Thursday, 9 September 2021

हनुमान जी और नागराज वासुकि के बीच महाप्रलयंकारी युद्ध क्यों हुआ ? Lord H...

हनुमान जी और नाग वशूकी युद्ध

हनुमान वानर योनि के होकर भी, मनुष्य की भाँति, अपनी बौद्धिक, मानसिक क्षमताओं का विकास करने में सफल रहे और अपनी लगन, श्रद्धा, कर्मठता, सज्जनता, ब्रह्मचर्य, साहस, वीरता, सेवा आदि सद्गुणों से देवताओं की भाँति पूजित हुए। हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। हनुमान जी भक्तों के हित के लिए सतत संकल्पित हैं। भक्त जिस हाल में भी उनको पुकारता है वे उसके संकटों को दूर करने में लग जाते हैं। भक्त की एक भावभरी पुकार से भी वे उसकी आराधना को स्वीकार कर लेते हैं. हनुमानजी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता निरअंहकारिता थी ।जिसका आशय है कि वो तो इतने ताकतवर थे कि वो सूरज तक को खा गये थे,वो सब कुछ कर सकते थे,मगर कभी भी उन्होंने अंहकार नहीं किया ।इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब उन्होंने सहस्त्र योजन समुद्र को पारकरके,सीताजी का पता लगा लिया,लंका दहन कर दिया और माँ सीता की अँगुठी लाकर अपने प्रभु राम को सीताजी के विषय में अवगत कराया और फिरभी श्रीरामजी के पूछने पर वो बार-बार यही कहते रहे कि ये तो मैंने नहीं किया,ये तो सब आपने किया है प्रभु।ये सब आपकी कृपा है।इसमें मेरा कोई योगदान नहीं है।हम सभीको हनुमानजी से ये सीख लेनी चाहिए कि अपने अन्दर के अंह भाव को जला दें और हमेशा विनम्र होकर रहना सीखें। पौराणिक पत्रों मे एक पत्र है नाग वासुकि  धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्रमंथन के समय नागराज वासुकी की नेती बनाई गई थी। त्रिपुरदाह के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।

दोस्तों क्या आपको पता रामायण काल मे एक वक्त ऐसा भी आया था जब नाग वासुकि और hanuman ji के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था आखिर कौन विजयी हुआ इस युद्ध मे ? वशूकी नाग और hanuman ji मे कौन अधिक शक्तिशाली हैं ?

बात तब की है जब सुंदरकांड में हनुमानजी सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे थे, तब उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सुरसा और सिंहिका नाम की राक्षसियों ने हनुमानजी को समुद्र पार करने से रोका था,हनुमानजी ने समुद्र पार करते समय सुरसा से लड़ने में समय नहीं गंवाया। सुरसा हनुमान को खाना चाहती थी। उस समय हनुमानजी ने अपनी चतुराई से पहले अपने शरीर का आकार बढ़ाया और अचानक छोटा रूप कर लिया। छोटा रूप करने के बाद हनुमानजी सुरसा के मुंह में प्रवेश करके वापस बाहर आ गए। हनुमानजी की इस चतुराई से सुरसा प्रसन्न हो गई और रास्ता छोड़ दिया।

आगे चलते हुए उनका सामना नाग राज वासुकि से हुआ, नागराज वासुकि ने देखा की आज तक इस समुद्र को कोई पर नहीं कर पाया है फिर यर कौन वानर है जो उड़ता चला जा रहा है इसी कौतूहल वश नाग राज वासुकि हनुमान जी के समक्ष प्रकट हो गए और उनसे सवाल किया आप कौन हैं और कहा जा रहे हैं ... हनुमान जी यहाँ भी समय नही गवाना चाहते थे और उन्होने ने सोचा की ये कोई साधारण नाग है उन्होने बिना परिचय दिये ही आगे बढ़ गए। नाग राज वशूकी को क्रोध आ गया उन्होने हनुमान जी को अपने पुंछ मे बांध लिया। हनुमान जी समझ गए ये कोई साधारण नाग नहीं है हनुमान जी ने अपनी शक्ति दिखाई और किसी तरह नाग राज वशूकी के बंधन से खुद को मुक्त किया। नागराज वासुकि और हनुमान जी के बीच घमासान युद्ध प्रारम्भ हो गया। उसके बाद नागराज वासुकि ने कई बार हनुमान जी को बांधने का प्रयास किया लेकिन हनुमान जी हर बार उनके प्रहार से बच निकलते। हनुमान जी ने अपनी गदा का प्रहार नाग राज वासुकि पर किया लेकिन उस भयंकर गदा प्रहार के बावजूद वशूकी पर इसका असर नहीं हुआ वशूकी नाग की शक्ति का नदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की उनही को समुद्रमन्थन के दौरान मंदरचल पर्वत मे बांध कर समुद्रमन्थन किया गया था। हनुमान जी और नाग वासुकि का युद्ध अपने चरम पर पहुँच गया था तभी भगवान शिव का आगमन हुआ... नाग वशूकी पर भगवान शिव की असीम कृपा है और हनुमान जी भगवान शिव के अंसअवतार हैं इसीलिए दोनों के इस युद्ध को रोकने के लिए भगवान शिव स्वयं उपस्थित हुए तब जा कर हनुमान जी को और नागराज वशूकी को एक दूसरे के विषय मे ज्ञात हुआ। नागराज वासुकि ने हनुमान जी से माफी मांगी और उनका रास्ता छोड़ दिया हनुमान जी अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़े.....   

 

 

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