Saturday, 14 October 2017

रानी पद्मिनी / पद्मावती का इतिहास Real Story Of Rani Padmini (Padmavati...

           
रानी पद्मावती का इतिहास




यदि
किसी
देश को
सदैव पराधीन बनाये रखना हो
, तो सबसे अच्छा उपाय यह है कि उस देश का इतिहास ही नष्ट कर दिया जाय और
अगर
कोई अवनत
राष्ट्र अपनी उन्नति करना
चाहता है, तो
उसे सबसे पहले अपने इतिहास
के निर्माण की आवश्यकता है। प्राचीन भारत
की सभ्यता
, संस्कृति तथा शासन कला का अध्ययन करने
के पूर्व इतिहास की उन सामग्रियों का अध्ययन करना अत्यावश्यक है जिनके द्वारा हमें
प्राचीन भारत के इतिहास का ज्ञान होता है। भारत के प्राचीन साहित्य तथा दर्शन के
संबंध में जानकारी के अनेक साधन उपलब्ध
तो हैं, परन्तु भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी के साधन संतोषप्रद नहीं
है। उनकी न्यूनता
के कारण अति प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं शासन का क्रमवद्ध इतिहास नहीं
मिलता है। 13वीं सदी की पराजयों के बाद भी किस तरह राजपूतों और दक्षिण भारत के
क्षत्रियोँ ने अपने धर्म को बचाए रखा और 14वीं-15वीं सदी में कितने संघर्षो के बाद
वापसी कर मुस्लिम सल्तनत को उखाड़ कर उत्तर और दक्षिण भारत में सफलतापूर्वक हिन्दू
राज्य बनाए गए
, इनके
बारे में कहीँ
कम ही बताया जाता। आज हम एक ऐसे ही घटना के बारे मे
बताने जा रहे हैं जिसके बारे मे कई तरह की अफवाह हम सब के बीच परचलित है। ये कहानी
है चित्तोड़ की महारानी पद्मावती
, राजा रत्न सिंह, उसी राज्य के अत्यंत पराक्रमी और साहसी सेनापति गौरा बादल के बलिदान की।
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मैं आप सब का
अभिनंदन करता हूँ मै आशा करता हूँ की आप इस विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस
चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करेंगे और यूट्यूब के
bell icon को
बजाना  ना भूलें हमारे
latest
update के लिए।
रानी पद्मावती ने अपना बचपन अपने पिता गंधर्वसेन और
माता चम्पावती के साथ सिंहाला में व्यतीत किया था। बाद मे रानी पद्मावती का विवाह
चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह से हुआ और वो चित्तौड़ की महारानी हुई। रानी
पद्मावती अत्यंत हीं सुंदर स्त्री थीं। बात उस समय की है जब राजा रावल सिंह ने अपने
एक मुख्य संगीतकार राघव चेतन को अपने महल से निकाल दिया था। उस समय दिल्ली की
गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। अपने अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने
पर राघव चेतन बदला लेने पर आतुर था। उसके जीवन का सिर्फ और सिर्फ एक ही लक्ष्य रह
गया था
, और वह था चित्तौड़ के महाराज रत्न सिंह की मृत्यु। अपने इसी उद्देश के साथ
वह दिल्ली चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को
उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था। वहाँ जा कर
उसने चित्तौड़ की महारानी पद्मावती के सौन्दर्य का बखान करना शुरू कर दिया। जिससे
ख्लिजी बहुत प्रभावित हुआ और रानी पद्मावती पर मोहित हो गया।
कुछ ही दिनों बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ राज्य
पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना लेकर चित्तौड़ राज्य की ओर चल
दिया। अलाउद्दीन खिलजी की सेना चित्तौड़ तक पहुँच तो गयी पर चित्तौड़ के किले की
अभेद्य सुरक्षा देख कर अलाउद्दीन खिलजी की पूरी सेना हैरान रह गयी। बहुत प्रयासो
के बावजूद वो किले को भेदने मे असफल रहते हैं। उन्होने वहीं किले के आस पास अपने
पड़ाव डाल लिए और चित्तौड़ राज्य के किले की सुरक्षा भेदने का उपाय ढूँढने लगे। अंत
मे उन्होने एक योजना बनाई और योजना के तहत --
अलाउद्दीन
खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को संदेश भेजा
जिसमे
उसने रानी पद्मावती को देखने की इक्षा प्रकट की जिसको पहले तो राजपूत मर्यादा के
