पांडवों के स्वर्गारोहण
की कहानी
की कहानी
महाभारत में उल्लिखित 18
पर्वों में से एक है महाप्रस्थानिका पर्व, जिसमें पांडवों की महान यात्रा अर्थात मोक्ष की यात्रा का
उल्लेख है। इसके अनुसार समस्त भारत वर्ष की यात्रा करने के बाद मोक्ष हासिल करने
के उद्देश्य से पांडव हिमालय की गोद में चले गए। वहां मेरु पर्वत के पार उन्हें
स्वर्ग का रास्ता मिल गया।लेकिन इस यात्रा के दौरान सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु
हुई और एक-एक कर सारे पांडव मौत के आगोश में समाते गए। हालांकि युधिष्ठिर मात्र एक
ऐसे पांडव थे जिन्हें सशरीर स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति मिली। परंतु यहाँ
सवाल यह उठता है की क्यों सिर्फ युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंच पाए और क्यों सबसे पहले
द्रौपदी की मौत हुई? दोस्तों आज
इस विडियो मे हम इन सभी प्रश्नों के उत्तर महाप्रस्थानिका पर्व के माध्यम से
परस्तुत कर रहे हैं।
पर्वों में से एक है महाप्रस्थानिका पर्व, जिसमें पांडवों की महान यात्रा अर्थात मोक्ष की यात्रा का
उल्लेख है। इसके अनुसार समस्त भारत वर्ष की यात्रा करने के बाद मोक्ष हासिल करने
के उद्देश्य से पांडव हिमालय की गोद में चले गए। वहां मेरु पर्वत के पार उन्हें
स्वर्ग का रास्ता मिल गया।लेकिन इस यात्रा के दौरान सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु
हुई और एक-एक कर सारे पांडव मौत के आगोश में समाते गए। हालांकि युधिष्ठिर मात्र एक
ऐसे पांडव थे जिन्हें सशरीर स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति मिली। परंतु यहाँ
सवाल यह उठता है की क्यों सिर्फ युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंच पाए और क्यों सबसे पहले
द्रौपदी की मौत हुई? दोस्तों आज
इस विडियो मे हम इन सभी प्रश्नों के उत्तर महाप्रस्थानिका पर्व के माध्यम से
परस्तुत कर रहे हैं।
ये काल चक्र है...
बात उस समय की है यदुवंसियों
का साम्राज्य समाप्त हो चुका था उनके नाश की बात जानकर
युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ। महर्षि वेदव्यास की आज्ञा से द्रौपदी सहित पांडवों ने राज-पाठ त्याग कर
परलोक जाने का निश्चय किया। युधिष्ठिर ने युयुत्सु को बुलाकर उसे संपूर्ण राज्य की
देख-भाल का भार सौंप दिया और परीक्षित का राज्याभिषेक कर दिया। युधिष्ठिर ने
सुभद्रा से कहा कि आज से परीक्षित हस्तिनापुर का तथा वज्र जो श्री कृष्ण का पुत्र था इंद्रप्रस्थ का
राजा है। अत: तुम इन दोनों पर समान रूप से स्नेह रखना। इसके बाद पांडवों
ने अपने मामा वसुदेव व श्रीकृष्ण तथा बलराम आदि का विधिवत तर्पण व श्राद्ध किया।
इसके बाद पांडवों व द्रौपदी ने साधुओं के वस्त्र धारण किए और स्वर्ग जाने के लिए
निकल पड़े।
का साम्राज्य समाप्त हो चुका था उनके नाश की बात जानकर
युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ। महर्षि वेदव्यास की आज्ञा से द्रौपदी सहित पांडवों ने राज-पाठ त्याग कर
परलोक जाने का निश्चय किया। युधिष्ठिर ने युयुत्सु को बुलाकर उसे संपूर्ण राज्य की
देख-भाल का भार सौंप दिया और परीक्षित का राज्याभिषेक कर दिया। युधिष्ठिर ने
सुभद्रा से कहा कि आज से परीक्षित हस्तिनापुर का तथा वज्र जो श्री कृष्ण का पुत्र था इंद्रप्रस्थ का
राजा है। अत: तुम इन दोनों पर समान रूप से स्नेह रखना। इसके बाद पांडवों
ने अपने मामा वसुदेव व श्रीकृष्ण तथा बलराम आदि का विधिवत तर्पण व श्राद्ध किया।
इसके बाद पांडवों व द्रौपदी ने साधुओं के वस्त्र धारण किए और स्वर्ग जाने के लिए
निकल पड़े।
पांडवों के साथ-साथ
एक कुत्ता भी चलने लगा। अनेक तीर्थों, नदियों व
समुद्रों की यात्रा करते-करते पांडव आगे बढऩे लगे। पांडव चलते-चलते लालसागर तक आ
गए। अर्जुन ने लोभ वश अपना गांडीव धनुष व अक्षय
तरकशों का त्याग नहीं किया था। तभी वहां अग्निदेव उपस्थित हुए और उन्होंने अर्जुन
से गांडीव धनुष और अक्षय तरकशों का त्याग करने के लिए कहा। अर्जुन ने ऐसा ही किया।
पांडवों ने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने की इच्छा से उत्तर दिशा की ओर यात्रा की। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए। हिमालय लांघ कर
पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू का समुद्र दिखाई पड़ा। इसके बाद उन्होंने मेरु
पर्वत के दर्शन किए। पांचों पांडव, द्रौपदी तथा वह
कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे। तभी द्रौपदी लडख़ड़ाकर गिर पड़ी। द्रौपदी को गिरा
देख भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया। तो फिर क्या
कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी। युधिष्ठिर ने कहा कि- द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को
अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को
देखे बिना ही आगे बढ़ गए। थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। भीमसेन ने सहदेव के गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने
बताया कि सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण
इसे आज गिरना पड़ा है। कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर
ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था। इसलिए आज इसकी यह गति हुई है। थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीमसेन को
बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अर्जुन ने कहा था कि मैं एक ही दिन
में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए। अपने अभिमान के कारण ही
अर्जुन की आज यह हालत हुई है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए। थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए। जब भीम ने युधिष्ठिर से
इसका कारण तो उन्होंने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन
करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा है। यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए।
केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा। युधिष्ठिर कुछ ही
दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ
गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि- मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े
हैं। वे भी हमारे हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वे सभी
पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं। वे शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंचे हैं और आप सशरीर
स्वर्ग में जाएंगे।
एक कुत्ता भी चलने लगा। अनेक तीर्थों, नदियों व
समुद्रों की यात्रा करते-करते पांडव आगे बढऩे लगे। पांडव चलते-चलते लालसागर तक आ
गए। अर्जुन ने लोभ वश अपना गांडीव धनुष व अक्षय
तरकशों का त्याग नहीं किया था। तभी वहां अग्निदेव उपस्थित हुए और उन्होंने अर्जुन
से गांडीव धनुष और अक्षय तरकशों का त्याग करने के लिए कहा। अर्जुन ने ऐसा ही किया।
पांडवों ने पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करने की इच्छा से उत्तर दिशा की ओर यात्रा की। यात्रा करते-करते पांडव हिमालय तक पहुंच गए। हिमालय लांघ कर
पांडव आगे बढ़े तो उन्हें बालू का समुद्र दिखाई पड़ा। इसके बाद उन्होंने मेरु
पर्वत के दर्शन किए। पांचों पांडव, द्रौपदी तथा वह
कुत्ता तेजी से आगे चलने लगे। तभी द्रौपदी लडख़ड़ाकर गिर पड़ी। द्रौपदी को गिरा
देख भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया। तो फिर क्या
कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी। युधिष्ठिर ने कहा कि- द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को
अधिक प्रेम करती थीं। इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को
देखे बिना ही आगे बढ़ गए। थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े। भीमसेन ने सहदेव के गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने
बताया कि सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण
इसे आज गिरना पड़ा है। कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर
ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था। इसलिए आज इसकी यह गति हुई है। थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े। युधिष्ठिर ने भीमसेन को
बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था। अर्जुन ने कहा था कि मैं एक ही दिन
में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा कर नहीं पाए। अपने अभिमान के कारण ही
अर्जुन की आज यह हालत हुई है। ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए। थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए। जब भीम ने युधिष्ठिर से
इसका कारण तो उन्होंने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन
करते थे। इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा है। यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए।
केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा। युधिष्ठिर कुछ ही
दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ
गए। तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि- मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े
हैं। वे भी हमारे हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। तब इंद्र ने कहा कि वे सभी
पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं। वे शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंचे हैं और आप सशरीर
स्वर्ग में जाएंगे।
इंद्र की बात
सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परमभक्त है। इसलिए इसे भी मेरे साथ
स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए, लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया। काफी
देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते
के रूप में यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए (वह कुत्ता वास्तव में यमराज ही
थे)। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए. इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ
में बैठाकर स्वर्ग ले गए। स्वर्ग जाकर युधिष्ठिर ने देखा कि वहां दुर्योधन एक
दिव्य सिंहासन पर बैठा है, अन्य कोई वहां नहीं है। यह देखकर युधिष्ठिर ने
देवताओं से कहा कि मेरे भाई तथा द्रौपदी जिस लोक में गए हैं, मैं भी उसी लोक
में जाना चाहता हूं। मुझे उनसे अधिक उत्तम लोक की कामना नहीं है। तब देवताओं ने
कहा कि यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइए। यह आपको आपके
भाइयों के पास पहुंचा देगा। युधिष्ठिर उस देवदूत के साथ चले गए। देवदूत युधिष्ठिर
को ऐसे मार्ग पर ले गया, जो बहुत खराब था।उस मार्ग पर घोर अंधकार था।
