मैंने
लोगों को कहते सुना है की वो प्रेम में हैं उन्हें प्रेम हुआ है । हालाँकि
अधिकांशतः लोगों को प्रेम नहीं होता बस प्रेम होने का भ्रम मात्र होता है । प्रेम
आपके चित्त को बदलता है जब आप प्रेम में होते हैं तो आप पूर्ण रूप से प्रेम में ही
होते हैं । प्रेम बहुत व्यापक होता है ये केवल उस व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहता
जिससे आपको प्रेम हुआ है वरन ये आपके चरो तरफ़ हर किसी में फैल जाता है । अगर आप
कहते है की आप प्रेम में हैं और किसी से भी घृणा करते हैं तो जानिए आप भ्रम में
हैं की आप प्रेम में हैं । अगर किसी के लिए आपमें प्रेम जागृत हो जाता है तो ये
प्रेम आपकी पूरी दुनिया को महका देगा । केवल जिसके लिय प्रेम जगा उससे ही आपकी
संवेदना नहीं जुड़ेगी बल्कि आपकी. संवेदना हर किसी से जुड़ जाएगी । आपको पूरी
सृष्टि से प्रेम हो जाएगा ,हर
कोई जीवित हो या कोई निर्जीव कण. आपको हर कोई प्रेम से भरा लगेगा और जिससे कारण ये
प्रेम जागृत हुआ है वो व्यक्ति विशेष आपकी प्रेम से भरी सृष्टि का स्वामी हो जाएगा
।
आप
पूछेंगे की ठीक जिससे प्रीत लगी वो स्वामी हो गया , पूरी सृष्टि प्रेम मय हो गयी तो मैं
क्या हुआ ? आप फिर रह ही नहीं जाएँगे । प्रेम का
सबसे पहला काम वो आपके मैं को मार देता है । मैं यानी अहंकार । देखिए हर इंसान की
ये प्रवृत्ति होती है की वो अपने आप को बहुत प्रेम करता है । अपने आपको सबसे पहले
रखता है अपनी चिंता सबसे पहले करता है । जब आपको प्रेम होता है तो आपको अपने से भी
अधिक मूल्य. उसे देना होता है जिससे आपको प्रेम है । उसकी ख़ुशी में आपकी ख़ुशी हो
जाती है फिर आपकी ख़ुशी का कोई अस्तित्व कहाँ रह जाता है । किसी और को अपने से
अधिक महत्व आप तब ही दे पाएँगे जब आपका मैं यानी अहंकार नाश हो जाय।
कृष्ण
एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे
अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने
वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं। वो एक सज्जन
पुरुष हैं, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं।क्या
आपको पता है कृष्ण के काल मे ही एक ऐसा मानव भी था जो स्वयं को कृष्ण कहता था उसका
नाम था पौंडरिक । भगवान कृष्ण की नकल करने के कारण ही एक बार उसका सामना भगवान
हनुमान से हुआ था आइए जानते हैं क्या जब भगवान हनुमान और पौंडरिक के बीच हुआ
महाभ्यंकर युद्ध। कौन विजयी हुआ इस युद्ध में ?
पौंडरिक और हनुमान जी के बीच कौन अधिक शक्तिसली था ?
चुनार देश का प्राचीन नाम करुपदेश था।
वहां के राजा का नाम पौंड्रक था। कुछ मानते हैं कि पुंड्र देश का राजा होने से इसे
पौंड्रक कहते थे। कुछ मानते हैं कि वह काशी नरेश ही था। चेदि देश में यह ‘पुरुषोत्तम’ नाम से सुविख्यात था। इसके पिता का नाम
वसुदेव था। इसलिए वह खुद को वासुदेव कहता था। यह द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित था।
कौशिकी नदी के तट पर किरात, वंग
एवं पुंड्र देशों पर इसका स्वामित्व था। यह मूर्ख एवं अविचारी था।
पौंड्रक
को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि असल में वही परमात्मा वासुदेव और
वही विष्णु का अवतार है, मथुरा
का राजा कृष्ण नहीं। कृष्ण तो ग्वाला है। पुराणों में उसके नकली कृष्ण का रूप धारण
करने की कथा आती है।
राजा
पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता
था। एक दिन उसने भगवान कृष्ण को यह संदेश भी भेजा था कि ‘पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर
उनका उद्धार करने के लिए मैंने वासुदेव नाम से अवतार लिया है। भगवान वासुदेव का
नाम एवं वेषधारण करने का अधिकार केवल मेरा है। इन चिह्रों पर तेरा कोई भी अधिकार
नहीं है। तुम इन चिह्रों एवं नाम को तुरंत ही छोड़ दो, वरना युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।’
उस वक्त तो भगवान कृष्ण ने उसके इस संदेश को
