Tuesday, 30 January 2018

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में क्या मुख्य अंतर हैं? || ...

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में क्या मुख्य अंतर हैं?



वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक लेखकों और कवियों ने न
केवल भारत भूमि बल्कि विदेशों में भी राम कथा का अपनी भाषा और अपने अंदाज़ में
वर्णन किया है. एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में
300 से ज्यादा रामायण
लिखी और पढ़ी गईं हैं जो हमें राम कथा के कई अनछुए पहलुओं की जानकारी देती हैं.
लेकिन वास्तविकता में श्री राम के चरित्र और गुणों का वर्णन जिन दो मुख्य ग्रन्थों
में किया गया है वो हैं-वाल्मीकि रचित
रामायणऔर तुलसीदास की रामचरितमानस”. यद्यपि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही राम के चरित्र
का वर्णन है परंतु दोनों ही महाकाव्यों के रचने वाले कवियों की वर्णन शैली में
उल्लेखनीय अन्तर है।
कई लोग तुलसीदास
की रामचरित मानस को ही मूल रामायण मानते हैं। आज हम इस विडियो के माध्यम से आपको
ये बताएँगे की दोनों ग्रंथों में मूल रूप से क्या अंतर है
?
ये काल चक्र है....
वाल्मीकि रामायण
हृदय परिवर्तन के बाद दस्यु से ऋषि बन जाने वाले वाल्मीकि ऋषि
ने संस्कृत भाषा में एक महाकाव्य की रचना की. इस ग्रंथ में 24,000 श्लोकों को 500
सर्ग और 7 कांड में लिखा गया है. एक अनुमान के अनुसार 600 ईसा पूर्व रचे गए इस
महाकाव्य में अयोध्या के राजा राम के चरित्र को आधार बनाकर विभिन्न भावनाओं और
शिक्षाओं को बहुत सरल तरीके से समझाया गया है.
राजा राम का चरित्र बाल्मीकी ने एक साधारण मानव के रूप में
चित्रित किया है जो बाल रूप से लेकर राजा बनकर न्यायप्रिय तरीके से राज करके अपनी
प्रजा के हित के लिए किसी भी निर्णय को लेने में हिचकते नहीं हैं. उनके द्वारा
किये गए कामों में कहीं भी किसी दैवीय शक्ति का प्रयोग दिखाई नहीं देता है.
वाल्मीकि ने सम्पूर्ण महाकाव्य में राम को एक साधारण पुत्र, भाई और पति के
रूप में ही चित्रित किया है. एक साधारण मानव जिसे अपने हर काम के लिए अपने मित्रों
और सहयोगियों की आवश्यकता होती है. न केवल राम
, बल्कि इस
महाकाव्य का हरेक पात्र
, चाहे वो भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण या
विभीषण जैसा भाई हो
, उर्मिला, सीता , कैकई और मंदोदरी
जैसी पत्नी हो
, हनुमान जैसा मित्र हो या फिर दशरथ जैसा पिता हो, हर चरित्र को
सशक्त और प्रेरक रूप में प्रस्तुत किया है.
तुलसी की रामचरितमानस
अवधि भाषा में रची गयी रामचरितमानस सोलहवीं शताब्दी में
तुलसीदास द्वारा रची गयी रचना है. बाल्मीकी रामायण को आधार मान कर रची गयी यह रचना
एक भक्त का अपने आराध्य के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है. तुलसीदास जी ने इस
ग्रंथ में राम के चरित्र का निर्मल और विशद चित्रण किया है.
विष्णु के अवतार श्री राम के जीवन चरित्र को सात कांडों के
रूप में दर्शाया गया है इस चरित्र वर्णन में तुलसीदास जी ने हिन्दी भाषा के
अनुप्रास अलंकार का खुलकर उपयोग किया है और इसके अतिरिक्त पूरी कथा में यथानुसार
श्रृंगार
, शांत और वीर रस का भी प्रयोग किया है. इस रचना में राम के
चरित्र को एक महानायक और महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है.
रामायण और रामचरितमानस में क्या अंतर है?
दोनों ग्रन्थों में अंतर मुख्य पात्र के चरित्र चित्रण का
है. रामायण के राम एक सरल साधारण मानव हैं जो हर मानवीय भावना से प्रेरित हैं
, जबकि तुलसी के
राम एक दैवीय शक्ति से युक्त अतिमानव हैं जो स्वयं एक महाशक्ति का रूप हैं. तुलसी
के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और बाल्मीकी के राम मानवीय भावनाओं के संतुलित रूप
हैं. सबसे बड़ा अंतर है दोनों ग्रंथो के रचना आधार का
 है. बाल्मीकी ने
रामायण की रचना ऐतिहासिक घटना पर आधारित ग्रंथ है और तुलसीदास ने वाल्मीकि रामायण
को ही आधार मानकर अपने आदर्श चरित्र
रामको गढ़ा है.
दोस्तों -- अंतर चाहे जो भी हो, राम वाल्मीकि के
साधारण मानव और तुलसी के दैवीय शक्तियों से युक्त मानव
, दोनों ही रूपों
में लोकप्रिय और वंदनीय हैं.


