योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते”अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते
हैं। राम के चरित्र में भारत
की संस्कृति के अनुरूप पारिवारिक और सामाजिक जीवन के उच्चतम आदर्श पाए जाते हैं। उनमें
व्यक्तित्वविकास,लोकहित तथा सुव्यवस्थित
राज्यसंचालन के सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने दीनों, असहायों, संतों
और धर्मशीलों की रक्षा के लिए जो कार्य किए, आचारव्यवहार
की जो परंपरा क़ायम की, सेवा
और त्याग का जो उदाहरण प्रस्तुत किया तथा न्याय एवं सत्य की प्रतिष्ठा के लिए वे
जिस तरह अनवरत प्रयत्नवान् रहे, जिससे
उन्हें भारत के जन-जन के मानस मंदिर में अत्यंत पवित्र और उच्च आसन पर आसीन कर
दिया है।बात उस समय की है जब महाराज दशरथ ने पुत्र प्राप्ति हेतु
यज्ञ आरंभ करने की ठानी। महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के
साथ छुड़वा दिया गया। महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ
प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया। निश्चित समय
आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ जी तथा ऋंग ऋषि को
लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे। इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया।
सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋचाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की
सुगन्ध से महकने लगा। समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋषियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट कर के सादर विदा करने के
साथ यज्ञ की समाप्ति हुई। राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद खीर को अपने महल में ले
जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप
तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।
जब
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च
स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ
से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था। उस
शिशु को देखने वाले देखते रह जाते थे। इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में
महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ।
चारो पुत्रों के जन्म से पूरी अयोध्या में उत्स्व मनाये जाने लगे| राजा दशरथ के पिता बनने पर देवता भी
अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे| अपने पुत्रों के जन्म की खुशी में राजा
दशरथ ने अपनी प्रजा को बहुत दान – दक्षिणा दी|
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च
स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ
से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण, चुंबकीय आकर्षण वाले, अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था। उस
शिशु को देखने वाले देखते रह जाते थे। इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में
महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ।
चारो पुत्रों के जन्म से पूरी अयोध्या में उत्स्व मनाये जाने लगे| राजा दशरथ के पिता बनने पर देवता भी
अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे| अपने पुत्रों के जन्म की खुशी में राजा
दशरथ ने अपनी प्रजा को बहुत दान – दक्षिणा दी|
पुत्रों
के नामकरण के लिए महर्षि वशिष्ठ को बुलाया गया तथा उन्होंने राजा दशरथ के चारों
पुत्रों के नामकरण संस्कार करते हुए उन्हें राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न नाम दिए|
के नामकरण के लिए महर्षि वशिष्ठ को बुलाया गया तथा उन्होंने राजा दशरथ के चारों
पुत्रों के नामकरण संस्कार करते हुए उन्हें राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न नाम दिए|
भारत
की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त
पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका में शामिल किया गया है। अयोध्या को
अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की
गई है। त्रेतायुग मे भगवान राम का जन्म यही हुआ था।
की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र सप्त
पुरियों में अयोध्या, मथुरा, माया (हरिद्वार), काशी, कांची, अवंतिका (उज्जयिनी) और द्वारका में शामिल किया गया है। अयोध्या को
अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की
गई है। त्रेतायुग मे भगवान राम का जन्म यही हुआ था।