दो
माताओं की गर्भ से आधा-आधा जन्मा था यह योद्धा
माताओं की गर्भ से आधा-आधा जन्मा था यह योद्धा
महाभारत खूबसूरत घटनाओं के संकलन के रूप में प्रस्तुत एक ऐसा ग्रंथ है जो
मनुष्य को अपने दायित्वों,
मर्यादाओं और पारिवारिक
संबंधों का बोध कराते हुए अपने लालच और इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सिखाता है। महाभारत की कहानी
कौरव-पांडव युद्ध से संबंधित तो है, लेकिन उस युद्ध को आधार
देने वाले पात्र और विभिन्न योद्धाओं का जिक्र भी अनिवार्य है। आज हम बात करने जा रहे हैं महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश
जरासंध की। मगध पर शासन करने वाला प्राचीनतम ज्ञात राजवंश वृहद्रथ-वंश है, जरासंध इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था, जो बृहद्रथ का पुत्र था। जरासंध अत्यन्त पराक्रमी एवं
साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है कि उसने काशी, कोशल, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, सौबिर, मद्र, काश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त किया। इसी कारण
पुराणों में जरासंध को महाबाहु, महाबली
और देवेन्द्र के समान तेज़ वाला कहा गया है। कहा जाता है की जरासंध का जन्म दो
टुकड़ो मे हुआ था आज इस विडियो मे हम आपको जरासंध जन्म की ये रोचक कहानी सुनाएँगे।
मनुष्य को अपने दायित्वों,
मर्यादाओं और पारिवारिक
संबंधों का बोध कराते हुए अपने लालच और इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सिखाता है। महाभारत की कहानी
कौरव-पांडव युद्ध से संबंधित तो है, लेकिन उस युद्ध को आधार
देने वाले पात्र और विभिन्न योद्धाओं का जिक्र भी अनिवार्य है। आज हम बात करने जा रहे हैं महाभारत कालीन मगध राज्य का नरेश
जरासंध की। मगध पर शासन करने वाला प्राचीनतम ज्ञात राजवंश वृहद्रथ-वंश है, जरासंध इस वंश का सबसे प्रतापी शासक था, जो बृहद्रथ का पुत्र था। जरासंध अत्यन्त पराक्रमी एवं
साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। हरिवंश पुराण से ज्ञात होता है कि उसने काशी, कोशल, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, सौबिर, मद्र, काश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त किया। इसी कारण
पुराणों में जरासंध को महाबाहु, महाबली
और देवेन्द्र के समान तेज़ वाला कहा गया है। कहा जाता है की जरासंध का जन्म दो
टुकड़ो मे हुआ था आज इस विडियो मे हम आपको जरासंध जन्म की ये रोचक कहानी सुनाएँगे।
ये काल चक्र है...
ये कहानी है भारत के पूर्वी
भाग में स्थित मगध के राजा बृहद्रथ की, जिसकी दो रानियां थी, लेकिन फिर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो
भाग में स्थित मगध के राजा बृहद्रथ की, जिसकी दो रानियां थी, लेकिन फिर भी उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं हो
पा रहा था। अपनी संतान की
इच्छा पूरी करने के लिए उसने हर उपाय आजमा लिया, लेकिन फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा। पुत्र का न होना किसी भी
राजा के लिए परेशानी की बात होती थी। ऐसी हालत में राजा का साम्राज्य किसी और को
मिल जाता था। किसी ने जरासंध के पिता बृहद्रथ को बताया कि एक पहुंचे हुए साधु शायद
उनकी मदद कर सकते हैं। वह उन साधु के पास पहुंचे। साधु ने राजा बृहद्रथ को मंत्र
पढ़ कर एक फल दिया और कहा - राजन, यह फल
अपनी पत्नी को खिला देना, वह गर्भवती
हो जाएगी।
इच्छा पूरी करने के लिए उसने हर उपाय आजमा लिया, लेकिन फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा। पुत्र का न होना किसी भी
राजा के लिए परेशानी की बात होती थी। ऐसी हालत में राजा का साम्राज्य किसी और को
मिल जाता था। किसी ने जरासंध के पिता बृहद्रथ को बताया कि एक पहुंचे हुए साधु शायद
उनकी मदद कर सकते हैं। वह उन साधु के पास पहुंचे। साधु ने राजा बृहद्रथ को मंत्र
पढ़ कर एक फल दिया और कहा - राजन, यह फल
अपनी पत्नी को खिला देना, वह गर्भवती
हो जाएगी।
राजा बृहद्रथ फल लेकर महल लौट
आये। अब उनकी परेशानी यह थी कि वो अपनी दोनों पत्नियों से बराबर प्यार करते थे।
