रानी पद्मावती का इतिहास
यदि
किसी देश को
सदैव पराधीन बनाये रखना हो, तो सबसे अच्छा उपाय यह है कि उस देश का इतिहास ही नष्ट कर दिया जाय और
अगर कोई अवनत
राष्ट्र अपनी उन्नति करना चाहता है, तो
उसे सबसे पहले अपने इतिहास के निर्माण की आवश्यकता है। प्राचीन भारत
की सभ्यता, संस्कृति तथा शासन कला का अध्ययन करने
के पूर्व इतिहास की उन सामग्रियों का अध्ययन करना अत्यावश्यक है जिनके द्वारा हमें
प्राचीन भारत के इतिहास का ज्ञान होता है। भारत के प्राचीन साहित्य तथा दर्शन के
संबंध में जानकारी के अनेक साधन उपलब्ध तो हैं, परन्तु भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी के साधन संतोषप्रद नहीं
है। उनकी न्यूनता के कारण अति प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं शासन का क्रमवद्ध इतिहास नहीं
मिलता है। 13वीं सदी की पराजयों के बाद भी किस तरह राजपूतों और दक्षिण भारत के
क्षत्रियोँ ने अपने धर्म को बचाए रखा और 14वीं-15वीं सदी में कितने संघर्षो के बाद
वापसी कर मुस्लिम सल्तनत को उखाड़ कर उत्तर और दक्षिण भारत में सफलतापूर्वक हिन्दू
राज्य बनाए गए, इनके
बारे में कहीँ कम ही बताया जाता। आज हम एक ऐसे ही घटना के बारे मे
बताने जा रहे हैं जिसके बारे मे कई तरह की अफवाह हम सब के बीच परचलित है। ये कहानी
है चित्तोड़ की महारानी पद्मावती, राजा रत्न सिंह, उसी राज्य के अत्यंत पराक्रमी और साहसी सेनापति गौरा बादल के बलिदान की।
किसी देश को
सदैव पराधीन बनाये रखना हो, तो सबसे अच्छा उपाय यह है कि उस देश का इतिहास ही नष्ट कर दिया जाय और
अगर कोई अवनत
राष्ट्र अपनी उन्नति करना चाहता है, तो
उसे सबसे पहले अपने इतिहास के निर्माण की आवश्यकता है। प्राचीन भारत
की सभ्यता, संस्कृति तथा शासन कला का अध्ययन करने
के पूर्व इतिहास की उन सामग्रियों का अध्ययन करना अत्यावश्यक है जिनके द्वारा हमें
प्राचीन भारत के इतिहास का ज्ञान होता है। भारत के प्राचीन साहित्य तथा दर्शन के
संबंध में जानकारी के अनेक साधन उपलब्ध तो हैं, परन्तु भारत के प्राचीन इतिहास की जानकारी के साधन संतोषप्रद नहीं
है। उनकी न्यूनता के कारण अति प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं शासन का क्रमवद्ध इतिहास नहीं
मिलता है। 13वीं सदी की पराजयों के बाद भी किस तरह राजपूतों और दक्षिण भारत के
क्षत्रियोँ ने अपने धर्म को बचाए रखा और 14वीं-15वीं सदी में कितने संघर्षो के बाद
वापसी कर मुस्लिम सल्तनत को उखाड़ कर उत्तर और दक्षिण भारत में सफलतापूर्वक हिन्दू
राज्य बनाए गए, इनके
बारे में कहीँ कम ही बताया जाता। आज हम एक ऐसे ही घटना के बारे मे
बताने जा रहे हैं जिसके बारे मे कई तरह की अफवाह हम सब के बीच परचलित है। ये कहानी
है चित्तोड़ की महारानी पद्मावती, राजा रत्न सिंह, उसी राज्य के अत्यंत पराक्रमी और साहसी सेनापति गौरा बादल के बलिदान की।
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मैं आप सब का
अभिनंदन करता हूँ मै आशा करता हूँ की आप इस विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस
चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करेंगे और यूट्यूब के bell icon को
बजाना ना भूलें हमारे latest
update के लिए।
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रानी पद्मावती ने अपना बचपन अपने पिता गंधर्वसेन और
माता चम्पावती के साथ सिंहाला में व्यतीत किया था। बाद मे रानी पद्मावती का विवाह
चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह से हुआ और वो चित्तौड़ की महारानी हुई। रानी
