Saturday, 30 November 2019
Friday, 22 November 2019
वैष्णव सुदर्शन चक्र या शिव का त्रिशूल कौन सा अस्त्र है ज्यादा श्रेष्ठ???...
सुदर्शन चक्र vs त्रिशूल
वैदिक
समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य
रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु
परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को
विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना
जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः
विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है।
न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को
परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार
ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। दोस्तों
भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों के पास दो महान अस्त्रों का जिक्र आता है।
सुदर्शन चक्र और त्रिशूल। आज इस विडियो हम इनहि दो अस्त्रों की तुलना करेंगे और ये
जानने का प्रयास करेंगे की कौन किससे बेहतर है।
समय से ही विष्णु सम्पूर्ण विश्व की सर्वोच्च शक्ति तथा नियन्ता के रूप में मान्य
रहे हैं। हिन्दू धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में बहुमान्य पुराणानुसार विष्णु
परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को
विश्व का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना
जाता है। ब्रह्मा को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव को संहारक माना गया है। मूलतः
विष्णु और शिव तथा ब्रह्मा भी एक ही हैं यह मान्यता भी बहुशः स्वीकृत रही है।
न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को
परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार
ग्रहण करनेवाले के रूप में विष्णु मान्य रहे हैं। दोस्तों
भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों के पास दो महान अस्त्रों का जिक्र आता है।
सुदर्शन चक्र और त्रिशूल। आज इस विडियो हम इनहि दो अस्त्रों की तुलना करेंगे और ये
जानने का प्रयास करेंगे की कौन किससे बेहतर है।
ये काल चक्र है
भगवान
विष्णु जगन्नाथ के पास जाकर एक हजार वर्ष तक पैर के अंगूठे पर खड़े रह कर परब्रह्म
की उपासना करते रहे। भगवान विष्णु की इस प्रकार कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान
शिव ने उन्हें 'सुदर्शन चक्र' प्रदान किया। उन्होंने सुदर्शन चक्र को
देते हुए भगवान विष्णु से कहा- "देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह
अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश
करने वाला है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियाँ, ऋतुएँ, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, , तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के
बारह महीने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर निर्भीक होकर शत्रुओं का संहार करें। तब
भगवान विष्णु ने उस सुदर्शन चक्र से असुर श्रीदामा को युद्ध में परास्त करके मार
डाला। इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से
मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत
सुंदर, तीव्रगामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक
अस्त्र था।
विष्णु जगन्नाथ के पास जाकर एक हजार वर्ष तक पैर के अंगूठे पर खड़े रह कर परब्रह्म
की उपासना करते रहे। भगवान विष्णु की इस प्रकार कठोर साधना से प्रसन्न होकर भगवान
शिव ने उन्हें 'सुदर्शन चक्र' प्रदान किया। उन्होंने सुदर्शन चक्र को
देते हुए भगवान विष्णु से कहा- "देवेश! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह
अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश
करने वाला है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियाँ, ऋतुएँ, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, , तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के
बारह महीने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर निर्भीक होकर शत्रुओं का संहार करें। तब
भगवान विष्णु ने उस सुदर्शन चक्र से असुर श्रीदामा को युद्ध में परास्त करके मार
डाला। इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से
मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत
सुंदर, तीव्रगामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक
अस्त्र था।
त्रिशूल
त्रिशूल
को हिंदू धर्म में आस्था का प्रतीक भी माना जाता है| यह भगवान शिव का अस्त्र है जब वे कहीं
जाते हैं तो त्रिशूल को अपने पास ही रखते हैं. इस हथियार का इस्तेमाल महाभारत और
रामायण दोनों काल में किया गया था | इस अस्त्र का इस्तेमाल करके भगवान शिव
ने अपने पुत्र श्री गणेश का सर भी धड़ से अलग किया था. भाले की तरह दिखने वाले
त्रिशूल में आगे की और तीन तेज धार वाले चाकू लगे होते हैं. आपने देखा होगा जहां
कहीं भी शिवजी का मंदिर होता है वहां पर त्रिशूल अवश्य लगा होता है| महादेव का त्रिशूल प्रकृति के तीन
प्रारूप- आविष्कार, रखरखाव और तबाही को भी दर्शाता है. तीनों काल- भूत,वर्तमान और भविष्य भी इस त्रिशूल के
अंदर समाते हैं. सिर्फ यही नहीं, त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी रूप त्रिशूल में देखा
जा सकता है.