उन्होंने उन दोनों को इस तरह से रखा था कि कोई भी उपेक्षित महसूस न करे और न ही
कोई अपने को दूसरे से अच्छा समझे। अब राजा समझ नहीं पा रहा थे कि वह यह फल किसे
दें। इन रानियों का जीवन तब तक अधूरा था, जब तक कि वे राजा के लिए एक बेटा पैदा न करें। फिर उन्हें
यह महत्वाकांक्षा भी थी कि उन्हीं का पुत्र आगे चलकर राजा बने। तो फल किसे दिया
जाए,
इसमें सत्ता-संघर्ष और भावना दोनों ही मुद्दे थे। ऐसे में
अपनी उदारता का परिचय देते हुए राजा ने दोनों पत्नियों को आधा-आधा आम देने का
फैसला किया।
आये। अब उनकी परेशानी यह थी कि वो अपनी दोनों पत्नियों से बराबर प्यार करते थे।
उन्होंने उन दोनों को इस तरह से रखा था कि कोई भी उपेक्षित महसूस न करे और न ही
कोई अपने को दूसरे से अच्छा समझे। अब राजा समझ नहीं पा रहा थे कि वह यह फल किसे
दें। इन रानियों का जीवन तब तक अधूरा था, जब तक कि वे राजा के लिए एक बेटा पैदा न करें। फिर उन्हें
यह महत्वाकांक्षा भी थी कि उन्हीं का पुत्र आगे चलकर राजा बने। तो फल किसे दिया
जाए,
इसमें सत्ता-संघर्ष और भावना दोनों ही मुद्दे थे। ऐसे में
अपनी उदारता का परिचय देते हुए राजा ने दोनों पत्नियों को आधा-आधा आम देने का
फैसला किया।
दोनों ही आधा आधा आम खाकर
गर्भवती हो गईं। नौ महीने के बाद दोनों के शरीर से एक बच्चे का आधा-आधा हिस्सा
पैदा हुआ। यह देखकर वे डर गईं और समझीं कि कोई अपशगुन हो गया है। उन्होंने दासियों
को आज्ञा दी कि वे बच्चे के आधे-आधे हिस्सों को दो अलग-अलग कपड़ों में लपेटकर फेंक
आएं। दासियों ने जहां बच्चे के हिस्सों को फेंका था, वहाँ एक जादूगरनी ‘जरा’ की नजर उसपर
पड़ी और उसने अपने जादू से उस बालक के टुकड़ों को जोड़ दिया। जुड़ते ही वह बालक रोने
लगा।
गर्भवती हो गईं। नौ महीने के बाद दोनों के शरीर से एक बच्चे का आधा-आधा हिस्सा
पैदा हुआ। यह देखकर वे डर गईं और समझीं कि कोई अपशगुन हो गया है। उन्होंने दासियों
को आज्ञा दी कि वे बच्चे के आधे-आधे हिस्सों को दो अलग-अलग कपड़ों में लपेटकर फेंक
आएं। दासियों ने जहां बच्चे के हिस्सों को फेंका था, वहाँ एक जादूगरनी ‘जरा’ की नजर उसपर
पड़ी और उसने अपने जादू से उस बालक के टुकड़ों को जोड़ दिया। जुड़ते ही वह बालक रोने
लगा।
बालक की रोने की आवाज सुनकर
दोनों रानियां बाहर निकली और उन्होंने उस बालक को गोद में ले लिया। राजा बृहद्रथ
भी वहां आ गए और उन्होंने उस राक्षसी से उसका परिचय पूछा। राक्षसी ने राजा को सारी
बात सच-सच बता दी। राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया
क्योंकि उसे जरा नाम की राक्षसी ने संधित (जोड़ा) किया था।
दोनों रानियां बाहर निकली और उन्होंने उस बालक को गोद में ले लिया। राजा बृहद्रथ
भी वहां आ गए और उन्होंने उस राक्षसी से उसका परिचय पूछा। राक्षसी ने राजा को सारी
बात सच-सच बता दी। राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया
क्योंकि उसे जरा नाम की राक्षसी ने संधित (जोड़ा) किया था।
कौरवों का साथी होने के नाते
जरासंध महाभारत में खलनायक की तरह ही उल्लेखित है। इतिहास गवाह है कि दुनियाभर के
खलनायक विभक्त और खंडित व्यक्तित्व वाले ही होते हैं, उनका बाहरी रंग-रूप चाहे जैसा हो। जरासंध का अंत भी खंडित
व्यक्तित्व का अंत था। भीम नें उसके शरीर को दो हिस्सों में विभक्त कर मृत्यु
प्रदान की थी।
जरासंध महाभारत में खलनायक की तरह ही उल्लेखित है। इतिहास गवाह है कि दुनियाभर के
खलनायक विभक्त और खंडित व्यक्तित्व वाले ही होते हैं, उनका बाहरी रंग-रूप चाहे जैसा हो। जरासंध का अंत भी खंडित
व्यक्तित्व का अंत था। भीम नें उसके शरीर को दो हिस्सों में विभक्त कर मृत्यु
प्रदान की थी।
अंतकाले च मामेव
स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।
यः प्रयाति स मद्भावं याति
नास्त्यत्र संशयः ॥8.5॥
नास्त्यत्र संशयः ॥8.5॥
भावार्थ :
जो पुरुष अंतकाल में भी मुझको
ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी
संशय नहीं है ।
ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे साक्षात स्वरूप को प्राप्त होता है- इसमें कुछ भी
संशय नहीं है ।
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