Saturday, 29 July 2017

जानिए क्यूँ आई थी माँ काली की जीभ बाहर | Story of Maa Kali | Kaal Chakra

जानिए क्यूँ आई थी माँ काली की जीभ बाहर | Story of Maa Kali | Kaal Chakra

            महाकाली
भगवती दुर्गा का एक स्वरूप महाकाली का भी है जिनकी
उत्पत्ति जिनकी उत्पत्ति राक्षसों के नाश के लिए हुई थी । स्वयं काल भी माँ काली
से भाय खाता है और इनका क्रोध ऐसा है की संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके
गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। माँ का यह विद्वंश रूप है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए
है जो दानवीय प्रकति के है जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई को खत्म करके
अच्छाई को जीत दिलवाने वाला रूप है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेछु है और
पूजनीय है। शास्त्रों मे माँ काली के क्रोध से जुड़ी एक बहुत ही रोचक कथा वर्णित है
जो इस प्रकार है ।
बात उस समय की है जब दैत्य रक्तबीज ने कठोर ताप के
बल पर एक ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था जिससे अगर उसके रक्त की एक भी बूंद भूमि पर
गिरती है तो उससे अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे । उसने अपने शक्तियों का प्रयोग निर्दोष
लोगों पर करना शुरू कर दिया। उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्बल और निर्दोष
लोगों पर करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसने अपना आतंक तीनों लोको पर मचा दिया । देवताओं
के वीरुध रक्तबीज का भयंकर युद्ध हुआ
, देवतागण  अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबिज का नाश करने को
तत्पर थे मगर जैसे ही उसके शरीर की एक भी बूंद खून धरती पर गिरती उस एक बूंद से सअनेक
रक्तबीज पैदा हो जाते।
सभी देवता मिलकर महाकाली की शरण मे गए। देवताओं की
रक्षा के लिए माँ काली ने विकराल रूप लेकर युद्ध भूमि मे प्रवेश किया
, अस्त्र सस्त्र से सुसजित्त माँ के एक हाथ मे खप्पर था और गले मे खोपड़ीयों
की माला । उन्होने राक्षसों का वध करना आरंभ कर दिया परंतु जैसे ही रक्तबीज के खून
की एक भी बूंद भूमि पर गिरती उससे अनेक दानवों का जन्म हो जाता तब माँ ने रक्तबीज
के खून को अपने खप्पर मे रोकना शुरू किया और उसका खून पीने लगीं।  इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन तब
तक महाकाली का गुस्सा इतना विक्राल रूप से चुका था की उनको शांत करना जरुरी था मगर
हर कोई उनके समीप जाने से भी डर रहा था।
सभी देवतागण भगवान शिव के पास गए और महाकाली को
शांत करने के लिए उनसे प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव उनको शांत करने के लिए
वहाँ गए और माँ काली के मार्ग मे लेट गए
, जब माँ काली का
चरण स्पर्श भगवान शिव से हुआ तब उनकी जिह्वा बाहर आ गई और माता का क्रोध शांत हो
गया ।
आज का श्लोका ज्ञान :

बलवानप्यशक्तोऽसौ
धनवानपि निर्धनः
|
श्रुतवानपि
मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः
||

अर्थात्
:
जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह (
व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ
, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख
होता है
|



Wednesday, 26 July 2017

नागों की उत्पत्ति कैसे हुई | Story of nagas | Kaal Chakra

नागों की उत्पत्ति कैसे हुई | Story of nagas | Kaal Chakra

               

नागों की उत्पत्ति कैसे हुई ?

