वामन अवतार
भगवान् के सभी अवतार सृष्टि संतुलन के लिए हुए हैं। धर्म की
स्थापना और अधर्म का निराकरण उनका प्रमुख उद्देश्य रहा है। इन सभी अवतारों की
लीलाएँ, उनके क्रिया- कलाप, प्रतिपादन, उपदेश, निर्धारण सभी भिन्न- भिन्न हैं। किन्तु लक्ष्य एक ही हैं-
व्यक्ति की परिस्थिति और समाज की परिस्थिति में उत्कृष्टता का अभिवर्धन एवं
निकृष्टता का निवारण। भगवान की लीलाएं भक्तों के हृदय को आनंद की रसधारा में
निमग्र कर देती हैं। दोस्तों आज हम बात करे
रहे हैं भगवान विष्णु के पाँचवे और त्रेता युग के
पहले अवतार वामन की। यह विष्णु के
पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — और वो भी बौने ब्राह्मण के
रूप में। आखिर ऐसा क्या कारण रहा होगा
जिससे भगवान को बौना जन्म लेना पड़ा? इस विडियो मे हम वामन अवतार की सम्पूर्ण कथा का वर्णन करेंगे।
स्थापना और अधर्म का निराकरण उनका प्रमुख उद्देश्य रहा है। इन सभी अवतारों की
लीलाएँ, उनके क्रिया- कलाप, प्रतिपादन, उपदेश, निर्धारण सभी भिन्न- भिन्न हैं। किन्तु लक्ष्य एक ही हैं-
व्यक्ति की परिस्थिति और समाज की परिस्थिति में उत्कृष्टता का अभिवर्धन एवं
निकृष्टता का निवारण। भगवान की लीलाएं भक्तों के हृदय को आनंद की रसधारा में
निमग्र कर देती हैं। दोस्तों आज हम बात करे
रहे हैं भगवान विष्णु के पाँचवे और त्रेता युग के
पहले अवतार वामन की। यह विष्णु के
पहले ऐसे अवतार थे जो मानव रूप में प्रकट हुए — और वो भी बौने ब्राह्मण के
रूप में। आखिर ऐसा क्या कारण रहा होगा
जिससे भगवान को बौना जन्म लेना पड़ा? इस विडियो मे हम वामन अवतार की सम्पूर्ण कथा का वर्णन करेंगे।
ये काल चक्र है...
प्रह्लाद के पुत्र विरोचन से महाबाहु बलि का जन्म हुआ।
दैत्यराज बलि धर्मज्ञों में श्रेष्ठ, सत्यप्रतिज्ञ, जितेन्द्रिय, बलवान, नित्य धर्मपरायण, पवित्र और श्रीहरि के प्रिय भक्त थे। उन्होंने इन्द्र सहित
सम्पूर्ण देवताओं और मरुद्गणों को जीतकर तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था। इस
प्रकार वे समस्त त्रिलोकी पर राज्य करने लगे
थे। अमर-धाम असुर-राजधानी बन चुका था। शुक्राचार्य ने बलि का इन्द्रत्व स्थिर करने
के लिये अश्वमेध यज्ञ कराना प्रारम्भ किया। सौ अश्वमेध करके बलि नियम सम्मत इन्द्र
बन जायँगे। फिर उन्हें कोई भी हटा नहीं सकता है। राजा बलि के इस प्रयास से देवतागन
अत्यन्त त्रस्त हुए और इन्द्र आदि देवता ब्रह्माजी को आगे करके क्षीरसागर के तट पर
गये और सबने मिलकर देवाधिदेव भगवान नारायण की प्रार्थना की... देवताओं के स्तुति
करने पर श्रीहरि ने उन्हें दर्शन दिया तब भगवान विष्णु ने कहा- कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न
होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा।
दैत्यराज बलि धर्मज्ञों में श्रेष्ठ, सत्यप्रतिज्ञ, जितेन्द्रिय, बलवान, नित्य धर्मपरायण, पवित्र और श्रीहरि के प्रिय भक्त थे। उन्होंने इन्द्र सहित
सम्पूर्ण देवताओं और मरुद्गणों को जीतकर तीनों लोकों को अपने अधीन कर लिया था। इस
प्रकार वे समस्त त्रिलोकी पर राज्य करने लगे
थे। अमर-धाम असुर-राजधानी बन चुका था। शुक्राचार्य ने बलि का इन्द्रत्व स्थिर करने
के लिये अश्वमेध यज्ञ कराना प्रारम्भ किया। सौ अश्वमेध करके बलि नियम सम्मत इन्द्र
