Sunday, 2 October 2022

महादेव और भक्षासूर का महाप्रलयंकारी युद्ध Mukteshwar मे हुआ था ? Battle ...

Mukteshwar Nainital

क्या आपको पता है पुरातन काल मे एक ऐसा राक्षस भी था जिसे स्वयं भगवान महादेव भी युद्ध मे परास्त नहीं कर पाये थे जी हाँ एक ऐसा राक्षस जो इतना शक्तिशाली था की सारे देवी देवता उसके भय से काँपते थे ? आज इस विडियो मे हम भगवान महादेव और भक्षासूर के बीच हुए महाभ्यंकर युद्घ की कहानी सुनेंगे और जानेंगे की आखिर क्यू भगवान महादेव भी उसे परास्त नहीं कर पाये ।

ये काल चक्र है...

बात उस समय की है जब भक्षासूर नमक एक राक्षस ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या मे लिन हो गया सारे देवी देवताओं को यह भय सताने लगा की अगर इस राक्षस की तपस्या सफल हो गयी और ब्रह्मा जी इस राक्षस से प्रसन्न हो गए तो क्या होगा ? इस पृथ्वी पर विनाश लीला शुरू हो जाएगी और इसी भय से उन्होने भक्षासूर की तपस्या को रोकने के लिए कई प्र्यतन लेकिन भक्षासूर की तपस्या इतनी कठोर थी की उनके सारे प्र्यतन विफल हो गए और आखिर कर भगवान ब्रह्मा जी उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए।

भक्षासूर के समक्ष आ कर ब्रह्मा जी बोले – वत्स मै तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हुआ मगो क्या वर मांगते हो

भक्षासूर बोला – भगवान मुझे तो अमर होना कृपया मुझे अमरता का वरदान दीजिये

ब्रह्मा जी ने कहा – इस धरती पर जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु तय है इस लिए अमरता जैसी कोई बात अस्तित्व मे ही नही रखती है कुछ और वर मांगो

भक्षासूर ने काफी सोच विचार कर बोला भगवान मुझे ऐसा वर दो जिससे मुझे कोई भी देवी या देवता युद्ध मे परास्त न कर सके।

ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए ।

वरदान पा कर भक्षासूर खुद को तीनों लोको का स्वामी समझने लगा उसके अत्याचार की सीमा बढ़ने लगी चरो ओर हाहाकार मच गया उसने स्वर्ग पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। सारे देवता तब भगवान विष्णु के पास गए उन्होने उन्हे भगवान महादेव के पास जाने की सलाह दी, तब सारे देवता भगवान महादेव के पास पहुंचे।

भगवन महादेव ने देवताओं को आश्वासन दिया की वो अब उस राक्षस से युद्ध करेंगे और उसे परास्त कर देंगे। महादेव उस राक्षस की तलाश में निकल पड़ते हैं, ऋषि मुनियों पर अत्याचार करते हुए भक्षासुर उत्तराखंड के जंगलों में पहुँच गया तभी महादेव वहां प्रकट हुए

सुबह के उगते हुए सूरज की लालिमा के साथ बर्फ की सफेद चादर ओढ़े शानदार हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य।इसके साथ-साथ ऊंचे-ऊंचे देवदार के घने पेड़ों के बीच से गुजरती हुई ठंडी ठंडी बर्फीली हवायें।कठफोड़ा ,नीलकंठ आदि जैसे अनेक पक्षियों का सुबह-सुबह का मधुर कलरव। अगर आप भी मुक्तेश्वर घूमने आना चाहते हैं तो हम आपको रेकमेंड करना चाहते हैं Tree House रिसोर्ट मुक्तेश्वर यह एक eco फ्रेंडली रिसोर्ट है जिस के कंस्ट्रक्शन में पेड़ों को न काटना पड़े उस के लिए पेड़ों को ही कमरे में से निकल दिय यहाँ हर कमरे में एक जिन्दा पेड़ है जिसकी खूबसूरती देखने लायक है यहाँ से नंदा देवी, त्रिशूल पचचूली जैसी हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं दिखती है और हर तरफ silver oak के जंगल हैं हर पर्यटक को कम्प्लीमेंट्री नेचर ट्रैकिंग भी कराते हैं।  

अब अपनी कहानी पर वापिस आते हैं

महादेव ने भक्षासुर से कहा अरे मुर्ख तू क्यों इन लोगों पर इतना अत्याचार कर रहा है अगर तू इतना ही शक्तिशाली है तो मुझसे युद्ध कर। भक्षासुर तत्काल युद्ध के लिए सुसज्जित हो गय।  भगवन महादेव और भक्षासुर के बिच भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। दोनों तरह से भीषण अस्त्रों का प्रयोग शुरू हो गया भक्षासुर ने महादेव पर अपने दिव्यास्त्रों का प्रयोग शुरू कर दिया महादेव ने उन अस्त्रों का प्रतिउत्तर दिया और भक्षासुर के सरे दिव्यास्त्रों को विफल कर दिया। महादेव ने भी भक्षासुर पर अनेक अस्त्रों से प्रहार किया लेकिन भक्षासुर पर वरदान के कारण उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था युद्ध का कोई अंत नहीं दिख रहा था सारी पृथ्वी युद्ध के कारण विनाश की ओर बढ़ रही थ।

तब महादेव ने भक्षासुर से कहा -- भक्षासुर मै तेरे युद्ध कौशल से प्रसन्न हूँ बता क्या वर मांगता है

भक्षासुर ने कहा - भगवन आपसे युद्ध कर के मै धन्य हो गया मुझे अब कोई इच्छा नहीं है मुझे अपने चरणों में मुक्ति दीजिये प्रभु।

भगवन महादेव ने भक्षासुर को मुक्ति प्रदान की और तब से ही वो जगह मुक्तेश्वर धाम ने नाम से प्रशिद्ध हो गय।  भक्षासुर को मुक्ति देने के बाद भगवन महादेव ने उसी जगह तपस्या में लीन हो गए कुछ समय पश्चात् वहां से गुरु गोरखनाथ गुजर रहे थे

गुरु गोरखनाथ के मार्ग में ही भगवन महादेव तपस्या में लीन थे उन्होंने सोचा की कही भगवन का ध्यान भांग न हो जाये इसीलिए उन्होंने वही एक पत्थर पर रास्ता बनाने के लिए अपने फरसे से प्रहार किया और एक छिद्र का निर्माण हो गया उस प्रहार से भगवन की तपस्या भांग हो गयी भगवन महादेव क्रोधित हो गए तब गुरु गोरखनाथ ने भगवन को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति की भगवन ne उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया की जो भी निःसंतान स्त्री शिवरात्रि के दिन इस छिद्र के बिच से निकल जाएगी उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होगी आज भी ये छिद्र मुक्तेश्वर धाम में मौजूद है  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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