चरधाम यात्रा — बद्रीनाथ
हिन्दू धर्म के समस्त मूल्यों
का निकटतम अनुभव ही चार धाम की यात्रा है। एक ऐसी यात्रा जहाँ भारतीयता के गौरव
कलश आकाश को छूते हैं ; जहाँ की
प्राकृतिक वादियों में जीवन के संताप से उत्तप्त मन चिर विश्राम का साक्षी बनता
है। उत्तर मे बद्रीनाथ दक्षिण मे रामेश्वरम पूरब मे जगनाथ पूरी और पशिम मे
द्वारका-- इनमे मानवीय प्रेम और श्रद्धा के ऐसे प्रदीप्त शिखर हैं; जहाँ से शांति और धर्म के नित नए झरने उदित होते हैं और जहाँ
आशा और विश्वास के नए पुष्प उगते हैं। चारधाम की स्थापना आद्य गुरु शंकराचार्य ने
की,
उद्देश्य था उत्तर, दक्षिण, पूर्व
और पश्चिम चार दिशाओं में स्थित इन धामों की यात्रा कर मनुष्य भारत की सांस्कृतिक
विरासत को जाने-समझें। आज प्रत्येक हिन्दू की यह इच्छा रहती है कि वह अपने जीवन
काल में कम से कम एक बार अवश्य चार धाम की यात्रा का सुख भोगे। यही वजह है कि दो
वर्ष पूर्व उत्तराखंड में आई भयानक बाढ़ की विभीषिका के बाद भी यहाँ श्रद्धालुओं
की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। लोग सपरिवार इन यात्राओं में शामिल होकर आनंद
और उत्सव की अनुभूति करते हैं। दोस्त आज हम इस विडियो के माध्यम से श्रीबद्रीनाथ
धाम की यात्रा करेंगे। और इस धाम से जुडी पौराणिक कथा सुनेंगे.
का निकटतम अनुभव ही चार धाम की यात्रा है। एक ऐसी यात्रा जहाँ भारतीयता के गौरव
कलश आकाश को छूते हैं ; जहाँ की
प्राकृतिक वादियों में जीवन के संताप से उत्तप्त मन चिर विश्राम का साक्षी बनता
है। उत्तर मे बद्रीनाथ दक्षिण मे रामेश्वरम पूरब मे जगनाथ पूरी और पशिम मे
द्वारका-- इनमे मानवीय प्रेम और श्रद्धा के ऐसे प्रदीप्त शिखर हैं; जहाँ से शांति और धर्म के नित नए झरने उदित होते हैं और जहाँ
आशा और विश्वास के नए पुष्प उगते हैं। चारधाम की स्थापना आद्य गुरु शंकराचार्य ने
की,
उद्देश्य था उत्तर, दक्षिण, पूर्व
और पश्चिम चार दिशाओं में स्थित इन धामों की यात्रा कर मनुष्य भारत की सांस्कृतिक
विरासत को जाने-समझें। आज प्रत्येक हिन्दू की यह इच्छा रहती है कि वह अपने जीवन
काल में कम से कम एक बार अवश्य चार धाम की यात्रा का सुख भोगे। यही वजह है कि दो
वर्ष पूर्व उत्तराखंड में आई भयानक बाढ़ की विभीषिका के बाद भी यहाँ श्रद्धालुओं
की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। लोग सपरिवार इन यात्राओं में शामिल होकर आनंद
और उत्सव की अनुभूति करते हैं। दोस्त आज हम इस विडियो के माध्यम से श्रीबद्रीनाथ
धाम की यात्रा करेंगे। और इस धाम से जुडी पौराणिक कथा सुनेंगे.
ये काल चक्र है....
उत्तराखंड, उत्तर भारत में स्थित एक बहुत ही खूबसूरत और शांत पर्यटन केंद्र है। इस जगह का
शुमार देश की उन चुनिन्दा जगहों में है जो अपनी सुन्दरता के चलते दुनिया भर के पर्यटकों
को अपनी ओर आकर्षित करती है। 'देवताओं की भूमि' के रूप में जाना जाने वाला उत्तराखंड अपने शांत वातावरण, मनमोहक दृश्यों और खूबसूरती के कारण विश्व
विख्यात है। यही पर अलखनंदा नदी के तेज प्रवाह के किनारे बदरी नारायण मंदिर जिसे
बद्रीनाथ धाम भी कहते हैं स्थित है. भगवान विष्णु का यह मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर है.
मंदिर तीन भागों में विभाजित है,
गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां
है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा.