बन जायँगे। फिर उन्हें कोई भी हटा नहीं सकता है। राजा बलि के इस प्रयास से देवतागन
अत्यन्त त्रस्त हुए और इन्द्र आदि देवता ब्रह्माजी को आगे करके क्षीरसागर के तट पर
गये और सबने मिलकर देवाधिदेव भगवान नारायण की प्रार्थना की... देवताओं के स्तुति
करने पर श्रीहरि ने उन्हें दर्शन दिया तब भगवान विष्णु ने कहा- कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न
होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा।
कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु
ने वामन अवतार लिया, जब बलि महान
यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए भगवान ने बलि के वंश की
प्रशंसा करते हुए प्रह्लाद जैसे भक्त तथा बलि के पिता विरोचन को ब्राह्मïण वत्सल बताते हुए उसे भी उस परम्परा का पालन करने को कहा।
ने वामन अवतार लिया, जब बलि महान
यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए भगवान ने बलि के वंश की
प्रशंसा करते हुए प्रह्लाद जैसे भक्त तथा बलि के पिता विरोचन को ब्राह्मïण वत्सल बताते हुए उसे भी उस परम्परा का पालन करने को कहा।
वामन जी बोले:-
" महाराज! मुझे तीन पग
भूमि दे दीजिये;
भूमि दे दीजिये;
यह सुनकर राजा बलि ने प्रसन्न
होकर विधिपूर्वक भूमिदान का विचार किया। दैत्यराज को ऐसा करते देख उनके पुरोहित
शुक्राचार्य बोले:-" राजन् ! ये साक्षात् परमेश्वर विष्णु हैं। देवताओं की
प्रार्थना से यहाँ पधारे हैं और तुम्हें भर्म में डालकर सारी पृथ्वी हड़प लेना
चाहते हैं।अतः इन महात्मा को पृथ्वी का दान न देना। मेरे कहने से कोई और ही वस्तु
दे दो,
भूमि न दो।"
होकर विधिपूर्वक भूमिदान का विचार किया। दैत्यराज को ऐसा करते देख उनके पुरोहित
शुक्राचार्य बोले:-" राजन् ! ये साक्षात् परमेश्वर विष्णु हैं। देवताओं की
प्रार्थना से यहाँ पधारे हैं और तुम्हें भर्म में डालकर सारी पृथ्वी हड़प लेना
चाहते हैं।अतः इन महात्मा को पृथ्वी का दान न देना। मेरे कहने से कोई और ही वस्तु
दे दो,
भूमि न दो।"
यह सुन राजा बलि हंस पड़े और
गुरु से बोले:-" ब्रह्मन्! मैंने सारा पुण्य भगवान् वासुदेव की प्रसन्नता के
लिये किया है। अतः यदि स्वयं भगवान विष्णु ही यहाँ पधारे हैं , तब तो आज मैं धन्य हो गया। उनके लिये तो आज यह परम सुखमय
जीवन तक दे डालूँ तो भी संकोच न होगा। राजा बलि ने दान का संकल्प कर दिया। विधिपूर्वक
भूमिदान का संकल्प दे, नमस्कार
करके प्रसन्नता से कहा:-" ब्रह्मन्! आज आपको भूमिदान देकर मैं स्वयं को धन्य
एवं कृतकृत्य मानता हूँ। आप अपनी इच्छानुरूप इस पृथ्वी को ग्रहण कीजिये।"
गुरु से बोले:-" ब्रह्मन्! मैंने सारा पुण्य भगवान् वासुदेव की प्रसन्नता के
लिये किया है। अतः यदि स्वयं भगवान विष्णु ही यहाँ पधारे हैं , तब तो आज मैं धन्य हो गया। उनके लिये तो आज यह परम सुखमय
जीवन तक दे डालूँ तो भी संकोच न होगा। राजा बलि ने दान का संकल्प कर दिया। विधिपूर्वक
भूमिदान का संकल्प दे, नमस्कार
करके प्रसन्नता से कहा:-" ब्रह्मन्! आज आपको भूमिदान देकर मैं स्वयं को धन्य
एवं कृतकृत्य मानता हूँ। आप अपनी इच्छानुरूप इस पृथ्वी को ग्रहण कीजिये।"
तब श्रीवामनरूपधारी भगवान
विष्णु बोले:-
विष्णु बोले:-
" राजन्! अब मैं
