कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक
ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। कर्ण को एक
दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। पाण्डवों के वनवास के दौरान, कर्ण, दुर्योधन को पृथ्वी का सम्राट बनाने का कार्य अपने हाथों में लेता
है। कर्ण द्वारा देशभर में सैन्य अभियान छेड़े गए और उसने राजाओं को परास्त कर
उनसे ये वचन लिए की वह हस्तिनापुर महाराज दुर्योधन के प्रति निष्ठावान रहेंगे
अन्यथा युद्धों में मारे जाएगें। कर्ण सभी लड़ाईयों में सफल रहा। महाभारत में
वर्णन किया गया है कि अपने सैन्य अभियानों में कर्ण ने कई युद्ध छेड़े और असंख्य
राज्यों और साम्राज्यों को आज्ञापालन के लिए विवश कर दिया जिनमें हैं - कम्बोज, शक, केकय, अवन्तय, गन्धार, माद्र, त्रिगत, तंगन, पांचाल, विदेह, सुह्मस,वांग, निशाद, कलिंग, वत्स, अशमक, ऋषिक और बहुत से
अन्य राज्य भी हैं।इतनीप्रतिभाइतनाशौर्यहोनेकेबावजूदकारणकोमहाभारतकीकहानीमेबारबारअपमानितहोनापड़ावोभीसिर्फइसलिएक्यूँकीउसकालालनपालनएकसूतपरिवारमेहुआथा।एकनीचेकुलकाहोनेकेकारणकर्णकोकबकबनीचादिखायागयाआजहमइसविडियोमेइसीविषयपरबातकरेंगे।
जब कर्ण ने क्रीडास्थलपरआकर
अपने हुनर दिखाए, तो भीमने तत्काल हस्तक्षेप किया और कहा, ‘यह आदमी क्षत्रिय नहीं है। कौन हो तुम? इस
प्रतियोगिता में घुसने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?’ भीम
खड़ा होकर बोला, ‘तुम किसके पुत्र हो? अभी
बताओ?’ अचानक आत्मविश्वास से भरपूर उस युवक कर्ण का, जो खुद को अर्जुन से बेहतर धनुर्धर समझता था, उसका
आत्मविश्वास डगमगा गया। जब उन्होंने पूछा, ‘तुम्हारे पिता
कौन हैं?’ तो वह बोला, ‘मेरे पिता
अधिरथ हैं।’ फिर वे लोग बोले, ‘अरे, तुम
तो सूत पुत्र हो! और तुम इस मैदान में दाखिल हो गए। जाओ यहां से। यह क्षत्रियों के
लिए है।’
दुर्योधन को अपने जीवन का सबसे महान अवसर
ठीक अपने सामने दिखाई दे रहा था और वह उससे चूकना नहीं चाहता था। उसकी सबसे बड़ी
चिंता यह थी कि उसके भाइयों में कोई धनुर्धर नहीं था। उसे विश्वास था कि एक दिन वह
भीम को हरा देगा और उसके कुछ भाई नकुल और सहदेव को मार डालेंगे, एक दिन वे सिर्फ धर्म पर प्रवचन देकर युधिष्ठिर को हरा देंगे। मगर
उसे अर्जुन की चिंता थी, क्योंकि उसके टक्कर का धनुर्धर उनके
पास नहीं था। इसलिए जब उसने कर्ण को और उसकी काबिलियत को देखा, तो उसने तत्काल उसे लपक लिया। उसने खड़े होकर कर्ण की ओर से राजा से
प्रार्थना की। बोला, ‘पिताजी, ऐसा कैसे
हो सकता है? शास्त्रों के अनुसार एक आदमी तीन तरीकों से राजा
बन सकता है – या तो वह राजा का पुत्र हो या फिर उसने अपने हुनर और साहस से किसी
राजा को परास्त किया हो या फिर खुद कोई राज्य खड़ा किया हो।’कर्ण अभी यहीं है। अगर
अर्जुन उससे इसलिए नहीं लड़ना चाहता क्योंकि कर्ण राजा नहीं है, तो मैं उसे राजा बना देता हूं।दूर देश में अंग नामक हमारा एक छोटा सा
राज्य है। वहां कोई राजा नहीं है। मैं कर्ण को अंग देश का राजा बनाता हूं।’ उसने
एक पुजारी बुलवाकर उसी जगह कर्ण का राज्याभिषेक कर दिया। ‘यह अंगराज है, अंग का राजा। अर्जुन किसी के जन्म का बहाना लेकर नहीं बच सकता। मुझे परवाह
नहीं है कि इसके पिता कौन हैं। मैं इसे अपना मित्र स्वीकार करता हूं।’ उसने कर्ण
को गले लगाकर कहा, ‘तुम मेरे भाई हो और अब से एक राजा।’कर्ण
अभिभूत था क्योंकि उसे अपने पूरे जीवन अपने नीचे कुल के कारण भेदभाव का सामना करना
पड़ा था। यहां एक राजा का बेटा उसके लिए खड़ा हुआ, उसे गले
लगाया और उसे राजा बना दिया। उसकी वफादारी ने उसे जीवन भर के लिए बांध दिया। आप
देखेंगे कि यह बेवजह की वफादारी समय के साथ कई बार बहुत खतरनाक मोड़ ले लेगी। इस
प्रतियोगिता के बाद कर्ण एक राजा और दुर्योधन के मित्र की तरह महल में दाखिल हुआ।
कर्णकाअपमानद्रोपदीस्व्यंवरमे
कर्ण, द्रौपदी
के स्वयंवर में एक विवाह-प्रस्तावक था। अन्य प्रतिद्वन्दियों के विपरीत, कर्ण धनुष को मोड़ने और उस पर प्रत्यंचा चढ़ा पाने में समर्थ था, पर जैसे ही वह लक्ष्य भेदन के लिए तैयार हुआ, द्रौपदी
ने कर्ण को सूत-पुत्र बोलकर उसे ऐसा करने से रोक दिया।
अर्थात- संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार
परमात्मा है। उसमें ही सारे लोक, तप और प्राकृतिक नियम
रहते हैं। उस परमात्मा का साक्षात्कार करना, अनुभूति करना ही
हमारा परम लक्ष्य है। ऐसा होने पर हम परमानंद की प्राप्ति करते हैं।