विरुद्ध बता कर राजा रत्न सिंह नें ठुकरा दिया। पर बाद मे
अलाउद्दीन खिलजी के आग्रह
और संधि के सुझाव पर राजा ने आईने मे रानी को दिखाने की बात सुविकर कर ली। उनके
सेनापति गौरा राजा की इस बात से सहमत नहीं थे। और राजा से रुष्ट भी हो गए थे। चित्तौड़
के महाराज ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखला दिया
और फिर अलाउद्दीन खिलजी को खिला-पिला कर पूरी महेमान नवाज़ी के साथ चित्तौड़ किले के
सातों दरवाज़े पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने खुद गये। इसी अवसर का लाभ ले कर
कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर
अपनी छावनी में कैद कर दिया। और इसके बाद संदेशा भिजवा दिया की अगर चित्तौड़ के
महाराज को जीवित देखना चाहते हो तो रानी पद्मावती को किले के बाहर ले आया जाए।
जब रानी पद्मावती को इस बात का पता चला तो वो बहुत
व्याकुल हो उठीं
, और राजा से रुष्ट हो चुके सेनापति
गौरा और उनके भतीजे बादल के पास गईं। और उनसे कहा की राज्य खतरे मे है आप ही इस
राज्य की रक्षा कर सकते हैं। राज्य की रानी के आग्रह पर गौरा बादल ने एक बड़ी ही
अद्भुत योजना बनाई। इस योजना के तहत किले के बाहर मौजूद अलाउद्दीन खिलजी तक यह
पैगाम भेजना था की रानी पद्मावती समर्पण करने के लिये तैयार है और पालकी में बैठ
कर किले के बाहर आने को राज़ी है। और फिर पालकी में रानी पद्मावती और उनकी सैकड़ों
दासीयों की जगह नारी भेष में लड़ाके योद्धा भेज कर बाहर मौजूद दिल्ली की सेना पर
आक्रमण कर दिया जाए और इसी अफरातफरी में राजा रावल रत्न सिंह को अलाउद्दीन खिलजी
की कैद से मुक्त करा लिया जाये।
ऐसा ही हुआ अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती पर इतना
मोहित था की उसने इस बात की पड़ताल करना भी ज़रूरी नहीं समझा की सभी पालकियों को
रुकवा कर यह देखे कि उनमें वाकई में दासियाँ ही है। कुछ ही देर में अलाउद्दीन
खिलजी नें रानी पद्मावती की पालकी अलग करवा दी और परदा हटा कर उनका दीदार करना
चाहा। तो उसमें से राजपूत सेनापति गौरा निकले और उन्होने आक्रमण कर दिया। उसी वक्त
चित्तौड़ सिपाहीयों नें भी हमला कर दिया भीषण युद्ध आरंभ हो गया... गौरा और बादल ने
शत्रु सेना मे कोहराम मचा दिया। चित्तौड़ की भूमि पर ऐसा खून खराबा कभी नहीं हुआ
था। वहाँ मची अफरातफरी के बीच बादल नें राजा रावल रत्न सिंह को बंधन मुक्त करा
लिया और उन्हे एक घोड़े पर बैठा कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। चित्तौड़
के सेनापति गौरा और खिलजी के सेनापति जफर के बीच युद्ध अपने चरम पर पहुँच गया था
जफर ने गौरा का सर धड़ से अलग कर दिया इसके बावजूद गौरा के धड़ ने जफर का सर कट
दिया। उस युद्ध मे गौरा और बादल समेत सभी सैनिक शहीद हो गए इसप्रकार उन्होने अपने
राजा की रक्षा की थी।
खिलजी रानी पद्मावती के सौंदर्य पे इतना ज्यदा आकर्षित
था की वो  किले के बाहर इंतज़ार करता रहा।
बाद मे जब किले के अंदर भोजन सामग्री खत्म हो गई तब राजा रावल सिंह ने आर पर की
लड़ाई लड़ने का फैसला किया। और अपने सैनिकों के साथ खिलजी पर आक्रमण कर दिया लड़ते
लड़ते उन्होने युद्ध क्षेत्र मे अपने प्राण तयागे। जब रानी पद्मावती को राजा के
मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होने राजपूतना रीति अनुसार वहाँ की सभी महिलाओं नें
जौहर करने का फैसला लिया।
जौहर की रीति निभाने के लिए नगर के बीच एक बड़ा सा
अग्नि कुंड बनाया गया और रानी पद्मावती और अन्य महिलायेँ एक के बाद एक  उस धधकती चिता में कूद कर अपने प्राणों की बलि
दे दी।
रानी पद्मावती और राजा रत्न सिंह के इस बलिदान की
गाथा पर समस्त राजपूतना गौरवान्वित हो उठा।
दोस्तों रानी पद्मावती के विषय मे हमारे द्वारा दी
गई जानकारी अगर आपको पसंद आई है तो इस विडियो को लाइक जरूर करें। ऐसी और भी नई नई
जंकारियों के लिए हमारे इस
channel को subscribe जरूर करें।  
   

