शकुनि के पासे का रहस्य
दुर्योधन और शकुनि राजा धृतराष्ट्र के पास गये और उनसे चौसर
के खेल का आयोजन रखने का आग्रह किया। धृतराष्ट्र ने कहा कि वो विदुर की सलाह के
पश्चात इसका निर्णय करेंगे लेकिन दुर्योधन ne बिना पूछे इस
खेल का आयोजन करने के लिए अपने पिता को बाध्य किया। अंत में धृतराष्ट्र को उनकी
बात माननी पड़ी और उसें चौसर के खेल के आयोजन की घोषणा करवाई। विदुर को जब इस बात
का पता चला तो उन्होंने धृतराष्ट्र को बताया कि इस खेल से हमारे कुल का नाश हो
जाएगा लेकिन पुत्र प्रेम में धृतराष्ट्र कुछ नही बोले। भीष्म पितामह भी चुप रहे।
धृतराष्ट्र ने विदुर को युधिष्ठिर को खेल का न्योता देने को भेजा। दोस्तों उस चौसर यानि जुए के खेल के बाद क्या हुआ आप सब को
पता है परंतु उस जुवे के खेल मे मामा शकुनि के पासे की महत्वपूर्ण भूमिका थी आइये
जानते हैं आखिर उनके पासे का क्या रहस्य था।
यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शकुनि के पास जुआ खेलने
के लिए जो पासे होते थे वह उसके मृत पिता की हड्डी के थे। अपने पिता की मृत्यु के
पश्चात शकुनि ने उनकी कुछ शक्तियों को अपने पास रख ली थी। शक्तिुनि जुआ खेलने में
पारंत था और उसने कौरवों में भी जुए के प्रति मोह जगा दिया था।
शकुनि की इस चाल के पीछे सिर्फ पांडवों का ही नहीं बल्कि
कौरवों का भी भयंकर विनाश छिपा था, क्योंकि शकुनि ने कौरव कुल के विनाश की सौगंध खाई थी और
उसके लिए उसने दुर्योधन को अपना आश्रम बना लिया था। शकुनि हर समय बस मौकों की तलाश
में रहता था जिसके कारण कौरव और पंडवों में भयंकर युद्ध स्ट्रोकें और कौरव मारे
गए।
जब युधिष्ठिर हस्तिनापुर का युवराज घोषित हुआ, तब शकुनि ने ही
लाक्षागृह का षडयंत्र रचा और सभी पांडवों को वारणावत में जिंदा जलाकर मार डालने का
प्रयत्न किया। शक्तिुनि किसी भी तरह दुर्योधन को हस्तिनापुर का राजा बनते देखना
चाहती थी ताकि उसकी दुर्योधन पर मानसिक आशिपत्य रहे और वह इस मुर्ख दुर्योधन की
सहायता से भीष्म और कुरुकुल के विनाश कर सके इसलिए उसने पांडवों के प्रति दुर्योधन
के मन में वैरभाव जगाया
ऐसा भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे में उसके पिता की
आत्मा वसस कर गई थी जिसकी वजह से वह पासा शकुनि की ही बात मानता था। कहते हैं कि
शकुनि के पिता ने मरने से पहले शकुनी से कहा था कि मेरे मरने के बाद मेरी हड्डियों
से पासा बनाना, ये पासे हमेशा
तुम्हारी आज्ञा मानेंगे, तुमको जुए में
कोई हरा नहीं सकूंगा। यह भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे के भीतर एक जीवित भंवरा
था जो हर बार शकुनि के पैरों की ओर आकर गिरता था। इसलिए जब भी पासा गिरता वह छ:
अंक दिखाता था। शकुनि भी इस बात से वाकिफ था इसलिए वह भी छ: अंक ही कहता था। शकुनि
का सौतेला भाई मटकुनि इस बात को जानता था कि पासे के भीतर भंवरा है।
हालांकि शकुनि की बारी की भावना कि इस कहानी का वर्णन
वेदव्यास कृत महाभारत में नहीं मिलता है। यह कहानी लोककथा और जनश्रुतियों पर
आधारित है कि उसके परिवार को धृतराष्ट्र ने जेल में डाल दिया था जहां उसके
माता-पिता, पिता और भाई भूख
से मारे गए थे। बहुत से विद्वानों का मत है कि शकुनि के पासे हाथीदंत के बने हुए
थे। शकुनि मायाजाल और सम्मोहन की मदद से पासो को अपने पक्ष में उलट देता था। जब
पांसे फेंके जाते थे तो कई बार उनके निर्णय पांडवों के पक्ष में होते थे, ताकि पांडव भ्रम
में रहे कि पासे सही हैं।
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