पद्मावती अत्यंत हीं सुंदर स्त्री थीं। बात उस समय की है जब राजा रावल सिंह ने अपने
एक मुख्य संगीतकार राघव चेतन को अपने महल से निकाल दिया था। उस समय दिल्ली की
गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। अपने अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने
पर राघव चेतन बदला लेने पर आतुर था। उसके जीवन का सिर्फ और सिर्फ एक ही लक्ष्य रह
गया था, और वह था चित्तौड़ के महाराज रत्न सिंह की मृत्यु। अपने इसी उद्देश के साथ
वह दिल्ली चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को
उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था। वहाँ जा कर
उसने चित्तौड़ की महारानी पद्मावती के सौन्दर्य का बखान करना शुरू कर दिया। जिससे
ख्लिजी बहुत प्रभावित हुआ और रानी पद्मावती पर मोहित हो गया।
माता चम्पावती के साथ सिंहाला में व्यतीत किया था। बाद मे रानी पद्मावती का विवाह
चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह से हुआ और वो चित्तौड़ की महारानी हुई। रानी
पद्मावती अत्यंत हीं सुंदर स्त्री थीं। बात उस समय की है जब राजा रावल सिंह ने अपने
एक मुख्य संगीतकार राघव चेतन को अपने महल से निकाल दिया था। उस समय दिल्ली की
गद्दी पर अलाउद्दीन खिलजी का राज था। अपने अपमान और राज्य से निर्वासित किये जाने
पर राघव चेतन बदला लेने पर आतुर था। उसके जीवन का सिर्फ और सिर्फ एक ही लक्ष्य रह
गया था, और वह था चित्तौड़ के महाराज रत्न सिंह की मृत्यु। अपने इसी उद्देश के साथ
वह दिल्ली चला गया। वहां जाने का उसका मकसद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी को
उकसा कर चित्तौड़ पर आक्रमण करवा कर अपना प्रतिशोध पूरा करने का था। वहाँ जा कर
उसने चित्तौड़ की महारानी पद्मावती के सौन्दर्य का बखान करना शुरू कर दिया। जिससे
ख्लिजी बहुत प्रभावित हुआ और रानी पद्मावती पर मोहित हो गया।
कुछ ही दिनों बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ राज्य
पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना लेकर चित्तौड़ राज्य की ओर चल
दिया। अलाउद्दीन खिलजी की सेना चित्तौड़ तक पहुँच तो गयी पर चित्तौड़ के किले की
अभेद्य सुरक्षा देख कर अलाउद्दीन खिलजी की पूरी सेना हैरान रह गयी। बहुत प्रयासो
के बावजूद वो किले को भेदने मे असफल रहते हैं। उन्होने वहीं किले के आस पास अपने
पड़ाव डाल लिए और चित्तौड़ राज्य के किले की सुरक्षा भेदने का उपाय ढूँढने लगे। अंत
मे उन्होने एक योजना बनाई और योजना के तहत --
पर आक्रमण करने का मन बना लिया और अपनी एक विशाल सेना लेकर चित्तौड़ राज्य की ओर चल
दिया। अलाउद्दीन खिलजी की सेना चित्तौड़ तक पहुँच तो गयी पर चित्तौड़ के किले की
अभेद्य सुरक्षा देख कर अलाउद्दीन खिलजी की पूरी सेना हैरान रह गयी। बहुत प्रयासो
के बावजूद वो किले को भेदने मे असफल रहते हैं। उन्होने वहीं किले के आस पास अपने
पड़ाव डाल लिए और चित्तौड़ राज्य के किले की सुरक्षा भेदने का उपाय ढूँढने लगे। अंत
मे उन्होने एक योजना बनाई और योजना के तहत --
अलाउद्दीन
खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को संदेश भेजा जिसमे
उसने रानी पद्मावती को देखने की इक्षा प्रकट की जिसको पहले तो राजपूत मर्यादा के
विरुद्ध बता कर राजा रत्न सिंह नें ठुकरा दिया। पर बाद मे अलाउद्दीन खिलजी के आग्रह
और संधि के सुझाव पर राजा ने आईने मे रानी को दिखाने की बात सुविकर कर ली। उनके
सेनापति गौरा राजा की इस बात से सहमत नहीं थे। और राजा से रुष्ट भी हो गए थे। चित्तौड़