Wednesday, 11 October 2017

ॐ की उत्पत्ति | The origin of OM | Kaal Chakra

             
 ॐ
की उत्पत्ति




ॐ ही ब्रह्म है। ॐ ही यह प्रत्यक्ष जगत् है। ॐ ही
इस जगत की  अनुकृति है। ॐ-ॐ कहते हुए ही
शस्त्र रूप मन्त्र पढ़े जाते हैं। ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण
करता है। ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया जाता है। ॐ कहकर ही ब्रह्म को
प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म ही नहीं
, भारत के अन्य
धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है। बौद्ध-दर्शन में ॐ का प्रयोग जप एवं
उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया
है। श्रीमद्मागवत्
गीता में ॐ के महत्व को कई बार
रेखांकित किया गया है
, आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है
कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है
, वह परम गति प्राप्त करता है। तो फिर इस ॐ की उत्पत्ति कैसे और कब हुई? हमारे जीवन मे ॐ का महत्व क्या है? ॐ का शुद्ध
उच्चारण क्या है
?
ये काल चक्र है इस काल चक्र में मैं आप सब का
अभिनंदन करता हूँ मैं  आशा करता आप इस
विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करेंगे और
youtube के bell icon को बजाना न भूलें हमारे latest अपडेट के लिए। आइए जानते हैं ॐ की महिमा।
ॐ ध्वनि की प्रकृति पर ध्यान दिया जाए तो हमे पता
चलेगा की इसमे तीन अक्षरों का समावेश है अ
,, और म। । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना,
"उ" का अर्थ है उठना, अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् मृत्यु को प्राप्त
करना। "अ" ब्रह्मा का वाचक है
; उच्चारण द्वारा
हृदय में उसका त्याग होता है। "उ" विष्णु का वाचक हैं
; उसका त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का वाचक है ओर उसका
त्याग तालुमध्य में होता है। इस प्रकार से ब्रह्मग्रंथि
, विष्णुग्रंथि
तथा रुद्रग्रंथि का छेदन हो जाता है। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी
सृष्टि का द्योतक है।
आसान भाषा में कहें तो निराकार ईश्वर को एक शब्द
में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है। यह हमारे आपके स्वांस की गति को
नियंत्रित कर सकता है। विज्ञान ने भी ॐ के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया
है। यह धीमी
, सामान्य और पूरी साँस छोड़ने में सहायता करती
है। यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करता
है। ॐ मंत्र आपको सांसरिकता से अलग कर के आपको स्वयं से जोड़ता है। ॐ मंत्र का जाप
हीं वह सीढ़ी है जो आपको समाधि और आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर ले जाएगी।
दोस्तों आज से ही इस मंत्र का जप प्रारम्भ कर
दीजिये आप देखेंगे कैसे आपको हर तरह के चिंता से मुक्ति मिलती है। जप करने से पहले
काल चक्र की तरफ से बतायीं गईं कुछ विशेष बातों पर ध्यान जरूर दीजिएगा।
शांत स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठिए।
आंखें बंद करके शरीर और नसों में ढीला छोड़िए।
कुछ लम्बी सांसें लीजिए।
ॐ मंत्र का जाप करिए और इसके कंपन महसूस कीजिए।
इस प्रकार जप करने से आप स्वयं को परम शांति तक ले
जा सकते हैं।
आज का श्लोका ज्ञान:
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥
भावार्थ :
पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने
वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए ।
दोस्तों हमारे द्वारा ॐ के विषय मे दी गई जानकारी
अगर आपको पसंद आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें
, अगर आपके मन मे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा कोई भी प्रश्न है तो हमे
कमेंट बॉक्स मे बताएं हम उस प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगे। ऐसे ही धार्मिक
videos
देखने के लिए हमारे इस चैनल को subscribe जरूर
करें। धन्यवाद ।    
  What does the Om symbol mean,
What does Om mean in Hindu,
What is the Om chant for,
What
is the meaning of OM in Buddhism,
What is the meaning of
OM in yoga,
What is the symbol of
yoga,
What does the 30
symbol mean,
What is the symbol of
Om and what does it represent,
What is the meaning of
Om tattoo,
Who is Om,
Why is om the sound of
the universe,
What is the Om symbol
stand for,