को हिंदू धर्म में आस्था का प्रतीक भी माना जाता है| यह भगवान शिव का अस्त्र है जब वे कहीं
जाते हैं तो त्रिशूल को अपने पास ही रखते हैं. इस हथियार का इस्तेमाल महाभारत और
रामायण दोनों काल में किया गया था | इस अस्त्र का इस्तेमाल करके भगवान शिव
ने अपने पुत्र श्री गणेश का सर भी धड़ से अलग किया था. भाले की तरह दिखने वाले
त्रिशूल में आगे की और तीन तेज धार वाले चाकू लगे होते हैं. आपने देखा होगा जहां
कहीं भी शिवजी का मंदिर होता है वहां पर त्रिशूल अवश्य लगा होता है| महादेव का त्रिशूल प्रकृति के तीन
प्रारूप- आविष्कार, रखरखाव और तबाही को भी दर्शाता है. तीनों काल- भूत,वर्तमान और भविष्य भी इस त्रिशूल के
अंदर समाते हैं. सिर्फ यही नहीं, त्रिमूर्ति- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी रूप त्रिशूल में देखा
जा सकता है.
तो फिर आइये देखते हैं पृथ्वी पर प्रभाव के नजरिए
से इन दोनों मे से कौन सा अस्त्र अधिक श्रेष्ठ है।
से इन दोनों मे से कौन सा अस्त्र अधिक श्रेष्ठ है।
हम सब को पता है की सुदर्शन चक्र को भगवान विष्णु
ने अपने श्री कृष्ण अवतार मे किया था उस वक़्त भगवान कृष्ण ने अनेक रक्षसों का वध
किया। याद दिला दूँ महाभारत युद्ध मे भी एक बार मे समस्त कौरव सेना का नाश करने के
लिए उन्होने सुदर्शन चक्र उठाया था परंतु अर्जुन की प्रार्थना पर उन्होने उस समय
इसे चलाया नहीं था। शिशुपाल जैसे दुराचारी का वध भी श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन
चक्र से ही किया था। माता सती के मृत शरीर को भी भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र के
माध्यम से ही विभाजित किया था जो पृथ्वी पर 51 शक्तिपीठों के रूप मे स्थापित हुए वहीं त्रिसुल के तीन सिरों के कई
अर्थ लगाए जाते हैं: --यह त्रिगुण मई सृष्टि का परिचायक है,--यह तीन गुण सत्व, रज, तम का
परिचायक है,
ने अपने श्री कृष्ण अवतार मे किया था उस वक़्त भगवान कृष्ण ने अनेक रक्षसों का वध
किया। याद दिला दूँ महाभारत युद्ध मे भी एक बार मे समस्त कौरव सेना का नाश करने के
लिए उन्होने सुदर्शन चक्र उठाया था परंतु अर्जुन की प्रार्थना पर उन्होने उस समय
इसे चलाया नहीं था। शिशुपाल जैसे दुराचारी का वध भी श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन
चक्र से ही किया था। माता सती के मृत शरीर को भी भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र के
माध्यम से ही विभाजित किया था जो पृथ्वी पर 51 शक्तिपीठों के रूप मे स्थापित हुए वहीं त्रिसुल के तीन सिरों के कई
अर्थ लगाए जाते हैं: --यह त्रिगुण मई सृष्टि का परिचायक है,--यह तीन गुण सत्व, रज, तम का
परिचायक है,
इनके तीनों के बीच सांमजस्य बनाए बगैर सृष्टि का
संचालन कठिन हैं इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों
में धारण किया। अब क्यूँ की बात श्रीष्टि के संचालन की है इसलिए कहा जा सकता है
की त्रिसुल ही श्रेष्ठ है।
संचालन कठिन हैं इसलिए शिव ने त्रिशूल रूप में इन तीनों गुणों को अपने हाथों
में धारण किया। अब क्यूँ की बात श्रीष्टि के संचालन की है इसलिए कहा जा सकता है
की त्रिसुल ही श्रेष्ठ है।
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