महाकाली
भगवती दुर्गा का एक स्वरूप महाकाली का भी है जिनकी
उत्पत्ति जिनकी उत्पत्ति राक्षसों के नाश के लिए हुई थी । स्वयं काल भी माँ काली
से भाय खाता है और इनका क्रोध ऐसा है की संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके
गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। माँ का यह विद्वंश रूप है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए
है जो दानवीय प्रकति के है जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई को खत्म करके
अच्छाई को जीत दिलवाने वाला रूप है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेछु है और
पूजनीय है। शास्त्रों मे माँ काली के क्रोध से जुड़ी एक बहुत ही रोचक कथा वर्णित है
जो इस प्रकार है ।
उत्पत्ति जिनकी उत्पत्ति राक्षसों के नाश के लिए हुई थी । स्वयं काल भी माँ काली
से भाय खाता है और इनका क्रोध ऐसा है की संपूर्ण संसार की शक्तियां मिल कर भी उनके
गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। माँ का यह विद्वंश रूप है पर यह रूप सिर्फ उनके लिए
है जो दानवीय प्रकति के है जिनमे कोई दयाभाव नहीं है। यह रूप बुराई को खत्म करके
अच्छाई को जीत दिलवाने वाला रूप है अत: माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेछु है और
पूजनीय है। शास्त्रों मे माँ काली के क्रोध से जुड़ी एक बहुत ही रोचक कथा वर्णित है
जो इस प्रकार है ।
बात उस समय की है जब दैत्य रक्तबीज ने कठोर ताप के
बल पर एक ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था जिससे अगर उसके रक्त की एक भी बूंद भूमि पर
गिरती है तो उससे अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे । उसने अपने शक्तियों का प्रयोग निर्दोष
लोगों पर करना शुरू कर दिया। उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्बल और निर्दोष
लोगों पर करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसने अपना आतंक तीनों लोको पर मचा दिया । देवताओं
के वीरुध रक्तबीज का भयंकर युद्ध हुआ, देवतागण अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबिज का नाश करने को
तत्पर थे मगर जैसे ही उसके शरीर की एक भी बूंद खून धरती पर गिरती उस एक बूंद से सअनेक
रक्तबीज पैदा हो जाते।
बल पर एक ऐसा वरदान प्राप्त कर लिया था जिससे अगर उसके रक्त की एक भी बूंद भूमि पर
गिरती है तो उससे अनेक दैत्य पैदा हो जाएंगे । उसने अपने शक्तियों का प्रयोग निर्दोष
लोगों पर करना शुरू कर दिया। उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्बल और निर्दोष
लोगों पर करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसने अपना आतंक तीनों लोको पर मचा दिया । देवताओं
के वीरुध रक्तबीज का भयंकर युद्ध हुआ, देवतागण अपनी पूरी शक्ति लगाकर रक्तबिज का नाश करने को
तत्पर थे मगर जैसे ही उसके शरीर की एक भी बूंद खून धरती पर गिरती उस एक बूंद से सअनेक
रक्तबीज पैदा हो जाते।
सभी देवता मिलकर महाकाली की शरण मे गए। देवताओं की
रक्षा के लिए माँ काली ने विकराल रूप लेकर युद्ध भूमि मे प्रवेश किया , अस्त्र सस्त्र से सुसजित्त माँ के एक हाथ मे खप्पर था और गले मे खोपड़ीयों
की माला । उन्होने राक्षसों का वध करना आरंभ कर दिया परंतु जैसे ही रक्तबीज के खून
की एक भी बूंद भूमि पर गिरती उससे अनेक दानवों का जन्म हो जाता तब माँ ने रक्तबीज
के खून को अपने खप्पर मे रोकना शुरू किया और उसका खून पीने लगीं। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन तब
तक महाकाली का गुस्सा इतना विक्राल रूप से चुका था की उनको शांत करना जरुरी था मगर
हर कोई उनके समीप जाने से भी डर रहा था।
रक्षा के लिए माँ काली ने विकराल रूप लेकर युद्ध भूमि मे प्रवेश किया , अस्त्र सस्त्र से सुसजित्त माँ के एक हाथ मे खप्पर था और गले मे खोपड़ीयों
की माला । उन्होने राक्षसों का वध करना आरंभ कर दिया परंतु जैसे ही रक्तबीज के खून
की एक भी बूंद भूमि पर गिरती उससे अनेक दानवों का जन्म हो जाता तब माँ ने रक्तबीज
के खून को अपने खप्पर मे रोकना शुरू किया और उसका खून पीने लगीं। इस तरह महाकाली ने रक्तबीज का वध किया लेकिन तब
तक महाकाली का गुस्सा इतना विक्राल रूप से चुका था की उनको शांत करना जरुरी था मगर
हर कोई उनके समीप जाने से भी डर रहा था।
सभी देवतागण भगवान शिव के पास गए और महाकाली को
शांत करने के लिए उनसे प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव उनको शांत करने के लिए
वहाँ गए और माँ काली के मार्ग मे लेट गए , जब माँ काली का
चरण स्पर्श भगवान शिव से हुआ तब उनकी जिह्वा बाहर आ गई और माता का क्रोध शांत हो
गया ।
शांत करने के लिए उनसे प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शिव उनको शांत करने के लिए
वहाँ गए और माँ काली के मार्ग मे लेट गए , जब माँ काली का
चरण स्पर्श भगवान शिव से हुआ तब उनकी जिह्वा बाहर आ गई और माता का क्रोध शांत हो
गया ।
आज का श्लोका ज्ञान :
बलवानप्यशक्तोऽसौ
धनवानपि निर्धनः |
धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि
मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||
मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||
अर्थात्
:
जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह (:
व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख
होता है |
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