Sunday, 1 October 2017

भगवान पारसुराम और भीष्म पितामह का महायुद्ध ....

भगवान पारसुराम और भीष्म पितामह का महायुद्ध



महाभारत
में मुख्यतः चंद्रवंशियों के दो परिवार कौरव और पाण्डव के बीच हुए युद्ध का
वृत्तांत है। 100 कौरवों और पाँच पाण्डवों के बीच कुरु साम्राज्य की भूमि के लिए
जो संघर्ष चला
वह अत्यंत भयानक था। परंतु उसी महाभारत काल मे कई
अन्य युद्ध भी लड़े गए जिनका जिक्र अल्प ही मिलता है। आज हम एक ऐसे युद्ध का वर्णन
करने जा रहे हैं जिसके कारण इस समस्त धरती का विनाश होने ही वाला था। ये युद्ध था
भगवान पारसुराम और उनके ही शिष्य भीष्म पितामह के बीच। परंतु ऐसा क्या हुआ था
जिसके कारण गुरु को अपने ही शिष्य से इतना भयानक युद्ध करना पड़ा
? इस युद्ध मे कौन विजयी हुआ? इस युद्ध का इस संसार
पर क्या प्रभाव पड़ा
?
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ मै आशा करता हूँ की आप इस विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस चैनल को
सुब्स्कृबे जरूर करेंगे और
YouTube के bell icon को बजाना न भूलें हमारे latest update के लिए।
बात उस समय की है जब देवी अम्बा को पितामह भीष्म
अपनी पत्नी सुविकर नहीं करते हैं क्यूँ की उन्होने आजीवन ब्रहचर्या का पालन करने
का व्रत लिया हुआ था। तब अम्बा प्रतिशोध वश सहायता मंगेने के लिए भगवान परसुराम के
पास आयीं और बोली भगवान आपके शिष्य भीष्म  ने मेरे साथ अन्याय किया सिर्फ आप ही उसे दंड दे
सकते हैं। इसपर भगवान पारसुरम बोले— ये असंभव है देवी मेरा शिष्य कभी अधर्म नहीं
कर सकता आपसे जरूर कोई भूल हुई है। देवी अम्बा विलाप करते हुए बोली भगवान मेरे साथ
अन्याय हुआ है आप मेरी सह्यता कीजिये वरना मै अभी इसी जगह चीता जला कर उसमे अपने
प्राण त्याग दूँगी।
भगवान परसुराम को उनपर दया आ गई और उन्होने कहा-
जाओ जाकर कर भीष्म से कहो की या तो वो तुम्हें अपनी पत्नी रूप मे सुविकर करे या
फिर मुझसे युद्ध करे।
पीतमह भीष्म को जब इस बात की जानकारी हुई तो वो
बहुत व्याकुल हो गए और अपने गुरु से मिलने चले आए। भीष्म ने भगवान पारसुरम से कहा—भगवान
आप तो जानते है मै ने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया फिर भला मै इस स्त्री से कैसे विवाह
कर लूँ। भगवान परसुराम ने कहा- भीष्म अगर तुम दोषी नही हो तो अपने आप को निर्दोष
साबित करो। मुझसे निडरता से युद्ध करना ही तुम्हारी निर्दोषिता को दर्शाएगा।
पितामह भीष्म ने कहा- मै अपना प्राण त्यागना पसंद
करूंगा परंतु आपसे युद्ध नही कर सकता गुरुदेव।
भगवान पारसुरम ने कहा मैंने इस स्त्री को तुमसे
युद्ध करने का वचन दिया युद्ध तो तुम्हें करना की पड़ेगा और कहते कहते उन्होने एक
ऐसा बाण छोड़ा जिससे आकाश से अग्नि का आगमन होने लगा
, पीतमह भीष
ने अपना धनुष उठाया और उस बाण के प्रतिउतर मे एक ऐसा बाण छोड़ा जिससे उस अग्नि की
ऊर्जा समाप्त हो गई और फूलों की वर्षा होने लगी। बाण विफल होता देख भगवान पारसुरम
को क्रोध आ गया और उन्होने अनेकों अस्त्रों से प्रहार करना आरंभ कर दिया पीतमह
भीष्म उनके सारे प्रहार विफल करते चले गए। हर एक प्रहार विफल होता देख भगवान
पारसुरम का क्रोध अपने चरम सीमा को पर कर गया उन्होने अपने परसू को आह्वान दिया
, पारसू का आह्वान देख पितामह भीष्म ने ब्रह्मास्त्र को आह्वान दे दिया।
चरो ओर हाहाकार मच गया पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा
, प्रलय
जैसी स्टीठी पैदा होने लगी। भगवान पारसुरम ने अपना पारसू भीष्म के ऊपर छोड़ दिया और
भीषम  ने भी ब्रह्मास्त्र का प्रहार कर दिया।
तब इस समस्त संसार को बचाने के लिए भगवान महादेव ने युद्ध क्षेत्र मे प्रवेश लिया
और उन दोनों अस्त्रों को अपने तीसरे नेत्रा मे समा लिया। महादेव ने उन दोनों को
युद्ध खतम करने को कहा दोनों ने ही उनकी बात मन ली। भगवान शिव ने देवी अम्बा को ये
वरदान दिया की
, अलगे जन्म मे यदि किसी नेक कार्य के लिए तुम
भीष्म की मृत्यु की कमाना करोगी तो तुम्हीं उसकी मृत्यु का कारण बनोगी। दोस्तो अगले
जन्म में अंबा ने शिखंडी के रूप में जन्म लिया और भीष्म की मृत्यु का कारण बनी।
आज का श्लोका ज्ञान :