के महाराज ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखला दिया
और फिर अलाउद्दीन खिलजी को खिला-पिला कर पूरी महेमान नवाज़ी के साथ चित्तौड़ किले के
सातों दरवाज़े पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने खुद गये। इसी अवसर का लाभ ले कर
कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर
अपनी छावनी में कैद कर दिया। और इसके बाद संदेशा भिजवा दिया की अगर चित्तौड़ के
महाराज को जीवित देखना चाहते हो तो रानी पद्मावती को किले के बाहर ले आया जाए।
खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को संदेश भेजा जिसमे
उसने रानी पद्मावती को देखने की इक्षा प्रकट की जिसको पहले तो राजपूत मर्यादा के
विरुद्ध बता कर राजा रत्न सिंह नें ठुकरा दिया। पर बाद मे अलाउद्दीन खिलजी के आग्रह
और संधि के सुझाव पर राजा ने आईने मे रानी को दिखाने की बात सुविकर कर ली। उनके
सेनापति गौरा राजा की इस बात से सहमत नहीं थे। और राजा से रुष्ट भी हो गए थे। चित्तौड़
के महाराज ने अलाउद्दीन खिलजी को आईने में रानी पद्मावती का प्रतिबिंब दिखला दिया
और फिर अलाउद्दीन खिलजी को खिला-पिला कर पूरी महेमान नवाज़ी के साथ चित्तौड़ किले के
सातों दरवाज़े पार करा कर उनकी सेना के पास छोड़ने खुद गये। इसी अवसर का लाभ ले कर
कपटी अलाउद्दीन खिलजी नें राजा रावल रत्न सिंह को बंदी बना लिया और किले के बाहर
अपनी छावनी में कैद कर दिया। और इसके बाद संदेशा भिजवा दिया की अगर चित्तौड़ के
महाराज को जीवित देखना चाहते हो तो रानी पद्मावती को किले के बाहर ले आया जाए।
जब रानी पद्मावती को इस बात का पता चला तो वो बहुत
व्याकुल हो उठीं, और राजा से रुष्ट हो चुके सेनापति
गौरा और उनके भतीजे बादल के पास गईं। और उनसे कहा की राज्य खतरे मे है आप ही इस
राज्य की रक्षा कर सकते हैं। राज्य की रानी के आग्रह पर गौरा बादल ने एक बड़ी ही
अद्भुत योजना बनाई। इस योजना के तहत किले के बाहर मौजूद अलाउद्दीन खिलजी तक यह
पैगाम भेजना था की रानी पद्मावती समर्पण करने के लिये तैयार है और पालकी में बैठ
कर किले के बाहर आने को राज़ी है। और फिर पालकी में रानी पद्मावती और उनकी सैकड़ों
दासीयों की जगह नारी भेष में लड़ाके योद्धा भेज कर बाहर मौजूद दिल्ली की सेना पर
आक्रमण कर दिया जाए और इसी अफरातफरी में राजा रावल रत्न सिंह को अलाउद्दीन खिलजी
की कैद से मुक्त करा लिया जाये।
व्याकुल हो उठीं, और राजा से रुष्ट हो चुके सेनापति
गौरा और उनके भतीजे बादल के पास गईं। और उनसे कहा की राज्य खतरे मे है आप ही इस
राज्य की रक्षा कर सकते हैं। राज्य की रानी के आग्रह पर गौरा बादल ने एक बड़ी ही
अद्भुत योजना बनाई। इस योजना के तहत किले के बाहर मौजूद अलाउद्दीन खिलजी तक यह
पैगाम भेजना था की रानी पद्मावती समर्पण करने के लिये तैयार है और पालकी में बैठ
कर किले के बाहर आने को राज़ी है। और फिर पालकी में रानी पद्मावती और उनकी सैकड़ों
दासीयों की जगह नारी भेष में लड़ाके योद्धा भेज कर बाहर मौजूद दिल्ली की सेना पर
आक्रमण कर दिया जाए और इसी अफरातफरी में राजा रावल रत्न सिंह को अलाउद्दीन खिलजी
की कैद से मुक्त करा लिया जाये।
ऐसा ही हुआ अलाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती पर इतना
मोहित था की उसने इस बात की पड़ताल करना भी ज़रूरी नहीं समझा की सभी पालकियों को
रुकवा कर यह देखे कि उनमें वाकई में दासियाँ ही है। कुछ ही देर में अलाउद्दीन
खिलजी नें रानी पद्मावती की पालकी अलग करवा दी और परदा हटा कर उनका दीदार करना