नागो
से सम्बंधित कथा
का उल्लेख महाभारत के आदि पर्व मे किया गया है ।महाभारत के आदि पर्व में इसका वर्णन
होने के कारण लोग इसे महाभारत काल की घटना समझते है
, लेकिन ऐसा नहीं है। महाभारत के आदि पर्व में वेदव्यास
जी ने ऐसी
कई
घटनाओं का वर्णन
किया है  है जो
की महाभारत काल से बहुत पहले घटी थी लेकिन उन घटनाओ का संबंध किसी न किसी तरीके से
महाभारत से जुड़ता है
, इसलिए उनका वर्णन महाभारत के आदि पर्व में किया गया है।
हमारे
धर्म ग्रंथो
के अनुसार शेषनाग, वासुकि
नाग
, तक्षक नाग, कर्कोटक नाग, धृतराष्ट्र नाग, कालिया नाग, पिंगल, महा नाग, आदि नागो का वर्णन मिलता है। आज हम
आपको इन पराकर्मी नागों के पृथ्वी पर जन्म लेने से सम्बंधित पौराणिक कहानी
सुनाएँगे
दक्ष पराजपति की दो पुत्रियाँ कद्रू और विनता का
विवाह कश्यप ऋषि से हुआ था । एक बार कश्यप ऋषि ने प्रसन्न हो कर अपनी दोनों
पत्नियों से वरदान मांगने को कहा-- कद्रू ने एक हज़ार पराक्रमी सर्पों की माँ बनने
की प्रार्थना की उधर दूसरी तरफ विनता ने केवल दो पुत्रों की किन्तु दोनों पुत्र
कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली पराक्रमी और सुन्दर हों । समय आने पर
कद्रू
ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे प्रसव किये। और कुछ समय पश्चात कद्रू के अंडो
से 1000 नागो का जन्म हुआ। विनता के दो अंडो की कहानी हम आप को किसी और दिन
बताएँगे।
और इस प्रकार नागों की उत्पत्ति हुई ।
जिन दो नागों की पुजा हमारे हिन्दू धर्म मे की जाती
है और जिन्हें पवित्र माना जाता है उनका वर्णन कुछ इस प्रकार है  
शेषनाग
:
कद्रू
के
बेटों मे सबसे पराक्रमी शेषनाग ही थे । इनके सहस्र फनो के कारण इनका एक नाम अनंत
भी है। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजमान हैं। धर्म
ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण और भगवान श्रीकृष्ण के बड़े
भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।
वासुकि
नाग :
समुद्रमन्थन
के लिये वासुकी
नाग  ने रस्सी का काम किया। धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का
राजा बताया गया है। ये भी महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान थे।




प्रकृतिः
पंचभूतानि ग्रहलोकस्वरास्तथा
दिशः
कालश्च सर्वेषां सदा कुर्वंतु मंगलम्‌॥२॥
प्रकृति, पञ्च भूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश), ग्रह (मंगल, बुध, शुक्र आदि),
संगीत के सातों सुर, दसों दिशाएं और भूत, वर्तमान और भविष्य समस्त कालों में
सदैव कल्याणकारी हों
||||

Monday, 24 July 2017

जानिए कैसे राक्षस 'गयासुर' के कारण गया बना मोक्ष स्‍थली | Story of Gayas...

जानिए कैसे राक्षस 'गयासुर' के कारण गया बना मोक्ष स्‍थली | Story of Gayas...

  
       गयासुर
की कथा
असुर जाती मे भी कभी कभार कुछ भक्त उत्पन्न हो जाते
हैं
, भक्तराज प्रहलद ऐसे ही भक्तों मे से एक थे परंतु अपने गयासुर  का नाम अल्प ही सुना होगा। बचपन से ही गया का
हृदय भगवान विष्णु के प्रेम मे लगा रहता था उनके मुख से हर क्षण भगवान के नाम का उच्चारण
होता रहता था ।
उसने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने की योजना बनाई
और कठोर तपस्या मे लिन हो गया । ऐसी कठोर तपस्या शायद कभी किसी ने न की हो हजारो
वर्षों तक अपनी साँसे रोक ली जिससे सारा संसार क्षुब्ध हो गया। इसपर सभी देवता
मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे । भगवान विष्णु ने कहा – आप सभी देवतागन गयासुर
के पास चलें मई भी आ रहा हूँ ।
गयासुर के पास जा कर भगवान विष्णु ने पूछा – तुम
क्यूँ तप कर रहे हो वत्स ! हम सभी देवता तुमसे संतुस्ट है।  वर मांगो।
गयासुर ने सभी देव दिव्ज यज्ञ तीर्थ ऋषि मंत्र अथवा
योगिओन से भी बढ़कर पवित्र होने की इक्छा प्रकट की । देवताओं ने भी प्रसन्नता  पूर्वक गयासुर को वरदान दे दिया । और गयासुर को
सप्रष्कर वहाँ से चले गए ।
इस तरह भक्तराज गयासुर ने अपने शरीर को पवित्र
बनाकर प्रायः सभी पापियों का उद्धार कर दिया करता था । जो भी उसे देखता और जो उसका
स्पर्श करता उसका पाप तप नष्ट हो जाता ।इस वरदान के कारण यमलोक सूना होने लगा।
इससे परेशान होकर यमराज ने जब ब्रह‍्मा, व‌िष्णु और शिव से यह कहा क‌ि गयासुर के कारण अब पापी व्यक्त‌ि भी बैकुंठ
जाने लगा है इसल‌िए कोई उपाय क‌िज‌िए। यमराज की स्‍थ‌ित‌ि को समझते हुए ब्रह‍्मा
जी ने गयासुर से कहा क‌ि तुम परम पव‌ित्र हो इसल‌िए देवता चाहते हैं तुम्हारी  पीठ पर यज्ञ करें। यह सुनकर गयासुर बहुत प्रसन्न
हुआ और इसके लिए तैयार हो गया ।
गयासुर के शरीर पर बहुत बड़ा यज्ञ हुआ सभी देवता और
ऋषिगण  वहाँ पधारे । ब्रह्मा जी ने
पूर्णाहुति देकर अव्भ्र्थ स्नान किया । भक्तराज गयासुर चाहते थे की उनके शरीर पर
सभी देवताओं का वश हो भगवान विष्णु का निवास गयासुर को अधिक प्रिये था । भगवान
विष्णु गदाधर के रूप मे वहाँ स्थित हो गए । और इसप्रकार गयासुर अमर हो गया यह एक
भक्त का विश्व के कल्याण के लिए अद्भुत अवदान है ।
बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की
दूरी पर बसा है गया जिला। मान्यता है की यही वो जगह है जहां गयासुर के शरीर पे
यज्ञ हुआ था और इस लिए मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।  यहां पर प‌िंडदान और श्राद्ध करने वाले को पुण्य
और प‌िंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्त‌ि म‌िल जाएगी।
आज का श्लोक ज्ञान
यस्य जीवन्ति धर्मेण पुत्रा मित्राणि बान्धवाः ।
सफलं जीवितं तस्य नात्मार्थे को हि जीवति ॥
अर्थात :
जिसके सत्कर्म से पुत्र, मित्र और बंधु जीते हैं उसका जीवन सफल है अन्यथा अपने लिए कौन नहीं जीता
"सब जीते हैं" ।


