Friday, 28 December 2018

सुयोधन कैसे बना 'दुर्योधन' महाभारत का काला सच... || Kaal Chakra

        सुयोधन कैसे बना 'दुर्योधन'

'दुर्योधन' या 'सुयोधन', जिसके इर्द-गिर्द ही अधर्म ने और उसके नेत्रहीन पिता ने अपनी विजय का ताना बाना बुना था, महाभारत का मुख्य पात्र था. दुर्योधन का अहंकार भाव ही इस युद्ध की कटु परिणति का मुख्य कारण था। दुर्योधन अंत तक भी वासुदेव कृष्ण की धर्म स्थापना में आसक्ति को नहीं समझ पाया और अपने भाई-बान्धवों का समूल नाश करवा बैठा पर क्या दुर्योधन का इस परिदृश में उपस्थित होनाऔर    उसकी अनीति ही महाभारत के विनाशकारी समर का कारण था? शायद नहीं दुर्योधन को ही सिर्फ दोष देना ऐसा ही होगा जैसा दीये की कालिख के लिए केवल लौ को ही दोष देना और कालिख में तेल की भूमिका को नगण्य मानना पर जो भी हो, दुर्योधन के नियमपूर्ण अधर्म और वासुदेव कृष्ण के नियमहीन धर्म के परस्पर युद्ध में धर्म का ही पलड़ा भारी रहा और इसी विजय ने इस महाभारत को 'धर्मग्रन्थ' का दर्जा दे दिया। आईये दोस्तों दुर्योधन के कुछ पहलुओं पर नजर डालते हैं और ये समझने का प्रयास करते हैं की क्या वाकई दुर्योधन कभी सुयोधन था?
ये काल चक्र है... 
दुर्योधन का जन्म माता गांधारी की कोख से हस्तिनापुर के महल में हुआ पर जन्म से ही वह बालक विवादों और महत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ गया  यह बहुत कम लोग जानते हैं कि दुर्योधन का असली नाम ‘सुयोधन’ था  सुयोधन का अर्थ है भीषण आघातों से युद्ध करने वाला पर बालक सुयोधन पर पिता की राजगद्दी की महत्वाकांक्षा और मामा के हस्तिनापुर के विनाश के मंसूबों ने विपरीत प्रभाव डाला। जब पांडव पुत्र माता कुंती के साथ वन से हस्तिनापुर आए तब सुयोधन को इन पांच पांडवों को देखकर क्रोध और प्रतिस्पर्धा की भावना का अनुभव हुआ और वह मन ही मन उन ऋषि वेशधारी पांडव पुत्रों से घृणा करने लगा पर जब उसे युधिष्ठिर के भावी राजा बनने के बारे में पता चला तब वह कुंठा से भर उठा क्योंकि जिस राजप्रासाद को वह बचपन से स्वयं की सम्पत्ति समझ कर बैठा था उसे ये पांडव छीन सकते थे बस यहीं से सुयोधन से 'दुर्योधन' का जन्म हुआ और उसने पांडव पुत्रों को अपने मामा शकुनी की सहायता से समाप्त करने की कोशिशें शुरू कर दी। 

लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि क्या महाभारत में दुर्योधन ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था, जिसने छल का साथ दिया हो? वस्तुतः दुर्योधन पांडवों को राजसिंहासन का असली उत्तराधिकारी नहीं समझता था क्योकि धृतराष्ट्र, पांडू से बड़ा था पर नेत्रहीन होने के कारण उसे राजा नहीं बनाया गया परन्तु अब वह कुरुकुल के ज्येष्ठ पुत्र धृतराष्ट्र का ज्येष्ठ पुत्र था अतः वह स्वयं को ही युवराज समझता था और अब चुंकि उसके पिता तख़्त पर आसीन थे तब वह युवराज बनने के सपने आंखों में संजोये बैठा था साथ ही वह पांडवों को पांडू के असली पुत्र नहीं मानता था क्योंकि पांडव 'योग' से उत्पन्न हुए थे और पांडू उनके जैविक पिता नहीं थे लेकिन जैसा कि नियम था कि राजा का पुत्र ही राजा बन सकता है अतः युधिष्ठिर ही तख़्त का असली वारिस था और साथ ही युधिष्ठिर ज्येष्ठ कुरु पुत्र था.  वह गदा युद्ध में संसार का महानतम और अद्वितीय योद्धा था। यहां तक स्वयं यदुवंशी बलराम, जो कि भीम और दुर्योधन दोनों के गुरु थे, भी दुर्योधन को सर्वश्रेष्ठ गदाधारी मानते थे। उसमें बेशक बल तो भीम से कम था परन्तु चपलता आकाशीय बिजली के सामान थी। उसकी इन्हीं क्षमताओं के फलस्वरूप अनेक राजा महाभारत युद्ध में उसके सहगामी बने. जब भीम और दुर्योधन का गदायुद्ध चल रहा था तब गांधारी के सतीबल और दुर्योधन के कड़े व्यायाम के फलस्वरूप, दुर्योधन लोहे के समान कठोर हो गया पर उसका जंघा इतना कठोर नहीं था। इस भीषण महायुद्ध में भीम की पराजय होती दिख रही थी। चुंकि दुर्योधन के सभी सम्बन्धी मारे जा चुके थे अतः वह राज्य लेने का इच्छुक नहीं था पर भीम से जीतना उसका परम लक्ष्य बन चुका था। इस स्थिति में भीम थकने और हारने लगा तब माधव कृष्ण भीम को दुर्योधन की जंघा तोड़ने के प्रतिज्ञा याद दिलवाई। भीम ने युद्ध के नियमों के विपरीत दुर्योधन की जंघा पर प्रहार किया और वह महावीर लड़ाका दुर्योधन भूमि पर गिर पड़ा। नियमों के मुताबिक गदा युद्ध में पेट से नीचे प्रहार वर्जित था पर जिन मर्यादाओं को दुर्योधन ने जीवनभर तोड़ा उन्हीं मर्यादाओं को तोड़कर दुर्योधन को भूमि पर मरणासन्न अवस्था में गिरा दिया गया और उसे अपने अनैतिक कार्यो को याद करने के लिए वहीं छोड़ दिया गया। 
दुर्योधन, युधिष्ठिर की तुलना में नैतिक रूप से पतित था और उसके राजा रहते पृथ्वी पर 'धर्मराज्य' की स्थापना असंभव थी और धर्म की स्थापना ही योगेश्वर कृष्ण का परम लक्ष्य था अतः पांडवों का साम्राज्य ही मधुसूदन के लक्ष्य को पूर्ण कर सकता था।

  यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निर्घषणच्छेदन तापताडनैः।
 तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा।।
 भावार्थ :
घिसने, काटने, तापने और पीटने, इन चार प्रकारों से जैसे सोने का परीक्षण होता है, इसी प्रकार त्याग, शील, गुण, एवं कर्मों से पुरुष की परीक्षा होती है ।

सुयोधन meaning,

सुयोधन कौन था,

सुयोधन किसका नाम है,

दुर्योधन को शाप,

दुर्योधन का जन्म कैसे हुआ,

दुशासन के पुत्र का क्या नाम था,

धृतराष्ट्र,

युधिष्ठिर का चरित्र चित्रण,
suyodhana poem,

duryodhan ka janam kaise hua,

character of duryodhana in mahabharata in hindi,

duryodhana wife and karna,

duryodhana story in kannada,

duryodhana brother name,

duryodhan vadh,

suyodhana drama,

Saturday, 15 December 2018

महाभारत के बाद सुदर्शन चक्र का क्या हुआ ??....Kaal Chakra

                         सुदर्शन चक्र

महाभारत के युद्ध मे भगवान  कृष्ण ने शस्त्र नहीं उठाया क्यूँ की वो जानते थे अगर उन्होने शस्त्र उठा लिया तो उनके सामने कोई टीक नहीं पाएगा सभी मारे जाएंगे कृष्ण  चाहते थे की दोनों पक्षों को बराबर मौका मिलना चाहिए। परंतु कृष्ण के पास ऐसी कौन सी शक्ति जिससे वो एक पल मे ही युद्ध  की संपति कर सकते थे वो था भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र। कहते हैं कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए जाता है। सुदर्शन चक्र शत्रु पर चलाया  नहीं जाता यह प्रहार करने वाले की इच्छा शक्ति से भेजा जाता है| यह चक्र किसी भी चीज़ को खत्म करने की क्षमता रखता है| आइये जानते हैं महाभारत युद्ध के बाद सुदर्शन चक्र कहा गया? क्या कभी हमे इसकी शक्ति का अंदाज़ा हो पाएगा? कहाँ है सुदर्शन चक्र ?
ये काल चक्र है ॥ 
 महाभारत में सुदर्शन चक्र के विषय मे उल्लेख है कि अत्यन्त शक्तिशाली चक्र  से एक शक्ति – युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे… यह चक्र एक पूरी सेना को सम्पत करने की क्षमता रखता था। 
पुरानो मे बताया गया है की भगवान विश्वकर्मा ने सूर्य के तेज़ से तीन चीजों का निर्माण किया पुष्पक विमान त्रिसुल और सुदर्शन चक्र। परंतु यहाँ सवाल यह उठता है की महाभारत के बाद सुदर्शन चक्र का क्या हुआ इसका उत्तर हमे भविष्य पुराण मे मिलता है उसमें लिखा गया है की जब भगवान कृष्ण ने देह त्याग किया तब सुदर्शन चक्र वहीं उसी जगह मिट्टी मे दफन हो गया और इस कलयुग मे जब भगवान विष्णु फिर से कल्कि रूप धरण करके वापिस इस पृथ्वी पर आएंगे तब एक बार पुनः वो सुदर्शन चक्र धरण करेंगे। 
दोस्तों प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र सुदर्शन चक्र जैसे अस्त्र अवश्य ही विभिन्न  शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना, हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि, अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है, पता नहीं हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं।
आज का श्लोका ज्ञान 
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||

अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना |

krishna, vishnu, lord vishnu, sudarshan, mahabharata, ramayana, mahabharat, what is sudarshan chakra, where is sudarshan chakra, hinduism, sudarshan chakra,  sudrashan chakr ka niraman, सुदर्शन चक्र,  sudarshan chakra story, भगवान विष्णु, vishnu sudarshan chakra, विष्णु भगवान, about sudarshan chakra, story of sudarshan chakra, sudarshan chakra ki kahani, sudarshan chakra hindi, sudarshan chakra in hindi, krishna, vishnu, sudarshan chakra astrology,  krishna story, shree krishna, mahabharat gita, ancient stories and myths

कलयुग में नारायणी सेना की वापसी संभव है ? The Untold Story of Krishna’s ...

क्या महाभारत युद्ध में नारायणी सेना का अंत हो गया ... ? या फिर आज भी वो कहीं अस्तित्व में है ... ? नारायणी सेना — वो ...