धर्मज्ञो
धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः ।
तत्त्वेभ्यः
सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते।
धर्म
को जाननेवाले
, धर्म
मुताबिक आचरण करनेवाले
, धर्मपरायण, और सब शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करने वाले गुरु कहे जाते
हैं।
दोस्तों
भगवान
पारसुरम और पितामह भीषम से जुड़ी ये रोचक कथा 
अगर
आपको पसंद आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें
, अगर आपके मन मे हमारे हिन्दू देवी देवताओं
से जुड़ा हुआ कोई प्रश्न है तो हमे कमेंट बाक्स में बताए। हम उस प्रश्न का उत्तर
अवश्य देंगे। और ऐसी हीं प्रेरणादायी पौराणिक कहानीयां सुनने के लिए हमारे इस चैनल
को
subscribe जरूर
करें ध्न्यवाद।    
भगवान पारसुराम और भीष्म पितामह का महायुद्ध,
Parashurama bhisham pitamah yudh,भगवान शिव और भगवान राम का युद्ध,शिव राम युद्ध,Shivpuran,Devo
ke dev mahadev,
Parashurama bhisham pitamah fight, Parashurama bhisham
pitamah battle, bhisham pitamah battle Lord Parashurama,Battle Parashurama and bhisham
pitamah,Battle bhisham pitamah And Parashurama,War Of Parashurama and bhisham
pitamah,Mahadev Killed Sons of Ram,Ram Mahadev,
भीष्म और भगवान पारसुराम के बिच महाभयंकर
युद्ध
,lord Parashurama vs. bhisham pitamah, bhisham pitamah Parashurama
Battle, Parashurama Parashurama Yudh, bhisham pitamah Parashurama Fight, Parashurama
Parashurama War,kaal chakra,
श्री राम और महादेव का महायुद्ध ....

कलयुग में नारायणी सेना की वापसी संभव है ? The Untold Story of Krishna’s ...

क्या महाभारत युद्ध में नारायणी सेना का अंत हो गया ... ? या फिर आज भी वो कहीं अस्तित्व में है ... ? नारायणी सेना — वो ...