Saturday, 27 July 2019

वैद्यनाथ धाम देवघर से जुड़ी हैरान कर देने वाली सच्चाई...Baidyanath dham s...

वैद्यनाथ
मन्दिर
भारत
के
12 ज्योतिर्लिंगों में झारखण्ड के देवघर
जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के
शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव
, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं। कहा
जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था।
यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2
दिनों पूर्व बाबा मंदिर
, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं।
इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
 पंचशूल पंचतत्वों-क्षिति, जल, पावक, गगन तथा समीर से बने मानव शरीर का
द्योतक है. मान्यता है कि यहां आने वाला श्रद्धालु अगर बाबा के दर्शन किसी कारणवश
न कर पाए
, तो
मात्र पंचशूल के दर्शन से ही उसे समस्त पुण्यफलों की प्राप्ति हो जाती है.
सावन महीने में यह पूरा क्षेत्र
केसरिया पहने शिवभक्तों से पट जाता है. भगवान भोलेनाथ के भक्त 105 किलोमीटर दूर
बिहार के भागलपुर के सुल्तानगंज में बह रही उत्तर वाहिनी गंगा से जलभर कर पैदल
यात्रा करते हुए यहां आते हैं और बाबा का जलाभिषेक करते हैं.
 आइये सुनते हैं बैद्यनाथ धाम से
जुड़ी पौराणिक कथा क्या है
?
ये काल चक्र है...
एक
बार रावण कैलाश पर्वत पर जाकर शिवजी की तपस्या करने लगा। लेकिन बहुत समय बीत जाने
के बाद भी शिवजी प्रसन्न नहीं हुए।
अब रावण यहां से हटकर हिमालय पर्वत पर
पुन: उग्र तपस्या करने लगा
,
फिर भी उसे भगवान के दर्शन नहीं हो
सके। इस पर रावण ने अपने शरीर को अग्नि में भेंट करने की ठानी। उसने दस मस्तकों को
एक-एक कर काटकर अग्नि में डालने लगा। नौ मस्तक अग्नि में समर्पित कर रावण जब दसवें
को काटने के लिए तैयार हुआ तो शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हुए।
शिव
की कृपा से उसके सभी मस्तक अपने-अपने स्थान से जुड़ गए। हाथ जोड़ कर प्रार्थना
करते हुए रावण ने वर मांगा
'हे
प्रभो! मैं अत्यंत पराक्रमी होना चाहता हूं। आप मेरे नगर में चल कर निवास करें। यह
सुन कर शिवजी बोले
, 'हे रावण! तुम मेरे शिवलिंग को उठा कर ले जाओ और इसका पूजन
करना
, किन्तु
ध्यान रहे मार्ग में कहीं भी इसे रखा
तो
यह वहीं
स्थापित हो जाएगा।
दोवताओं से सोचा की यदि भगवान शिव कैलाश छोड़
कर चले गए तो इस पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाएगा और इस समस्या के समाधान के लिए
विष्णु जी के पास गये। देवतायों कि याचना पर विष्णु जी ने एक लीला रची
इधर रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर चल पड़ा। कुछ दूर चलने के बाद उसे
लघुशंका की इच्छा हुई। उसने वहां एक चरवाहा
जिसका
नाम बैजु था
, को देखकर कुछ देर के लिए लिंग को हाथ में रखने
की गुहार लगाई। चरवाहे ने उत्तर दिया कि यदि वह जल्दी लौटकर नहीं आएगा तो शिवलिंग
को वहीं पर रख देगा। इतना सुनकर रावण उसे शिवलिंग देकर लघुशंका करने गया।
इधर
चरवाहे
जो ई भगवान विष्णु ही थे उन्होने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। पृथ्वी
पर रखते ही शिवलिंग उसी स्थान पर दृढ़ता पूर्वक जम गया। लघुशंका से लौटने के बाद
रावण ने शिवलिंग को उठाने का अथक प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हो सका। आखिर में वह
निराश होकर घर लौट गया। रावण के चले जाने पर सभी देवताओं ने वहां आकर शिवलिंग की
पूजा की। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए।
तब से यह
शिवलिंग ज्योतिर्लिंग के रूप मे प्रसिद्ध हो गया।

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