Wednesday, 15 November 2017

कलयुग का आगमन ... || Kaal Chakra

        कलयुग
का आगमन




पुराणों
में चार युगों के विषय में बताया गया है
, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। कलियुग को छोड़
दिया जाए तो तीनों ही युगों की अपनी-अपनी
कुछ न कुछ विशेषता रही है। परंतु कलियुग में विशेषता
जैसा तो कुछ भी नहीं दिखता, चारो ओर अहंकार, प्रतिशोध, लालच और आतंक ही दिखाई देता है। कलियुग
को एक श्राप कहा जाता है
,
जिसे हर मौजूदा इंसान भुगत रहा है। हां, तकनीक का अत्याधिक विकास भी इसी युग
में हुआ परंतु क्या केवल एक इसी बात के लिए हम हजारों नकारात्मक
शक्तियों
को नजरअंदाज कर सकते हैं?  शायद ही कोई व्यक्ति इस सवाल का जवाब हांमें देगा। महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने
अपनी पुस्तक
आर्यभट्टियममें इस बात का उल्लेख किया है कि जब वह
23 वर्ष के थे तब कलियुग का 3600वां वर्ष चल रहा था। आंकड़ों के अनुसार आर्यभट्ट का
जन्म 476 ईसवीं में हुआ था। गणना की जाए तो कलियुग का आरंभ 3102 ईसापूर्व हो चुका
था। क्या
आपने कभी इस बात की ओर ध्यान दिया है कि ऐसा क्या कारण रहा होगा जिसके
चलते कलियुग को धरती पर आना पड़ा
? वह ना सिर्फ आया बल्कि यहां आकर यहीं का हो गया,  आज हम इस विडियो मे कलयुग के
धरती पर आगमन की कहानी बताएँगे।
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मैं आप सब का
अभिनंदन करता हूँ। मै आशा करता हूँ की आप हमारे विडियो को पूरा देखेने के बाद
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बात उस समय की है जब धर्मराज युधिष्ठिर अपना पूरा
राजपाट परीक्षित को सौंपकर अन्य पांडवों और द्रौपदी समेत महाप्रयाण हेतु हिमालय की
ओर निकल गए थे। उन दिनों स्वयं धर्म
, बैल का रूप लेकर
गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से सरस्वती नदी के किनारे मिले। गाय रूपी पृथ्वी
के नयन आंसुओं से भरे हुए थे
, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे।
पृथ्वी को दुखी देख धर्म ने उनसे उनकी परेशानी का कारण पूछा। धर्म ने कहा
देवी! क्या तुम इस बात से दुखी हो कि अब तुम्हारे ऊपर बुरी ताकतों का शासन
होगा
?
पृथ्वी बोली - "हे धर्म! तुम सर्वज्ञ होकर भी
मुझ से मेरे दुःख का कारण पूछते हो-- भगवान श्रीकृष्ण के जिन चरणों की सेवा
लक्ष्मी जी करती हैं उनमें कमल
, वज्र, अंकुश,
ध्वजा आदि के चिह्न विराजमान हैं और वे ही चरण मुझ पर पड़ते थे
जिससे मैं सौभाग्यवती थी। अब मेरा सौभाग्य समाप्त हो गया है यही मेरे दुख का कारण
है। धर्म और पृथ्वी आपस में बात कर ही रहे थे कि इतने में असुर रूपी कलियुग वहां आ
पहुंचा और बैल और गाय रूपी धर्म और पृथ्वी को मारने लगा। राजा परीक्षित वहां से
गुजर रहे थे
, जब उन्होंने यह दृश्य अपनी आंखों से देखा तो
कलियुग पर बहुत क्रोधित हुए। अपने धनुष पर बाण रखते हुए राजा परीक्षित ने कलियुग
से कहा
दुष्ट, पापी! तू कौन है?
इन निरीह गाय तथा बैल को क्यों सता रहा है? तू
महान अपराधी है। तेरा अपराध क्षमा योग्य नहीं है
, तेरा वध
निश्चित है।
राजा
परीक्षित का क्रोध देखकर कलियुग कांपने लगा। कलियुग भयभीत होकर अपने राजसी वेष को
उतार कर राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया और क्षमा याचना करने लगा। राजा
परीक्षित ने शरण में आए हुए कलियुग को मारना उचित न समझा और उससे कहा
हे कलियुग! तू मेरे शरण में आ गया है
इसलिए मैं तुझे जीवनदान दे रहा हूं। किन्तु अधर्म
, पाप, झूठ, चोरी, कपट, दरिद्रता आदि अनेक उपद्रवों का मूल कारण केवल तू ही है। तू मेरे
राज्य से अभी निकल जा और फिर कभी लौटकर मत आना
परीक्षित
की बात को सुनकर कलियुग ने कहा कि पूरी पृथ्वी पर आपका निवास है
, पृथ्वी पर ऐसा कोई भी स्थान नहीं है
जहां आपका राज्य ना हो
, ऐसे में मुझे रहने के लिए स्थान प्रदान
करें
कलियुग
के ये कहने पर राजा परीक्षित
ने सोच विचार कर कहा झूठ, द्यूत, परस्त्रीगमन और हिंसा,  इन चार स्थानों में असत्य, मद, काम और क्रोध का निवास होता है। तू इन
चार स्थानों पर रह सकता है। परंतु इस पर कलियुग बोला - "हे राजन
, ये चार स्थान मेरे रहने के लिए प्रयाप्त
नहीं
है, मुझे अन्य जगह भी प्रदान कीजिए।  इस मांग पर राजा परीक्षित ने उसे स्वर्ण के रूप
में पांचवां स्थान प्रदान किया। कलियुग इन स्थानों के मिल जाने से प्रत्यक्षतः तो
वहाँ से चला गया किन्तु कुछ दूर जाने के बाद अदृश्य रूप में वापस आकर राजा
परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में निवास करने लगा।
इस
प्रकार कलयुग का आगमन हुआ।
वृथा वृष्टिः समुद्रेषु, वृथा तृप्तेषु भोजनम् ।
वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपो दिवापि च ॥
समुद्र
के लिए वर्षा होना व्यर्थ है। तृप्त व्यक्ति के लिए भोजन व्यर्थ है। धनी व्यक्ति
को दान देना व्यर्थ है। दिन के समय दीपक जलाना व्यर्थ है।

