदू धर्म में भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त और
भारतीय महाकाव्य रामायण में सबसे महत्वपूर्ण पौराणिक चरित्र हैं। रामचरितमानस में
हनुमान जी को "महावीर" कहा गया है। शास्त्रों में "वीर" शब्द
का उपयोग बहुतो हेतु किया गया है। जैसे भीम
, भीष्म, मेघनाथ, रावण, इत्यादि परंतु
"महावीर" शब्द मात्र हनुमान जी के लिए ही उपयोग होता है।
दोस्तों क्या आपको पता है कि आमतौर पर हनुमान जी युद्ध में
गदा का प्रयोग नहीं करते थे
, अपितु
अपने मुक्के का प्रयोग करते थे। कहा जाता है की हनुमान जी का मुक्का ऐसे था की बड़े
बड़े महारथी एक ही मुक्के मे धरसही हो जाते थे। आज इस विडियो में हम तुलसीदास कृत
रमचरितमांस से हनुमान जी के मुक्के से जुड़ा एक ऐसा  प्रसंग सुनाएँगे जब रावण जैसे महारथी को भी इस
मुक्के का प्रकोप झेलना पड़ा।
ये काल चक्र है...
इस प्रसंग का उल्लेस्ख
तुलसीदास कृत रामचरित मानस मे मिलता है
, बात उस समय की है जब हनुमान जी ने मेगनाद द्वारा छोड़े गए ब्रह्मास्त्र
जैसे अस्त्र का मान रखने के लिए स्वयं को बंदी बना लिया था और उन्हे रावण की सभा
मे ले जया गया। वहाँ रावण के समक्ष हनुमान जी की कई विशेषताओं पर बात हुई जैसे की
हनुमान जी का अपर बल
, उड़ने की शक्ति सूक्ष्म और विराट रूप
धरण करने की शक्ति इत्यादि। पर उस राजसभा मे सबसे ज्यदा प्रसंसा हनुमान जी के
मुक्के की हो रही थी। जब रावण ने हनुमान के मुक्के कि प्रशंसा सुनि तो उसने हनुमान
जी बोला
,  "आपका मुक्का बड़ा ताकतवर है, आओ जरा एक एक मुक्के का एक छोटा सा युद्ध हो जाए।
फिर हनुमानजी ने कहा "ठीक है! पहले आप मारो।"
रावण ने कहा "मै क्यों मारूँ ? पहले आप
मारो"।
हनुमान बोले "आप पहले मारो क्योंकि मेरा मुक्का खाने
के बाद आप मारने के लायक ही नहीं रहोगे"।
यह सुनकर रावण बहुत क्रोधित
हुआ और
हनुमान जी को पूरी शक्ति से एक बहुत
ज़ोर का
मुक्का मारा। इस प्रकरण की पुष्टि रामचरितमानस की यह चौपाई करती है जाम टेक कपि भूमि न गिरा
रावण के प्रभाव से हनुमान जी घुटने टेककर रह गए, पृथ्वी पर गिरे
नहीं
, रावण की
आश्चर्य की सीमा न रही वह हैरानी भरी नजरों से हनुमान जी को देखता ही रह गया।
अब बारी थी महावीर हनुमान जी
की
, क्रोध से भरे हुए
हनुमानजी ने रावण
पर अपने मुक्का का परहार किया। रावण ऐसा गिर
पड़ा जैसे वज्र की मार से पर्वत गिरा हो
और
कुछ समय के लिए मूर्छित हो गया
। रावण की मूर्च्छा भंग
होने पर वह जागा और हनुमानजी के बड़े भारी बल को सराहने लगा
, गोस्वामी तुलसी
दास जी कहते हैं कि "मुरुछा गै बहोरि सो जागा। कपि बल बिपुल सराहन लागा
"अहंकारी
रावण किसी की प्रशंसा नहीं करता पर मजबूरन हनुमान जी की प्रशसा कर रहा है।
इस प्रकार हनुमान जी अपने एक
ही मुक्के से रावण को उसका स्थान बता दिया था।
यस्य कृत्यं न विघ्नन्ति शीतमुष्णं भयं रतिः ।
समृद्धिरसमृद्धिर्वा स वै पण्डित उच्यते ॥
भावार्थ :
जो व्यक्ति सरदी-गरमी, अमीरी-गरीबी, प्रेम-धृणा इत्यादि विषय परिस्थितियों में भी विचलित नहीं
होता और तटस्थ भाव से अपना राजधर्म निभाता है
, वही सच्चा ज्ञानी है ।
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