Thursday, 17 January 2019

महारथी कर्ण महाभारत का एक महायोद्धा .... Kaal Chakra



     
कर्ण
कर्ण की छवि आज भी भारतीय जनमानस में एक
ऐसे महायोद्धा की है जो जीवनभर प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ता रहा। कर्ण को एक
दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। 
पाण्डवों के वनवास के दौरान
, कर्ण,
दुर्योधन को पृथ्वी का सम्राट बनाने का कार्य अपने हाथों में लेता
है। कर्ण द्वारा देशभर में सैन्य अभियान छेड़े गए और उसने राजाओं को परास्त कर
उनसे ये वचन लिए की वह हस्तिनापुर महाराज दुर्योधन के प्रति निष्ठावान रहेंगे
अन्यथा युद्धों में मारे जाएगें। कर्ण सभी लड़ाईयों में सफल रहा। महाभारत में
वर्णन किया गया है कि अपने सैन्य अभियानों में कर्ण ने कई युद्ध छेड़े और असंख्य
राज्यों और साम्राज्यों को आज्ञापालन के लिए विवश कर दिया जिनमें हैं - कम्बोज
,
शक, केक‍य, अवन्तय,
गन्धार, माद्र, त्रिगत,
तंगन, पांचाल, विदेह,
सुह्मस,  वांग, निशाद, कलिंग, वत्स, अशमक, ऋषिक और बहुत से
अन्य राज्य भी हैं।
इतनी प्रतिभा इतना शौर्य होने के बावजूद कारण को महाभारत की कहानी मे बार बार अपमानित होना पड़ा वो भी सिर्फ इस लिए क्यूँ की उसका लालन पालन एक सूत परिवार मे हुआ था। एक नीचे कुल का होने के कारण कर्ण को कब कब  नीचा दिखाया गया आज हम इस विडियो मे इसी विषय पर बात करेंगे।
ये काल चक्र है....   
जब कर्ण गुरु द्रोण पास धनुर्विद्या प्रपट करने जाते हैं तब गुरु द्रोण उसे यह कह कर माना कर देते हैं की धनुर्विद्या सूत पुत्रों के लिए नहीं बनी है। वो कहते हैं की उचया विद्या पर केवल क्षत्रियों का अधिकार होता है।  तब कर्ण उनसे कहते हैं मै क्षत्रियों की भाति आपसे राज्य नहीं मांग रहा हूँ मै तो विद्या का अभिलाषी हूँ.... और अगर ऐसा है तो आपने विद्या क्यूँ प्राप्त की और आप अपने पुत्र को विद्या क्यूँ प्रदान कर रहे हैं। कर्ण कहते हैं की धनुष पर तो केवल उसका अधिकार होता है जो उस प्रत्यंचा चढ़ा सकता हैं मै नहीं मानता उस वायवस्था को जो मुझसे मेरा धनुष छीनने का प्रयास करे। गुरु द्रोण क्रोध्त होकर कर्ण को वहाँ से जाने को कहते हैं कर्ण कहते हैं मै जा रहा हूँ परंतु जब लौटूँगा तो भारत वर्ष का श्र्व्श्रेस्थ धनुर्धर बनकर लौटूँगा
और हुआ भी यही इसका वर्णन हमे पांडवों और कौरवों के प्रतोगीता स्थल पर मिलता है 
जब कर्ण ने क्रीडा स्थल पर आकर
अपने हुनर दिखाए
, तो भीम  ने तत्काल हस्तक्षेप किया और कहा,
‘यह आदमी क्षत्रिय नहीं है। कौन हो तुम? इस
प्रतियोगिता में घुसने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई
?’ भीम
खड़ा होकर बोला
, ‘तुम किसके पुत्र हो? अभी
बताओ
?’ अचानक आत्मविश्वास से भरपूर उस युवक कर्ण का, जो खुद को अर्जुन से बेहतर धनुर्धर समझता था, उसका
आत्मविश्वास डगमगा गया। जब उन्होंने पूछा
, ‘तुम्हारे पिता
कौन हैं
?’ तो वह बोला, ‘मेरे पिता
अधिरथ हैं।’ फिर वे लोग बोले
, ‘अरे, तुम
तो सूत पुत्र हो! और तुम इस मैदान में दाखिल हो गए। जाओ यहां से। यह क्षत्रियों के
लिए है।’
दुर्योधन को अपने जीवन का सबसे महान अवसर
ठीक अपने सामने दिखाई दे रहा था और वह उससे चूकना नहीं चाहता था। उसकी सबसे बड़ी
