अघोरी साधुओं की मायावी व रहस्यमयी दुनिया
की के अनजाने तथ्य
की के अनजाने तथ्य
माना जाता है कि शमशान जिन्दगी का आखिरी पड़ाव होता है जिसके बाद
दुनिया की सारी चीज़े बेमतलब हो जाती है। लेकिन इसी श्मशान में मुर्दों के बीच कुछ
जिन्दगियाँ भी रहती है जो मुर्दों में ही जिन्दगी तलाशती है। जब पूरी दुनिया सो
जाती है तो ये अपनी साधना में जागते है। इनकी अपनी खुद की एक अलग ही मायावी दुनिया है जहाँ इनके लिये इंसानी खोपड़ी पायला होता है और मूर्दा निवाला। श्मशान बिस्तर बन जाती है और चिता
चादर। दोस्तों आज हम ऐसे लोगों की जिंदगी से पर्दा उठाएंगे जिनकी खुद की जिंदगी
सदियों से रहस्य के पर्दे में है। हम बात कर रहे हैं श्मशान की साधाना में
इंसानी चोलों को उतारकर फेंक देने वाले “अघोरियों” की। अघोरी साधू हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं इसीलिए आज हम इस विडियो
के माध्यम से अघोरियों के बारे में सम्पूर्ण तथ्य लेकर आये है. अधोरी कौन होते है, क्या करते है, कैसे रहते है, उनकी साधना के क्या नियम है ?
दुनिया की सारी चीज़े बेमतलब हो जाती है। लेकिन इसी श्मशान में मुर्दों के बीच कुछ
जिन्दगियाँ भी रहती है जो मुर्दों में ही जिन्दगी तलाशती है। जब पूरी दुनिया सो
जाती है तो ये अपनी साधना में जागते है। इनकी अपनी खुद की एक अलग ही मायावी दुनिया है जहाँ इनके लिये इंसानी खोपड़ी पायला होता है और मूर्दा निवाला। श्मशान बिस्तर बन जाती है और चिता
चादर। दोस्तों आज हम ऐसे लोगों की जिंदगी से पर्दा उठाएंगे जिनकी खुद की जिंदगी
सदियों से रहस्य के पर्दे में है। हम बात कर रहे हैं श्मशान की साधाना में
इंसानी चोलों को उतारकर फेंक देने वाले “अघोरियों” की। अघोरी साधू हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं इसीलिए आज हम इस विडियो
के माध्यम से अघोरियों के बारे में सम्पूर्ण तथ्य लेकर आये है. अधोरी कौन होते है, क्या करते है, कैसे रहते है, उनकी साधना के क्या नियम है ?
ये काल चक्र है....
हिन्दू धर्म में एक “शैव संप्रदाय” है जो “शिव साधक” से सम्बंधित है। इसी
सम्प्रदाय में साधना की एक रहस्यमयी शाखा है “अघोरपंथ” जिसका पालन करने वालों को अघोरी साधू कहते हैं। अघोरियों का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है। लेकिन आज इनकी संख्या काफी कम हो
गई है। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है क्योंकि
शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी
भी। उनकी अपनी शैली है, अपना विधान है और अपनी अलग साधना विधियां हैं, जो कि सबसे ज्यादा
रहस्यमयी होती है। अघोरियों की दुनिया ही नहीं,
उनकी हर बात निराली है।
सम्प्रदाय में साधना की एक रहस्यमयी शाखा है “अघोरपंथ” जिसका पालन करने वालों को अघोरी साधू कहते हैं। अघोरियों का इतिहास करीब 1000 वर्ष पुराना है। लेकिन आज इनकी संख्या काफी कम हो
गई है। अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है क्योंकि
शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी
भी। उनकी अपनी शैली है, अपना विधान है और अपनी अलग साधना विधियां हैं, जो कि सबसे ज्यादा
रहस्यमयी होती है। अघोरियों की दुनिया ही नहीं,
उनकी हर बात निराली है।
आम इंसानों से दूरी बनाकर रहने वाले ये साधु
भांग-धतूरे के नशे में रहते हैं। इन्हें जीवन यापन करने के लिए किसी सुख-सुविधा की
जरूरत नहीं होती. अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु भी समझा जाता है लेकिन अघोर
का अर्थ है अ घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। ब्रह्माण्ड
में व्याप्त समस्त तत्वों में सम भाव रखना, निर्मल तथा घृणित सभी वस्तुओं में ब्रह्म की
अनुभूति करना ही इनके साधन पद्धति का मुख्य उद्देश्य हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट
पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है। इस चराचर जगत में व्याप्त प्रत्येक वास्तु
फिर वह जीवित हो या मृत, पवित्र हो या अपवित्र, सड़ा हो या पुष्ट सभी में ब्रह्म तत्व या ईश्वर का अनुभव करना पड़ता
हैं, प्रत्येक वस्तु ईश्वर द्वारा ही निर्मित हैं।
भांग-धतूरे के नशे में रहते हैं। इन्हें जीवन यापन करने के लिए किसी सुख-सुविधा की
जरूरत नहीं होती. अघोरियों को डरावना या खतरनाक साधु भी समझा जाता है लेकिन अघोर
का अर्थ है अ घोर यानी जो घोर नहीं हो, डरावना नहीं हो, जो सरल हो, जिसमें कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं। ब्रह्माण्ड
में व्याप्त समस्त तत्वों में सम भाव रखना, निर्मल तथा घृणित सभी वस्तुओं में ब्रह्म की
अनुभूति करना ही इनके साधन पद्धति का मुख्य उद्देश्य हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट
पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है। इस चराचर जगत में व्याप्त प्रत्येक वास्तु
फिर वह जीवित हो या मृत, पवित्र हो या अपवित्र, सड़ा हो या पुष्ट सभी में ब्रह्म तत्व या ईश्वर का अनुभव करना पड़ता
हैं, प्रत्येक वस्तु ईश्वर द्वारा ही निर्मित हैं।
दुनिया में सिर्फ चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां
तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। अघोरपंथ के अघोरी साधु इन चार
स्थानों पर ही शव और श्मशान साधना करते हैं। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम
बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान। चार
स्थानों के अलावा वे शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं।
तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। अघोरपंथ के अघोरी साधु इन चार
स्थानों पर ही शव और श्मशान साधना करते हैं। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम
बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान। चार
स्थानों के अलावा वे शक्तिपीठों, बगलामुखी, काली और भैरव के मुख्य स्थानों के पास के श्मशान में साधना करते हैं।
दोस्तों हजारों वर्षों से चली आ रही परंपराओं के
कारण हिन्दू धर्म में कई ऐसी अंतरविरोधी और विरोधाभाषी विचारधाराओं का समावेश हो
चला है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपरा की देन है। लेकिन उन सभी विचारधाराओं
का सम्मान करना भी जरूरी है, क्योंकि धर्म का किसी तरह की विचारधारा से संबंध नहीं, बल्कि सिर्फ और
सिर्फ ‘ब्रह्म ज्ञान’ से संबंध है.
कारण हिन्दू धर्म में कई ऐसी अंतरविरोधी और विरोधाभाषी विचारधाराओं का समावेश हो
चला है, जो स्थानीय संस्कृति और परंपरा की देन है। लेकिन उन सभी विचारधाराओं
का सम्मान करना भी जरूरी है, क्योंकि धर्म का किसी तरह की विचारधारा से संबंध नहीं, बल्कि सिर्फ और
सिर्फ ‘ब्रह्म ज्ञान’ से संबंध है.
No comments:
Post a Comment