Saturday, 15 December 2018

महाभारत के बाद सुदर्शन चक्र का क्या हुआ ??....Kaal Chakra

                         सुदर्शन चक्र

महाभारत के युद्ध मे भगवान  कृष्ण ने शस्त्र नहीं उठाया क्यूँ की वो जानते थे अगर उन्होने शस्त्र उठा लिया तो उनके सामने कोई टीक नहीं पाएगा सभी मारे जाएंगे कृष्ण  चाहते थे की दोनों पक्षों को बराबर मौका मिलना चाहिए। परंतु कृष्ण के पास ऐसी कौन सी शक्ति जिससे वो एक पल मे ही युद्ध  की संपति कर सकते थे वो था भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र। कहते हैं कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था कि जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसका काम तमाम करके वापस छोड़े गए जाता है। सुदर्शन चक्र शत्रु पर चलाया  नहीं जाता यह प्रहार करने वाले की इच्छा शक्ति से भेजा जाता है| यह चक्र किसी भी चीज़ को खत्म करने की क्षमता रखता है| आइये जानते हैं महाभारत युद्ध के बाद सुदर्शन चक्र कहा गया? क्या कभी हमे इसकी शक्ति का अंदाज़ा हो पाएगा? कहाँ है सुदर्शन चक्र ?
ये काल चक्र है ॥ 
 महाभारत में सुदर्शन चक्र के विषय मे उल्लेख है कि अत्यन्त शक्तिशाली चक्र  से एक शक्ति – युक्त अस्त्र प्रक्षेपित किया गया…धुएँ के साथ अत्यन्त चमकदार ज्वाला, जिस की चमक दस हजार सूर्यों के चमक के बराबर थी, का अत्यन्त भव्य स्तम्भ उठा…वह वज्र के समान अज्ञात अस्त्र साक्षात् मृत्यु का भीमकाय दूत था जिसने वृष्ण और अंधक के समस्त वंश को भस्म करके राख बना दिया…उनके शव इस प्रकार से जल गए थे कि पहचानने योग्य नहीं थे. उनके बाल और नाखून अलग होकर गिर गए थे… यह चक्र एक पूरी सेना को सम्पत करने की क्षमता रखता था। 
पुरानो मे बताया गया है की भगवान विश्वकर्मा ने सूर्य के तेज़ से तीन चीजों का निर्माण किया पुष्पक विमान त्रिसुल और सुदर्शन चक्र। परंतु यहाँ सवाल यह उठता है की महाभारत के बाद सुदर्शन चक्र का क्या हुआ इसका उत्तर हमे भविष्य पुराण मे मिलता है उसमें लिखा गया है की जब भगवान कृष्ण ने देह त्याग किया तब सुदर्शन चक्र वहीं उसी जगह मिट्टी मे दफन हो गया और इस कलयुग मे जब भगवान विष्णु फिर से कल्कि रूप धरण करके वापिस इस पृथ्वी पर आएंगे तब एक बार पुनः वो सुदर्शन चक्र धरण करेंगे। 
दोस्तों प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मास्त्र, आग्नेयास्त्र सुदर्शन चक्र जैसे अस्त्र अवश्य ही विभिन्न  शक्ति से सम्पन्न थे, किन्तु हम स्वयं ही अपने प्राचीन ग्रंथों में वर्णित विवरणों को मिथक मानते हैं और उनके आख्यान तथा उपाख्यानों को कपोल कल्पना, हमारा ऐसा मानना केवल हमें मिली दूषित शिक्षा का परिणाम है जो कि, अपने धर्मग्रंथों के प्रति आस्था रखने वाले पूर्वाग्रह से युक्त, पाश्चात्य विद्वानों की देन है, पता नहीं हम कभी इस दूषित शिक्षा से मुक्त होकर अपनी शिक्षानीति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त कर भी पाएँगे या नहीं।
आज का श्लोका ज्ञान 
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||

अर्थात् : महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना |

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