Monday, 24 July 2017

जानिए कैसे राक्षस 'गयासुर' के कारण गया बना मोक्ष स्‍थली | Story of Gayas...

  
       गयासुर
की कथा
असुर जाती मे भी कभी कभार कुछ भक्त उत्पन्न हो जाते
हैं
, भक्तराज प्रहलद ऐसे ही भक्तों मे से एक थे परंतु अपने गयासुर  का नाम अल्प ही सुना होगा। बचपन से ही गया का
हृदय भगवान विष्णु के प्रेम मे लगा रहता था उनके मुख से हर क्षण भगवान के नाम का उच्चारण
होता रहता था ।
उसने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने की योजना बनाई
और कठोर तपस्या मे लिन हो गया । ऐसी कठोर तपस्या शायद कभी किसी ने न की हो हजारो
वर्षों तक अपनी साँसे रोक ली जिससे सारा संसार क्षुब्ध हो गया। इसपर सभी देवता
मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे । भगवान विष्णु ने कहा – आप सभी देवतागन गयासुर
के पास चलें मई भी आ रहा हूँ ।
गयासुर के पास जा कर भगवान विष्णु ने पूछा – तुम
क्यूँ तप कर रहे हो वत्स ! हम सभी देवता तुमसे संतुस्ट है।  वर मांगो।
गयासुर ने सभी देव दिव्ज यज्ञ तीर्थ ऋषि मंत्र अथवा
योगिओन से भी बढ़कर पवित्र होने की इक्छा प्रकट की । देवताओं ने भी प्रसन्नता  पूर्वक गयासुर को वरदान दे दिया । और गयासुर को
सप्रष्कर वहाँ से चले गए ।
इस तरह भक्तराज गयासुर ने अपने शरीर को पवित्र
बनाकर प्रायः सभी पापियों का उद्धार कर दिया करता था । जो भी उसे देखता और जो उसका
स्पर्श करता उसका पाप तप नष्ट हो जाता ।इस वरदान के कारण यमलोक सूना होने लगा।
इससे परेशान होकर यमराज ने जब ब्रह‍्मा, व‌िष्णु और शिव से यह कहा क‌ि गयासुर के कारण अब पापी व्यक्त‌ि भी बैकुंठ
जाने लगा है इसल‌िए कोई उपाय क‌िज‌िए। यमराज की स्‍थ‌ित‌ि को समझते हुए ब्रह‍्मा
जी ने गयासुर से कहा क‌ि तुम परम पव‌ित्र हो इसल‌िए देवता चाहते हैं तुम्हारी  पीठ पर यज्ञ करें। यह सुनकर गयासुर बहुत प्रसन्न
हुआ और इसके लिए तैयार हो गया ।
गयासुर के शरीर पर बहुत बड़ा यज्ञ हुआ सभी देवता और
ऋषिगण  वहाँ पधारे । ब्रह्मा जी ने
पूर्णाहुति देकर अव्भ्र्थ स्नान किया । भक्तराज गयासुर चाहते थे की उनके शरीर पर
सभी देवताओं का वश हो भगवान विष्णु का निवास गयासुर को अधिक प्रिये था । भगवान
विष्णु गदाधर के रूप मे वहाँ स्थित हो गए । और इसप्रकार गयासुर अमर हो गया यह एक
भक्त का विश्व के कल्याण के लिए अद्भुत अवदान है ।
बिहार की राजधानी पटना से करीब 104 किलोमीटर की
दूरी पर बसा है गया जिला। मान्यता है की यही वो जगह है जहां गयासुर के शरीर पे
यज्ञ हुआ था और इस लिए मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हैं।  यहां पर प‌िंडदान और श्राद्ध करने वाले को पुण्य
और प‌िंडदान प्राप्त करने वाले को मुक्त‌ि म‌िल जाएगी।
आज का श्लोक ज्ञान
यस्य जीवन्ति धर्मेण पुत्रा मित्राणि बान्धवाः ।
सफलं जीवितं तस्य नात्मार्थे को हि जीवति ॥
अर्थात :
जिसके सत्कर्म से पुत्र, मित्र और बंधु जीते हैं उसका जीवन सफल है अन्यथा अपने लिए कौन नहीं जीता
"सब जीते हैं" ।


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