यहां भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित है। जिसके दाहिने ओर कुबेर
लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां है। वेदिक भजनों
और घंटियों की आवाज गूंजने के साथ मंदिर में स्वर्गीय वातावरण पैदा होता है। पास
के ही तप्त कुंड में डुबकी के बाद तीर्थयात्री पूजा समारोह में शामिल हो सकते हैं।
सुबह की पूजा का क्रम ऐसा हैं – सबसे पहले महाआरती, अभिषेक, गीतापाठ और भागवत मार्ग, और शाम पूजा गीता गोविंद और आरती की जाती हैं।
शुमार देश की उन चुनिन्दा जगहों में है जो अपनी सुन्दरता के चलते दुनिया भर के पर्यटकों
को अपनी ओर आकर्षित करती है। 'देवताओं की भूमि' के रूप में जाना जाने वाला उत्तराखंड अपने शांत वातावरण, मनमोहक दृश्यों और खूबसूरती के कारण विश्व
विख्यात है। यही पर अलखनंदा नदी के तेज प्रवाह के किनारे बदरी नारायण मंदिर जिसे
बद्रीनाथ धाम भी कहते हैं स्थित है. भगवान विष्णु का यह मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर है.
मंदिर तीन भागों में विभाजित है,
गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां
है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची काले पत्थर की प्रतिमा.
यहां भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित है। जिसके दाहिने ओर कुबेर
लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियां है। वेदिक भजनों
और घंटियों की आवाज गूंजने के साथ मंदिर में स्वर्गीय वातावरण पैदा होता है। पास
के ही तप्त कुंड में डुबकी के बाद तीर्थयात्री पूजा समारोह में शामिल हो सकते हैं।
सुबह की पूजा का क्रम ऐसा हैं – सबसे पहले महाआरती, अभिषेक, गीतापाठ और भागवत मार्ग, और शाम पूजा गीता गोविंद और आरती की जाती हैं।
बद्रीनाथ धाम से जुडी अनेक कथाएं हमारे
धर्म ग्रन्थों में मौजूद है इन्ही में से एक सबसे परचलित कथा के अनुसार एक बार
भगवन विष्णु इस पृथ्वी पर तपस्य के लिए एकांत स्थान ढूढ़ते हुए यहाँ अलकनंदा नदी के
तट पर पहुंचे उन्हें यहाँ का प्राकृतिक सुन्दर्य इस कदर भाया की उन्होंने यही पर
तपस्या करने का निश्चय किया. भगवन विष्णु ध्यान मग्न हो गए. भगवान विष्णु योगध्यान
मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में
पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा
और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप
ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने
लगीं. माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से
बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप
पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी
के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ
पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से
मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और कहा जाता है की उनके
तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
धर्म ग्रन्थों में मौजूद है इन्ही में से एक सबसे परचलित कथा के अनुसार एक बार
भगवन विष्णु इस पृथ्वी पर तपस्य के लिए एकांत स्थान ढूढ़ते हुए यहाँ अलकनंदा नदी के
तट पर पहुंचे उन्हें यहाँ का प्राकृतिक सुन्दर्य इस कदर भाया की उन्होंने यही पर
तपस्या करने का निश्चय किया. भगवन विष्णु ध्यान मग्न हो गए. भगवान विष्णु योगध्यान
मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में
पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा
और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप
ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने
लगीं. माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से
बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप
पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी
के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ
पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से
मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और कहा जाता है की उनके
तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
ऋषिकेश से बद्रीनाथ धाम की दूरी 295 किलोमीटर की है। साथ ही सर्दियों में बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद रहते हैं और
पूरा क्षेत्र निर्जन रहता है इसलिये सर्दियों के समय बद्रीनाथ की यात्रा नहीं की
जाती मई महीने से लेकर नवबंर तक बद्रीनाथ धाम की यात्रा किये जाते हैं।
पूरा क्षेत्र निर्जन रहता है इसलिये सर्दियों के समय बद्रीनाथ की यात्रा नहीं की
जाती मई महीने से लेकर नवबंर तक बद्रीनाथ धाम की यात्रा किये जाते हैं।
आज का श्लोक ज्ञान:
रविश्चन्द्रो घना वृक्षा नदी गावश्च
सज्जनाः।
सज्जनाः।
एते परोपकाराय युगे दैवेन निर्मिता ॥
भावार्थ :
सूर्य, चन्द्र, बादल, नदी, गाय और सज्जन - ये हरेक युग में ब्रह्मा ने परोपकार के लिए निर्माण किये हैं.
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