Sunday, 21 April 2019

महामृत्युंजय मंत्र मे छिपा मृत्यु से बचाने का रहस्य क्या है ??? Kaal Chakra



     महामृत्युंजय मंत्र
यह शाश्वत सत्य है
कि जिसका जन्म हुआ है
, उसकी मृत्यु निश्चित है। किंतु हमें वेद, पुराण तथा अन्य शास्त्रों में मृत्यु के पश्चात
पुनः जीवित होने के वृत्तांत मिलते हैं।
 ऐसे
अनगिनत वृत्तांत शास्त्रों में मिलते हैं जिससे स्पष्ट होता है कि भगवान शिव
, जो महामृत्युंजय भगवन भी कहलाते हैं, रोग, संकट, शत्रु आदि का शमन तो करते ही हैं, जीवन तक प्रदान कर देते हैं। महर्षि वशिष्ठ, मार्कंडेय और शुक्राचार्य महामृत्युंजय मंत्र के
साधक और प्रयोगकर्ता हुए हैं। लंकापति रावण भी महामृत्युंजय मंत्र का साधक था। इसी
मंत्र के प्रभाव से उसने दस बार सिर काट कर उन्हें अर्पित कर दिए थे
. शुक्राचार्य के पास दिव्य महामृत्युंजय मंत्र था जिसके प्रभाव से वह युद्ध में आहत सैनिकों को
स्वस्थ कर देते थे और मृतकों को तुरंत पुनर्जीवित कर देते थे।
आइये
जानते हैं इस मंत्र की उत्पत्ति के पीछे कहानी क्या है
? किसने रचना की ऐसे अमोघ मंत्र की?
ये काल चक्र है
बात उस समय की है जब बहुत तपस्या के बाद मृकण्ड ऋषि के यहां
संतान के रूप में एक पुत्र उत्पन्न हुआ
, जिसका
नाम उन्होंने मार्कंडेय रखा। लेकिन बच्चे के लक्षण देखकर ज्योतिषियों ने कहा कि यह
शिशु अल्पायु है और इसकी उम्र मात्र 12 वर्ष है। जब मार्कंडेय का शिशुकाल बीता और
वह बोलने और समझने योग्य हुए तब उनके पिता ने उन्हें उनकी अल्पायु की बात बता दी।
साथ ही शिवजी की पूजा का बीजमंत्र देते हुए कहा कि शिव ही तुम्हें मृत्यु के भय से
मुक्त कर सकते हैं। तब बालक मार्कंडेय ने शिव मंदिर में बैठकर शिव साधना शुरू कर
दी। जब मार्कंडेय की मृत्यु का दिन आया उस दिन उनके माता-पिता भी मंदिर में शिव
साधना के लिए बैठ गए।
जब
मार्कंडेय की मृत्यु की घड़ी आई तो यमराज के दूत उन्हें लेने आए। लेकिन मंत्र के
प्रभाव के कारण वह बच्चे के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और मंदिर के बाहर से
ही लौट गए। उन्होंने जाकर यमराज को सारी बात बता दी। इस पर यमराज स्वयं मार्कंडेय
को लेने के लिए आए। यमराज की रक्तिम आंखें
, भयानक
रूप
, भैंसे की सवारी और हाथ में पाश देखकर
बालक मार्कंडेय डर गए और उन्होंने रोते हुए शिवलिंग का आलिंगन कर लिया।जैसे ही
मार्कंडेय ने शिवलिंग का आलिंगन किया स्वयं भगवान शिव प्रकट हुए और क्रोधित होते
हुए यमराज से बोले कि मेरी शरण में बैठे भक्त को मृत्युदंड देने का विचार भी आपने
कैसे किया
? इस
पर यमराज बोले- प्रभु मैं क्षमा चाहता हूं। विधाता ने कर्मों के आधार पर मृत्युदंड
देने का कार्य मुझे सौंपा है
, मैं तो बस अपना दायित्व निभाने आया हूं। इस पर शिव बोले मैंने इस
बालक को अमरता का वरदान दिया है। शिव शंभू के मुख से ये वचन सुनकर यमराज ने उन्हें
प्रणाम किया और क्षमा मांगकर वहां से चले गए। यह कथा मार्कंडेय पुराण में वर्णित
है।

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