रावण के द्वारा रचे गए ये शास्त्र पढ़ेंगे तो आप भी
महापंडित बन जाएंगे
शिव तांडव स्तोत्र : रावण ने शिव
तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की। रावण ने
कैलाश पर्वत ही उठा लिया था और जब पूरे पर्वत को ही लंका ले जाने लगा, तो भगवान शिव ने
अपने अंगूठे से तनिक-सा जो दबाया तो कैलाश पर्वत फिर जहां था वहीं अवस्थित हो गया।
इससे रावण का हाथ दब गया और वह क्षमा करते हुए कहने लगा- 'शंकर-शंकर'- अर्थात क्षमा
करिए, क्षमा करिए और
स्तुति करने लग गया। यह क्षमा याचना और स्तुति ही कालांतर में 'शिव तांडव
स्तोत्र' कहलाया।
अरुण संहिता : संस्कृत के इस मूल
ग्रंथ का अनुवाद कई भाषाओं में हो चुका है। मान्यता है कि इस का ज्ञान सूर्य के
सार्थी अरुण ने लंकाधिपति रावण को दिया था। यह ग्रंथ जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा
सामुद्रिक शास्त्र का मिश्रण है।
रावण संहिता : रावण संहित जहां रावण
के संपूर्ण जीवन के बारे में बताती है वहीं इसमें ज्योतिष की बेहतर जानकारियों का
भंडार है।
चिकित्सा और तंत्र के क्षेत्र में रावण के ये ग्रंथ चर्चित
हैं- 1. दस शतकात्मक
अर्कप्रकाश, 2. दस पटलात्मक
उड्डीशतंत्र, 3. कुमारतंत्र और 4. नाड़ी परीक्षा।
रावण के ये चारों ग्रंथ अद्भुत जानकारी से भरे हैं। रावण ने
अंगूठे के मूल में चलने वाली धमनी को जीवन नाड़ी बताया है, जो
सर्वांग-स्थिति व सुख-दु:ख को बताती है। रावण के अनुसार औरतों में वाम हाथ एवं
पांव तथा पुरुषों में दक्षिण हाथ एवं पांव की नाड़ियों का परीक्षण करना चाहिए।
अन्य ग्रंथ : ऐसा कहते हैं कि रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि
पुस्तकों की रचना की थी।
इसी प्रकार शिशु-स्वास्थ्य योजना का विचारक 'अर्कप्रकाश' को रावण ने
मंदोदरी के प्रश्नों के उत्तर के रूप में लिखा है। इसमें गर्भस्थ शिशु को कष्ट, रोग, काल, राक्षस आदि
व्याधियों से मुक्त रखने के उपाय बताए गए हैं। 'कुमारतंत्र' में मातृकाओं को पूजा आदि देकर घर-परिवार को स्वस्थ रखने का
वर्णन है। इसमें चेचक, छोटी माता, बड़ी माता जैसी
मातृ व्याधियों के लक्षण व बचाव के उपाय बताए गए हैं।