उसके चारों ओर से बदबू आ रही थी, इधर-उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे। लोहे की चोंच
वाले कौए और गीध मंडरा रहे थे। वह असिपत्र नामक नरक था। वहां की दुर्गंध से तंग
आकर युधिष्ठिर ने देवदूत से पूछा कि हमें इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना है और
मेरे भाई कहां हैं? युधिष्ठिर की बात सुनकर देवदूत बोला कि देवताओं
ने कहा था कि जब आप थक जाएं तो आपको लौटा लाऊ। यदि आप थक गए हों तो हम पुन: लौट
चलते हैं। युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया। जब युधिष्ठिर वापस लौटने लगे
तो उन्हें दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी, वे युधिष्ठिर से
कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे। युधिष्ठिर ने जब उनसे उनका परिचय पूछा तो
उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी
के रूप में अपना परिचय दिया। तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा कि तुम पुन:
देवताओं के पास लौट जाओ, मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख
मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा। देवदूत ने यह बात जाकर देवराज
इंद्र को बता दी।युधिष्ठिर को उस स्थान पर अभी कुछ ही समय बीता था कि सभी देवता
वहां आ गए। देवताओं के आते ही वहां सुगंधित हवा चलने लगी, मार्ग पर प्रकाश
छा गया। तब देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि तुमने अश्वत्थामा के मरने की
बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था। इसी के
परिणाम स्वरूप तुम्हें भी छल से ही कुछ देर नरक के दर्शन पड़े। अब तुम मेरे साथ
स्वर्ग चलो। वहां तुम्हारे भाई व अन्य वीर पहले ही पहुंच गए हैं। इस प्रकार युधिष्ठिर अपने भाइयों व अन्य संबंधियों को वहां
देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परमभक्त है। इसलिए इसे भी मेरे साथ
स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए, लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया। काफी
देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते
के रूप में यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए (वह कुत्ता वास्तव में यमराज ही
थे)। युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए. इसके बाद देवराज इंद्र युधिष्ठिर को अपने रथ
में बैठाकर स्वर्ग ले गए। स्वर्ग जाकर युधिष्ठिर ने देखा कि वहां दुर्योधन एक
दिव्य सिंहासन पर बैठा है, अन्य कोई वहां नहीं है। यह देखकर युधिष्ठिर ने
देवताओं से कहा कि मेरे भाई तथा द्रौपदी जिस लोक में गए हैं, मैं भी उसी लोक
में जाना चाहता हूं। मुझे उनसे अधिक उत्तम लोक की कामना नहीं है। तब देवताओं ने
कहा कि यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइए। यह आपको आपके
भाइयों के पास पहुंचा देगा। युधिष्ठिर उस देवदूत के साथ चले गए। देवदूत युधिष्ठिर
को ऐसे मार्ग पर ले गया, जो बहुत खराब था।उस मार्ग पर घोर अंधकार था।
उसके चारों ओर से बदबू आ रही थी, इधर-उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे। लोहे की चोंच
वाले कौए और गीध मंडरा रहे थे। वह असिपत्र नामक नरक था। वहां की दुर्गंध से तंग
आकर युधिष्ठिर ने देवदूत से पूछा कि हमें इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना है और
मेरे भाई कहां हैं? युधिष्ठिर की बात सुनकर देवदूत बोला कि देवताओं
ने कहा था कि जब आप थक जाएं तो आपको लौटा लाऊ। यदि आप थक गए हों तो हम पुन: लौट
चलते हैं। युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया। जब युधिष्ठिर वापस लौटने लगे
तो उन्हें दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी, वे युधिष्ठिर से
कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे। युधिष्ठिर ने जब उनसे उनका परिचय पूछा तो
उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी
के रूप में अपना परिचय दिया। तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा कि तुम पुन:
देवताओं के पास लौट जाओ, मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख
मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा। देवदूत ने यह बात जाकर देवराज
इंद्र को बता दी।युधिष्ठिर को उस स्थान पर अभी कुछ ही समय बीता था कि सभी देवता
वहां आ गए। देवताओं के आते ही वहां सुगंधित हवा चलने लगी, मार्ग पर प्रकाश
छा गया। तब देवराज इंद्र ने युधिष्ठिर को बताया कि तुमने अश्वत्थामा के मरने की
बात कहकर छल से द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का विश्वास दिलाया था। इसी के
परिणाम स्वरूप तुम्हें भी छल से ही कुछ देर नरक के दर्शन पड़े। अब तुम मेरे साथ
स्वर्ग चलो। वहां तुम्हारे भाई व अन्य वीर पहले ही पहुंच गए हैं। इस प्रकार युधिष्ठिर अपने भाइयों व अन्य संबंधियों को वहां
देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
श्लोका :
दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम् ।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय: ॥
मनुष्य जन्म, मुक्ति की इच्छा
तथा महापुरूषों का सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कॄपा पर निर्भर रहते है ।
तथा महापुरूषों का सहवास यह तीन चीजें परमेश्वर की कॄपा पर निर्भर रहते है ।
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