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Tuesday, 16 January 2018

Kaal Chakra || ऋषि दुर्वासा के पीछे क्यों पड़ गया था सुदर्शन चक्र? ||

ऋषि दुर्वासा के पीछे क्यों पड़ गया था सुदर्शन चक्र?



भारत के पौराणिक इतिहास में अनेक ऐसे ऋषियों, मुनियों का जिक्र
है
, जिनके पास अलौकिक
शक्तियां थीं। वह अपनी इसी शक्ति के कारण चाहे तो श्राप देकर सामने वाले को भस्म
कर सकते थे या फिर वरदान के द्वारा किसी का जीवन खुशियों से भर देते थे। यह सब
उन्हें क्रोधित करने व प्रसन्न करने से जुड़ा था।ऐसे ही एक महर्षि थे दुर्वासा ऋषि
, जो अपने क्रोध के
लिए जाने जाते थे। ऋषि दुर्वासा को शिव का अवतार कहा जाता था लेकिन जहां भोले शंकर
को प्रसन्न करना बेहद आसान माना जाता है वहीं ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न करना शायद
सबसे मुश्किल काम था
. ऋषि दुर्वासा के क्रोध से जुड़ी अनेक कहानियां हमारे पौराणिक इतिहास में मौजूद
हैं
, जब किसी के कृत्य या दुस्साहस ने उन्हें इस कदर क्रोधित कर
दिया कि उन्हें अपना आपा खोना पड़ा।लेकिन हर बार नुकसान सामने वाले व्यक्ति को ही
उठाना पड़े ऐसा जरूरी नहीं है
, कभी-कभार आपका क्रोध और अहंकार स्वयं आपके लिए
भी घातक साबित हो जाता है। दुर्वासा ऋषि के साथ भी ऐसा ही हुआ जब उनका क्रोध उनकी
जान के पीछे पड़ गया
.
ये काल चक्र है इस काल चक्र में मैं आप सब का अभिनन्दन करता
हूँ youtube के बेल आइकॉन को बजाना न भूलें हमारे लेटेस्ट अपडेट के लिए
 इक्ष्वांकु वंश के
राजा अंबरीश विष्णु के परम भक्त होने के साथ-साथ बेहद न्यायप्रिय शासक थे। उनके
शासनकाल में प्रजा खुशहाल और संपन्न जीवन व्यतीत कर रही थी। उनके तप से विष्णु इस
कदर प्रसन्न थे कि अपने सुदर्शन चक्र का नियंत्रण अंबरीश के हाथ में सौंप रखा
था।एक बार राजा अंबरीश ने एकादशी का व्रत रखने का निर्णय लिया। यह व्रत इतना
ताकतवर होता है कि देवेंद्र तक इसकी शक्ति से हिल गए। अंबरीश अपना व्रत संपन्न ना
कर पाएं इसके लिए इन्द्र देव ने दुर्वासा ऋषि को उनके पास जाने को कहाव्रत खोलने
का समय जैसे ही नजदीक आया
, दुर्वासा ऋषि भी अंबरीश के महल पहुंच गए।
उन्होंने अंबरीश से कहा कि वे स्नान कर जल्दी ही लौटते हैं
अंबरीश ने सम्मानपूर्वक ऋषि दुर्वासा का बहुत देर इंतजार
किया
, लेकिन लंबी अवधि बीत जाने के बाद भी जब दुर्वासा ऋषि स्नान
से वापस नहीं आए तब अंबरीश ने देवताओं का ध्यान कर उन्हें आहुति दी और कुछ भाग
दुर्वासा के लिए निकाल लिया।व्रत खोलने का समय बीत जाने के बाद दुर्वासा वापस आए।
वह ये देखकर अत्याधिक क्रोध हो उठे कि उनकी अनुपस्थिति में राजा ने अपना व्रत खोल
लिया। क्रोध के आवेश में आकर उन्होंने कृत्या राक्षसी की रचना की और उसे अंबरीश पर
आक्रमण करने का निर्देश दिया।
अपनी जान बचाने के लिए अंबरीश ने सुदर्शन चक्र को प्रहार
करने का आदेश दिया। सुदर्शन चक्र के प्रहार से कृत्या राक्षसी उसी समय मारी गयी। कृत्या
का वध करने के बाद सुदर्शन चक्र ऋषि दुर्वासा का पीछा करने लगा। अपनी जान बचाने के
लिए ऋषि दुर्वासा इधर-उधर भागने लगे लेकिन वह जहां भी जाते सुदर्शन चक्र उनके पीछे
आ जाता था।वह अपनी जान बचाने के लिए इन्द्र के पास पहुंचे। इन्द्र ने अपनी अक्षमता
दर्शाते हुए उन्हें ब्रह्मा के पास भेज दिया। ब्रह्मा ने उन्हें शिव और शिव ने
उन्हें विष्णु के पास जाने को कहा।आखिरकार वे विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु ने
उन्हें कहा कि सुदर्शन चक्र का नियंत्रण अंबरीश के पास है इसलिए उन्हें अंबरीश के
पास ही जाना होगा। हार कर दुर्वासा अंबरीश के पास पहुंचे और सुदर्शन चक्र को रोकने
को कहा।राजा ने ऋषि की प्रार्थना मान ली और आखिरकार सुदर्शन चक्र को रोककर
दुर्वासा ऋषि की जान बचाई।
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