How many years of kalyug
has passed,
When Kaliyuga is going
to end,
Where Kalki will born,
What are the four
Yugas,
When Kalki Avatar will
happen,
Which Yuga was Krishna
born in,

Wednesday, 1 November 2017

वैज्ञानिक भी हैं हैरान इन मन्दिरों को देख ... || Kaal Chakra

वैज्ञानिक भी हैं हैरान इन मन्दिरों को देख



मन्दिरों का अस्तित्व और उनकी भव्यता गुप्त राजवंश
यानि चौथी से छठी शताब्दी के समय से देखने को मिलती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं
होगा कि गुप्त काल से हिन्दू मंदिरों का महत्त्व और उनके आकार में उल्लेखनीय
विस्तार हुआ और उनकी बनावट पर स्थानीय वास्तुकला का विशेष प्रभाव पड़ा। उत्तरी
भारत में हिन्दू मंदिरों की उत्कृष्टता उड़ीसा तथा उत्तरी मध्यप्रदेश के खजुराहो
में देखने को मिलती है। उड़ीसा के भुवनेश्वर में स्थित लगभग 1000 वर्ष पुराना
लिंगराजा का मन्दिर वास्तुकला का सर्वोतम उदाहरण है। धर्म
, भक्ति, अध्यात्म और साधना का देश भारत, जहां प्राचीन काल से पूजा-स्थल के रूप में मंदिर विशेष महत्व रखते रहे
हैं। यहां कई मंदिर ऐसे हैं
, जहां अविश्वशनिए  चमत्कार भी होते बताए जाते हैं। जहां आस्थावानों
के लिए वे चमत्कार दैवी कृपा हैं
, तो अन्य के लिए आश्चर्य का
विषय। आइए जानते हैं
, भारत के कुछ विशिष्ट मंदिरों के बारे
में
, जिनके रहस्यों को असीम वैज्ञानिक प्रगति के बाद कोई
नहीं जान पाया है।
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
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 बृहदेश्वर
मन्दिर
बृहदेश्वर मन्दिर तमिलनाडु के तंजौर में स्थित एक विशाल
हिंदू मंदिर है जो 11वीं सदी के आरम्भ मे चोल शासक प्रथम राजराज चोल ने बनवाया था।
इसे तमिल भाषा में बृहदीश्वर के नाम से जाना जाता है। बृहदेश्वर मंदिर पूरी तरह से
ग्रेनाइट से नि‍र्मि‍त है। विश्व में यह अपनी तरह का पहला और एकमात्र मंदिर है जो
कि ग्रेनाइट का बना हुआ है। यह अपनी भव्यता
, वास्‍तुशिल्‍प और
केन्द्रीय गुम्बद से लोगों को आकर्षित करता है। इस मंदिर को यूनेस्को ने विश्व
धरोहर घोषित किया है। ग्रेनाइट इस इलाके के आसपास नहीं पाया जाता और यह रहस्य अब
तक रहस्य ही है कि इतनी भारी मात्रा में ग्रेनाइट कहां से लाया गया।
करणी माता मंदिर
इस मंदिर को चूहों वाली माता का मंदिर भी कहा जाता
है
,
यह मंदिर  राजस्थान के
बीकानेर से 30 किलोमीटर दूर देशनोक शहर में स्थित है। करनी माता इस मंदिर की
अधिष्ठात्री देवी हैं
, जिनकी छत्रछाया में चूहों का
साम्राज्य स्थापित है। इन चूहों में अधिकांश काले है
, लेकिन
कुछ सफेद भी है
, जो काफी दुर्लभ हैं। मान्यता है कि जिसे
सफेद चूहा दिख जाता है
, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। आश्चर्यजनक