चाहा। तो उसमें से राजपूत सेनापति गौरा निकले और उन्होने आक्रमण कर दिया। उसी वक्त
चित्तौड़ सिपाहीयों नें भी हमला कर दिया भीषण युद्ध आरंभ हो गया... गौरा और बादल ने
शत्रु सेना मे कोहराम मचा दिया। चित्तौड़ की भूमि पर ऐसा खून खराबा कभी नहीं हुआ
था। वहाँ मची अफरातफरी के बीच बादल नें राजा रावल रत्न सिंह को बंधन मुक्त करा
लिया और उन्हे एक घोड़े पर बैठा कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। चित्तौड़
के सेनापति गौरा और खिलजी के सेनापति जफर के बीच युद्ध अपने चरम पर पहुँच गया था
जफर ने गौरा का सर धड़ से अलग कर दिया इसके बावजूद गौरा के धड़ ने जफर का सर कट
दिया। उस युद्ध मे गौरा और बादल समेत सभी सैनिक शहीद हो गए इसप्रकार उन्होने अपने
राजा की रक्षा की थी।
मोहित था की उसने इस बात की पड़ताल करना भी ज़रूरी नहीं समझा की सभी पालकियों को
रुकवा कर यह देखे कि उनमें वाकई में दासियाँ ही है। कुछ ही देर में अलाउद्दीन
खिलजी नें रानी पद्मावती की पालकी अलग करवा दी और परदा हटा कर उनका दीदार करना
चाहा। तो उसमें से राजपूत सेनापति गौरा निकले और उन्होने आक्रमण कर दिया। उसी वक्त
चित्तौड़ सिपाहीयों नें भी हमला कर दिया भीषण युद्ध आरंभ हो गया... गौरा और बादल ने
शत्रु सेना मे कोहराम मचा दिया। चित्तौड़ की भूमि पर ऐसा खून खराबा कभी नहीं हुआ
था। वहाँ मची अफरातफरी के बीच बादल नें राजा रावल रत्न सिंह को बंधन मुक्त करा
लिया और उन्हे एक घोड़े पर बैठा कर सुरक्षित चित्तौड़ किले के अंदर पहुंचा दिया। चित्तौड़
के सेनापति गौरा और खिलजी के सेनापति जफर के बीच युद्ध अपने चरम पर पहुँच गया था
जफर ने गौरा का सर धड़ से अलग कर दिया इसके बावजूद गौरा के धड़ ने जफर का सर कट
दिया। उस युद्ध मे गौरा और बादल समेत सभी सैनिक शहीद हो गए इसप्रकार उन्होने अपने
राजा की रक्षा की थी।
खिलजी रानी पद्मावती के सौंदर्य पे इतना ज्यदा आकर्षित
था की वो किले के बाहर इंतज़ार करता रहा।
बाद मे जब किले के अंदर भोजन सामग्री खत्म हो गई तब राजा रावल सिंह ने आर पर की
लड़ाई लड़ने का फैसला किया। और अपने सैनिकों के साथ खिलजी पर आक्रमण कर दिया लड़ते
लड़ते उन्होने युद्ध क्षेत्र मे अपने प्राण तयागे। जब रानी पद्मावती को राजा के
मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होने राजपूतना रीति अनुसार वहाँ की सभी महिलाओं नें
जौहर करने का फैसला लिया।
था की वो किले के बाहर इंतज़ार करता रहा।
बाद मे जब किले के अंदर भोजन सामग्री खत्म हो गई तब राजा रावल सिंह ने आर पर की
लड़ाई लड़ने का फैसला किया। और अपने सैनिकों के साथ खिलजी पर आक्रमण कर दिया लड़ते
लड़ते उन्होने युद्ध क्षेत्र मे अपने प्राण तयागे। जब रानी पद्मावती को राजा के
मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होने राजपूतना रीति अनुसार वहाँ की सभी महिलाओं नें
जौहर करने का फैसला लिया।
जौहर की रीति निभाने के लिए नगर के बीच एक बड़ा सा
अग्नि कुंड बनाया गया और रानी पद्मावती और अन्य महिलायेँ एक के बाद एक उस धधकती चिता में कूद कर अपने प्राणों की बलि
दे दी।
अग्नि कुंड बनाया गया और रानी पद्मावती और अन्य महिलायेँ एक के बाद एक उस धधकती चिता में कूद कर अपने प्राणों की बलि
दे दी।
रानी पद्मावती और राजा रत्न सिंह के इस बलिदान की
गाथा पर समस्त राजपूतना गौरवान्वित हो उठा।
गाथा पर समस्त राजपूतना गौरवान्वित हो उठा।
दोस्तों रानी पद्मावती के विषय मे हमारे द्वारा दी
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