तुम्हारे सामने ही पृथ्वी को नापता हूँ।"
तुम्हारे सामने ही पृथ्वी को नापता हूँ।"
ऐसा कहकर परमेश्वर ने वामन
ब्रह्मचारी का रूप त्याग दिया और विराट् रूप धारण करके समस्त पर्वत, समुद्र, द्वीप, देवता, असुर
और मनुष्यों सहित इस पचास कोटि योजन की पृथ्वी को एक ही पैर से नाप लिया। सनातन
भगवान् का वह पग सारी पृथ्वी को लाँघकर सौ योजन तक आगे बढ़ गया। तब वामन भगवान् ने
बलि को दिव्यचक्षु प्रदान किया और उन्हें अपने स्वरूप का दर्शन कराया। भगवान् के
विश्वरूप का दर्शन करके दैत्यराज के हर्ष की कोई सीमा रही। तब सर्वेश्वर विष्णु ने
अपने द्वितीय पग को ऊपर की ओर फैलाया। वह नक्षत्र, ग्रह और देवलोक को लाँघता हुआ ब्रह्मलोक के अन्त तक पहुँच
गया।
ब्रह्मचारी का रूप त्याग दिया और विराट् रूप धारण करके समस्त पर्वत, समुद्र, द्वीप, देवता, असुर
और मनुष्यों सहित इस पचास कोटि योजन की पृथ्वी को एक ही पैर से नाप लिया। सनातन
भगवान् का वह पग सारी पृथ्वी को लाँघकर सौ योजन तक आगे बढ़ गया। तब वामन भगवान् ने
बलि को दिव्यचक्षु प्रदान किया और उन्हें अपने स्वरूप का दर्शन कराया। भगवान् के
विश्वरूप का दर्शन करके दैत्यराज के हर्ष की कोई सीमा रही। तब सर्वेश्वर विष्णु ने
अपने द्वितीय पग को ऊपर की ओर फैलाया। वह नक्षत्र, ग्रह और देवलोक को लाँघता हुआ ब्रह्मलोक के अन्त तक पहुँच
गया।
तीसरा पग नापने के लिये कुछ
शेष ही नहीं रह गया था। तब भगवान वामन बोले:-"तृतीय पग कहाँ रखूँ? दैत्यराज!
शेष ही नहीं रह गया था। तब भगवान वामन बोले:-"तृतीय पग कहाँ रखूँ? दैत्यराज!
राजा बलि ने कहा :- इसे मेरे
मस्तक पर रख ले!' बलि ने
मस्तक झुकाया और प्रभु ने वहाँ अपना चरण रखा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक
पहुंच गया। बाली की दानवीरता से प्रसन्न हो कर भगवान विष्णु ने उसे साल मे एक बार
पृथ्वी लोक अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति दे दी।
मस्तक पर रख ले!' बलि ने
मस्तक झुकाया और प्रभु ने वहाँ अपना चरण रखा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक
पहुंच गया। बाली की दानवीरता से प्रसन्न हो कर भगवान विष्णु ने उसे साल मे एक बार
पृथ्वी लोक अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति दे दी।
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की
द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के
अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के अन्य
रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था. इस वर्ष वामन जयंती, 21 सितंबर 2018 को
मनाई जाएगी.
द्वादशी को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रुप में मनाया जाता है. धर्म ग्रंथों के
अनुसार इसी शुभ तिथि को श्रवण नक्षत्र के अभिजित मुहूर्त में श्री विष्णु के अन्य
रुप भगवान वामन का अवतार हुआ था. इस वर्ष वामन जयंती, 21 सितंबर 2018 को
मनाई जाएगी.
शुश्रूषा श्रवणं चैव ग्रहणं धारणां तथा ।
ऊहापोहोऽर्थ विज्ञानं तत्त्वज्ञानं च धीगुणाः॥
भावार्थ :
शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारण, चिंतन, उहापोह, अर्थविज्ञान, और तत्त्वज्ञान – ये बुद्धि के गुण हैं ।
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