यह है कि ये चूहे बिना किसी को नुकसान पहुंचाए मंदिर परिसर में दौड़ते-भागते और
खेलते रहते हैं। वे लोगों के शरीर पर कूदफांद करते हैं
, लेकिन
किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। यहां ये इतनी संख्या में हैं कि लोग पांव उठाकर
नहीं चल सकते
, उन्हें पांव घिसट-घिसटकर चलना पड़ता है,
लेकिन मंदिर के बाहर ये कभी नजर ही नहीं आते।
ज्वालामुखी मंदिर
ज्वाला देवी का प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर हिमाचल
प्रदेश के कालीधार पहाड़ी के मध्य स्थित है। यह भी भारत का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ
है
,
जिसके बारे में मान्यता है कि इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी।
माता सती की जीभ के प्रतीक के रुप में यहां धरती के गर्भ से लपलपाती ज्वालाएं
निकलती हैं
, जो नौ रंग की होती हैं। इन नौ रंगों की ज्वालाओं
को देवी शक्ति का नौ रुप माना जाता है। किसी को यह ज्ञात नहीं है कि ये ज्वालाएं
कहां से प्रकट हो रही हैं
? ये रंग परिवर्तन कैसे हो रहा है?
आज भी लोगों को यह पता नहीं चल पाया है यह प्रज्वलित कैसे होती है
और यह कब तक जलती रहेगी
? कहते हैं, कुछ
मुस्लिम शासकों ने ज्वाला को बुझाने के प्रयास किए थे
, लेकिन
वे विफल रहे।
मेहंदीपुर बालाजी मंदिर
राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है मेहंदीपुर का
बालाजी धाम। यह मंदिर भगवान हनुमान के 10 प्रमुख सिद्धपीठों में गिना जाता है।
मान्यता है कि इस स्थान पर हनुमानजी जागृत अवस्था में विराजते हैं। यहां देखा गया
है कि जिन व्यक्तियों के ऊपर भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं का वास होता है
, वे यहां की प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर की जद में आते ही
चीखने-चिल्लाने लगते हैं और फिर वे बुरी आत्माएं
, भूत-पिशाच
आदि पल भर मे ही पीड़ितों के शरीर से बाहर निकल जाती हैं।
ऐसा कैसे और क्यूँ होता है, यह कोई नहीं जानता है? लेकिन लोग सदियों से
भूत-प्रेत और बुरी आत्माओं से मुक्ति के लिए दूर-दूर से यहां आते हैं। इस मंदिर
में रात में रुकना मना है।
आज का श्लोका ज्ञान:
नास्ति विद्यासमो बन्धुर्नास्ति विद्यासमः सुहृत् ।
नास्ति विद्यासमं वित्तं नास्ति विद्यासमं सुखम् ।।
विद्या जैसा बंधु नहीं, विद्या जैसा मित्र नहीं, (और) विद्या जैसा अन्य कोई
धन या सुख नहीं ।
दोस्तों हिन्दू मंदिरों के विषय मे हमारे द्वारा दी
गई जानकारी अगर आपको पसंद आई है तो हमारे इस विडियो को लाइक करें। अगर आपके मन मे
किसी भी हिन्दू मंदिर से जुड़ा कोई भी प्रश्न है तो आप हमे कमेंट बॉक्स मे बता सकते
हैं हम उस प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगे। ऐसी हि नई नई जंकारियों के लिए हमारे इस
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