चिंता यह थी कि उसके भाइयों में कोई धनुर्धर नहीं था। उसे विश्वास था कि एक दिन वह
भीम को हरा देगा और उसके कुछ भाई नकुल और सहदेव को मार डालेंगे
,
एक दिन वे सिर्फ धर्म पर प्रवचन देकर युधिष्ठिर को हरा देंगे। मगर
उसे अर्जुन की चिंता थी
, क्योंकि उसके टक्कर का धनुर्धर उनके
पास नहीं था। इसलिए जब उसने कर्ण को और उसकी काबिलियत को देखा
, तो उसने तत्काल उसे लपक लिया। उसने खड़े होकर कर्ण की ओर से राजा से
प्रार्थना की। बोला
, ‘पिताजी, ऐसा कैसे
हो सकता है
? शास्त्रों के अनुसार एक आदमी तीन तरीकों से राजा
बन सकता है – या तो वह राजा का पुत्र हो या फिर उसने अपने हुनर और साहस से किसी
राजा को परास्त किया हो या फिर खुद कोई राज्य खड़ा किया हो।’कर्ण अभी यहीं है। अगर
अर्जुन उससे इसलिए नहीं लड़ना चाहता क्योंकि कर्ण राजा नहीं है
, तो मैं उसे राजा बना देता हूं।दूर देश में अंग नामक हमारा एक छोटा सा
राज्य है। वहां कोई राजा नहीं है। मैं कर्ण को अंग देश का राजा बनाता हूं।’ उसने
एक पुजारी बुलवाकर उसी जगह कर्ण का राज्याभिषेक कर दिया। ‘यह अंगराज है
, अंग का राजा। अर्जुन किसी के जन्म का बहाना लेकर नहीं बच सकता। मुझे परवाह
नहीं है कि इसके पिता कौन हैं। मैं इसे अपना मित्र स्वीकार करता हूं।’ उसने कर्ण
को गले लगाकर कहा
, ‘तुम मेरे भाई हो और अब से एक राजा।’कर्ण
अभिभूत था क्योंकि उसे अपने पूरे जीवन अपने नीचे कुल के कारण भेदभाव का सामना करना
पड़ा था। यहां एक राजा का बेटा उसके लिए खड़ा हुआ
, उसे गले
लगाया और उसे राजा बना दिया। उसकी वफादारी ने उसे जीवन भर के लिए बांध दिया। आप
देखेंगे कि यह बेवजह की वफादारी समय के साथ कई बार बहुत खतरनाक मोड़ ले लेगी। इस
प्रतियोगिता के बाद कर्ण एक राजा और दुर्योधन के मित्र की तरह महल में दाखिल हुआ।
कर्ण का अपमान द्रोपदी स्व्यंवर मे
कर्ण, द्रौपदी
के स्वयंवर में एक विवाह-प्रस्तावक था। अन्य प्रतिद्वन्दियों के विपरीत
, कर्ण धनुष को मोड़ने और उस पर प्रत्यंचा चढ़ा पाने में समर्थ था, पर जैसे ही वह लक्ष्य भेदन के लिए तैयार हुआ, द्रौपदी
ने कर्ण को सूत-पुत्र बोलकर उसे ऐसा करने से रोक दिया।
इन सब अपमानों के बावजूद कर्ण साहसिक आत्मबल युक्त एक ऐसा महानायक था जो अपने जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से जूझता रहा। विशेष रूप से कर्ण अपनी दानप्रियता के लिए प्रसिद्ध है। कर्ण को कभी भी वह नहीं मिला जिसका वह अधिकारी था, पर उसने कभी भी प्रयास करना नहीं छोड़ा। भीष्म और भगवान कृष्ण सहित कर्ण के समकालीनों ने यह स्वीकार किया है कि कर्ण एक पुण्यात्मा है जो बहुत विरले ही मानव जाति में प्रकट होते हैं। वह संघर्षरत मानवता के लिए एक आदर्श है कि मानव जाति कभी भी हार ना माने और सदैव प्रयासरत रहे।
स्कम्भे लोका:  स्कम्भे तप: स्कम्भेऽध्यृतमाहितम्।
स्कम्भ त्वा वेद प्रत्यक्षम्,
इन्द्रे सर्वं समाहितम्।।
अर्थात- संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार
परमात्मा है। उसमें ही सारे लोक
, तप और प्राकृतिक नियम
रहते हैं। उस परमात्मा का साक्षात्कार करना
, अनुभूति करना ही
हमारा परम लक्ष्य है। ऐसा होने पर हम परमानंद की प्राप्ति करते हैं।
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