Thursday, 20 July 2017

जानिए कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया| Story ...

              जानिए कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया

बात उस समय की है जब पर्वत राज हिमालय की पुत्री
पार्वती भगवान शिव को पति रूप मे पाने के लिए कठोर तपस्या कर रहीं थीं । तपस्या के
अंत मे ब्रह्मा जी ने उन्हे ये आस्वास्न दिया कि भगवान शिव तुम्हें पति रूप मे
अवस्य प्राप्त होंगे । इसी क्रम मे एक दिन जब पार्वती जी भगवान शिव के चिंतन मे
लिन थीं तभी उन्हे एक बालक कि करुणा भरी पुकार सुनाई पड़ी । समीप जा कर देखा तो ये
पता चला कि उस बालक को एक ग्राह ने पकड़ रखा है और वो बालक बस पानी  मे डूबने ही वाला था । जब जब ग्राह उसे खींचता
तब तब उसका क्रंदन और बढ़ जाता । पार्वती जी दौड़ कर उस ग्राह के समीप पहुँचीं और
उससे प्रार्थना के स्वर मे बोला—ग्राहराज मै आपको नमस्कार करती हूँ
, कृपा कर के तुम इस बालक को छोड़ दो ।
इसपर ग्राह ने उनसे  कहा- छठवें दिन जो भी प्राणी मेरे पास आता है
मै उसे खा जाता हूँ विधाता ने मेरे आहार का यही नियम बनाया है । आज यह बालक मेरे
समीप आया है तो आप ही बताओ भला मै इसे कैसे छोड़ सकता हूँ । माता पार्वती ने कहा—
ग्राहराज इस बालक के बदले मै तुम्हें अपनी तपस्या का पुण्य देती हूँ तुम इस बालक
को छोड़ दो ।
यह सुनकर ग्राह शांत हुआ और बोला ठीक है अगर आप
अपनी पूरी कि पूरी तपस्या मुझे दे दो तो मै इसे छोड़ दूंगा ।
करुणामयी माँ ने तुरंत ही संकल्प ले कर अपनी पूरी
तपस्या ग्राह को दे दी । तपस्या का फल पा कर वह ग्राह सूर्य कि तरह चमक उठा। उसने
कहा – हे देवी आप अपनी तपस्या वापिस ले लो । मै आपके कहने मात्र से ही इस बालक को
छोड़ देता हूँ परंतु पार्वती जी ने उसका कहना नहीं माना । ग्राहराज ने देवी कि खूब
प्रसंसा की और वहाँ से चला गया ।
उस बालक ने 
अंसुभरी नेत्रो से देवी पार्वती की ओर देखकर कृतज्ञता प्रकट की । माता
पार्वती ने दुलार पूछकर कर उस बालक को वहाँ से विदा किया । बालक को बचाकर माता
पार्वती बहुत संतुस्ट थीं अपने आश्रम मे आकार वो पुनः तपस्या मे लिन हो गईं की तभी
भगवान शिव वहाँ आ गए और बोले – हे कल्याणी अब तुम्हें तपस्या करने की जरूरत नहीं
है तुमने अपनी तपस्या मुझे ही अर्पित की है वह अन्नतगुना होकर तुम्हारे लिए अक्षय हो
गई है ।   
आज का श्लोका ज्ञान :
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम् ॥
अर्थात : परोपकार के लिए वृक्ष फल देते हैं, नदीयाँ परोपकार के लिए ही बहती हैं और गाय परोपकार के लिए दूध देती हैं,
(अर्थात्) यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है । 

Saturday, 15 July 2017

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