Saturday, 27 November 2021

भगवान शिव और परशुराम जी बीच युद्ध क्यूँ हुआ था ? Bhagwan Shiva vs Parshuram

परशुराम और शिव जी का युद्ध

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:

कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।

अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति परशुराम भी चिरजीवी हैं। भगवान परशुराम तभी तो राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी उनके होने की चर्चा होती है। कल्प के अंत तक वे धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे।

परशुप्रतीक है पराक्रम का। रामपर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं, एक व्याख्या यह है कि परशुमें भगवान शिव समाहित हैं और राममें भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए परशुराम हरिहरस्वरूप हैं।

परंतु पुरानो मे शिव जी और पारसुरम जी के बीच युद्ध का भी वृतांत मिलता है तो आकीर क्यू हुआ था यह युद्ध भगवान शिव ने इस युद्ध के मद्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते थे और इस युद्ध का इस पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ा

परशुराम उन दिनों शिव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. भगवान शिव अपने शिष्य को परखने के लिए परशुराम की समय-समय पर परीक्षा लिया करते थे. एक दिन शिव ने परशुराम की परीक्षा लेने के लिए निति के विरुद्ध कुछ कार्य करने का आदेश दिया. पहले परशुराम को कुछ संकोच हुआ परन्तु फिर उन्होंने भगवान शिव से साफ़ साफ़ कह दिया की वे वह कार्य नहीं करेंगे जो निति के विरुद्ध हो. वह लड़ने को खड़े हो गए और समझाने बुझाने से भी नहीं माने. महादेव शिव से ही भीड़ गए.

भगवान शिव और परशुराम दोनों के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ गया. परशुराम ने पहले बाणों से शिव पर प्रहार किया जो शिव ने अपने त्रिशूल से काट डाले. अंत में अति क्रोधित परशुराम ने अपने फरसे का प्रयोग किया. परशुराम ने महादेव शिव पर उनके ही दिए फरसे से प्रहार कर दिया. क्योकि शिव को अपने अस्त्र का मान रखना था था उन्होंने उस अस्त्र के प्रहार को अपने ऊपर ले लिया. भगवान शिव के मष्तक पर बहुत गहरी चोट लगी. भगवान शिव के एक नाम खण्डपरशु का यही रहस्य है.

भगवान शिव ने परशुराम के फरसे के उस प्रहार का बुरा नहीं माना बल्कि परशुराम को अपने गले से लगा लिया. और कहा अन्याय करने वाला चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, धर्मशील व्यक्ति को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए, यह उसका कर्तव्य है.संसार में अधर्म मिटाने से मिटेगा सहने से नहीं. इसके बाद भगवान शिव ने नैतिक उपदेश देते हुए परशुराम से कहा की केवल धर्म, तप, जप, दान, व्रत, उपवास धर्म के लक्षण नहीं है . अन्याय अधर्म से लड़ना भी धर्म साधना का एक हिस्सा है.

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