ॐ
की उत्पत्ति
ॐ ही ब्रह्म है। ॐ ही यह प्रत्यक्ष जगत् है। ॐ ही
इस जगत की अनुकृति है। ॐ-ॐ कहते हुए ही
शस्त्र रूप मन्त्र पढ़े जाते हैं। ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण
करता है। ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया जाता है। ॐ कहकर ही ब्रह्म को
प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य
धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है। बौद्ध-दर्शन में ॐ का प्रयोग जप एवं
उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया
है। श्रीमद्मागवत् गीता में ॐ के महत्व को कई बार
रेखांकित किया गया है, आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है
कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह परम गति प्राप्त करता है। तो फिर इस ॐ की उत्पत्ति कैसे और कब हुई? हमारे जीवन मे ॐ का महत्व क्या है? ॐ का शुद्ध
उच्चारण क्या है?
इस जगत की अनुकृति है। ॐ-ॐ कहते हुए ही
शस्त्र रूप मन्त्र पढ़े जाते हैं। ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मन्त्रों का उच्चारण
करता है। ॐ कहकर ही अग्निहोत्र प्रारम्भ किया जाता है। ॐ कहकर ही ब्रह्म को
प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म ही नहीं, भारत के अन्य
धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है। बौद्ध-दर्शन में ॐ का प्रयोग जप एवं
उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। जैन दर्शन में भी ॐ के महत्व को दर्शाया गया
है। श्रीमद्मागवत् गीता में ॐ के महत्व को कई बार
रेखांकित किया गया है, आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है
कि जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह परम गति प्राप्त करता है। तो फिर इस ॐ की उत्पत्ति कैसे और कब हुई? हमारे जीवन मे ॐ का महत्व क्या है? ॐ का शुद्ध
उच्चारण क्या है?
ये काल चक्र है इस काल चक्र में मैं आप सब का
अभिनंदन करता हूँ मैं आशा करता आप इस
विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करेंगे और youtube के bell icon को बजाना न भूलें हमारे latest अपडेट के लिए। आइए जानते हैं ॐ की महिमा।
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ॐ ध्वनि की प्रकृति पर ध्यान दिया जाए तो हमे पता
चलेगा की इसमे तीन अक्षरों का समावेश है अ, उ, और म। । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना,
"उ" का अर्थ है उठना, अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् मृत्यु को प्राप्त
करना। "अ" ब्रह्मा का वाचक है; उच्चारण द्वारा
हृदय में उसका त्याग होता है। "उ" विष्णु का वाचक हैं; उसका त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का वाचक है ओर उसका
त्याग तालुमध्य में होता है। इस प्रकार से ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि
तथा रुद्रग्रंथि का छेदन हो जाता है। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी
सृष्टि का द्योतक है।
चलेगा की इसमे तीन अक्षरों का समावेश है अ, उ, और म। । "अ" का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना,
"उ" का अर्थ है उठना, अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् मृत्यु को प्राप्त
करना। "अ" ब्रह्मा का वाचक है; उच्चारण द्वारा
हृदय में उसका त्याग होता है। "उ" विष्णु का वाचक हैं; उसका त्याग कंठ में होता है तथा "म" रुद्र का वाचक है ओर उसका
त्याग तालुमध्य में होता है। इस प्रकार से ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि
तथा रुद्रग्रंथि का छेदन हो जाता है। ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी
सृष्टि का द्योतक है।
आसान भाषा में कहें तो निराकार ईश्वर को एक शब्द
में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है। यह हमारे आपके स्वांस की गति को
नियंत्रित कर सकता है। विज्ञान ने भी ॐ के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया
है। यह धीमी, सामान्य और पूरी साँस छोड़ने में सहायता करती
है। यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करता
है। ॐ मंत्र आपको सांसरिकता से अलग कर के आपको स्वयं से जोड़ता है। ॐ मंत्र का जाप
हीं वह सीढ़ी है जो आपको समाधि और आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर ले जाएगी।
में व्यक्त किया जाये तो वह शब्द ॐ ही है। यह हमारे आपके स्वांस की गति को
नियंत्रित कर सकता है। विज्ञान ने भी ॐ के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया
है। यह धीमी, सामान्य और पूरी साँस छोड़ने में सहायता करती
है। यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करता
है। ॐ मंत्र आपको सांसरिकता से अलग कर के आपको स्वयं से जोड़ता है। ॐ मंत्र का जाप
हीं वह सीढ़ी है जो आपको समाधि और आध्यात्मिक ऊँचाइयों पर ले जाएगी।
दोस्तों आज से ही इस मंत्र का जप प्रारम्भ कर
दीजिये आप देखेंगे कैसे आपको हर तरह के चिंता से मुक्ति मिलती है। जप करने से पहले
काल चक्र की तरफ से बतायीं गईं कुछ विशेष बातों पर ध्यान जरूर दीजिएगा।
दीजिये आप देखेंगे कैसे आपको हर तरह के चिंता से मुक्ति मिलती है। जप करने से पहले
काल चक्र की तरफ से बतायीं गईं कुछ विशेष बातों पर ध्यान जरूर दीजिएगा।
शांत स्थान पर आरामदायक स्थिति में बैठिए।
आंखें बंद करके शरीर और नसों में ढीला छोड़िए।
कुछ लम्बी सांसें लीजिए।
ॐ मंत्र का जाप करिए और इसके कंपन महसूस कीजिए।
इस प्रकार जप करने से आप स्वयं को परम शांति तक ले
जा सकते हैं।
जा सकते हैं।
आज का श्लोका ज्ञान:
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥
भावार्थ :
पीठ पीछे काम बिगाड़नेवाले था सामने प्रिय बोलने
वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए ।
वाले ऐसे मित्र को मुंह पर दूध रखे हुए विष के घड़े के समान त्याग देना चाहिए ।
दोस्तों हमारे द्वारा ॐ के विषय मे दी गई जानकारी
अगर आपको पसंद आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें, अगर आपके मन मे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा कोई भी प्रश्न है तो हमे
कमेंट बॉक्स मे बताएं हम उस प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगे। ऐसे ही धार्मिक videos
देखने के लिए हमारे इस चैनल को subscribe जरूर
करें। धन्यवाद ।
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कु छ लोग कहते है कि ॐ खिषठ धर्मसे उत्पन हु वाहै
ReplyDeleteOm
ReplyDeleteGood line
ReplyDeleteOm Shanthi
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