नजरंदाज कर दिया । उन्हीं दिनो आकाश मे उड़ते हनुमान जी की नजर उस नकली कृष्ण पर
पड़ी उन्होने देखा की एक व्यक्ति भगवान कृष्ण की वेश भूषा धरण किए हुए है और अपनी
प्रजा पर अत्याचार किए जा रहा है । हनुमान जी को बड़ी हैरानी हुई वो नीचे आए और दूर
से सबकुछ देख कर समझ गए की यह मूरख खुद को भगवान कृष्ण समझ रहा है और सभी को यही
कह रहा है की वो उसे ही कृष्ण माने । हनुमान जी उसके पास गए और बोले अरे दुष्ट
मानव तू खुद को कृष्ण बोल रहा है और अपनी प्रजा पर अत्याचार कर रहा है कृष्ण कभी
ऐसा नही करते हैं और अगर कृष्ण को पता चल गया की ऐसा कुछ हगो रहा है तो वो तुझे
दंड देंगे । यह सुनकर पौंडरिक आग बबूला हो गया और बोला – अरे वानर तू कौन है और
तुझमे इतनी हिम्मत है तो मुझसे युद्ध कर तुझे पता लग जाएगा की कौन असली कृष्ण है ।
हनुमान जी और पौंडरिक दोनों के बीच युद्ध प्रारम्भ
हो गया हनुमान जी ने पौंडरिक को अपनी पुंछ मे लपेट कर भूमि मे पटक दिया पौंडरिक
गुस्से मे उठा और जैसे ही प्रहार करने के लिए आगे बढ़ा हनुमान जी के मुक्के के एक
हल्के से प्रहार से पुनः भूमि मे गिर गया पौंडरिक जितनी बार उठाने की कोशिश करता
उतनी बार हनुमान जी मुक्का मरते और वो भूमि मे गिर जाता । जब वो नही उठ पाया तब
हनुमान जी ने कहा की मै चाहता तो तुम्हारा वध यही कर सकता हूँ लेकिन तुम्हारी
मृत्यु मेरे हाथों ने नहीं लिखी तुम्हारा वध वही करेंगे जिनका वेश तूने धरण कर रखा
है । इतना कह कर हनुमान जी वहाँ से चले गए ।
बहुत
समय तक श्रीकृष्ण उसकी बातों और हरकतों को नजरअंदाज करते रहे, बाद में उसकी ये सब बातें अधिक सहन
नहीं हुईं। उन्होंने प्रत्युत्तर भेजा, ‘तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करूंगा।'
यह
सुनकर पौंड्रक कृष्ण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू करने लगा। अपने मित्र
काशीराज की सहायता प्राप्त करने के लिए वह काशीनगर गया। यह सुनते ही कृष्ण ने
ससैन्य काशीदेश पर आक्रमण किया।
कृष्ण
आक्रमण कर रहे हैं- यह देखकर पौंड्रक और काशीराज अपनी-अपनी सेना लेकर नगर की सीमा
पर आए। युद्ध के समय पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मूल्यवान आभूषण आदि धारण किया था एवं
वह गरूड़ पर आरूढ़ था।
नाटकीय
ढंग से युद्धभूमि में प्रविष्ट हुए इस ‘नकली कृष्ण’ को
देखकर भगवान कृष्ण को अत्यंत हंसी आई। इसके बाद में बदले की भावना से पौंड्रक के
पुत्र सुदक्षण ने कृष्ण का वध करने के लिए मारण-पुरश्चरण किया,
लेकिन द्वारिका की ओर गई वह आग की लपट
रूप कृत्या ही पुन: काशी में आकर सुदक्षणा की मौत का कारण बन गई। उसने काशी नरेश
पुत्र सुदक्षण को ही भस्म कर दिया।बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण
पुन: द्वारिका चले गए।
कृष्ण
एक किंवदंती, एक कथा, एक कहानी। जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत! प्रेम को
परिभाषित करने और उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा,
वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए। मां के
लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। महाभारत युद्ध,
जिसके नायक भी वे हैं,
पर कितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में
उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर से भी पकड़ो कि यह अंक
में समा जाए, पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के
नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही
शिरोधार्य कर सकता है। दोस्तों आज इस विडियो मे हम भगवान कृष्ण के
शत्रुओं के बारे मे बात करते हैं और ये एसएमजेएचने का प्रयास करते है की भगवान
कृष्ण का सबसे खतरनाक शत्रु कौन था ??
कंस
श्रीकृष्ण की मां देवकी के भाई कंस श्रीकृष्ण के सबसे बड़े दुश्मन थे. कंस का अपनी
बहन के प्रति लगाव था, लेकिन
जब भविष्यवाणी हुई कि देवकी के गर्भ से पैदा हुआ बालक ही कंस का वध करेगा तो उसने
पहले सात बच्चों की हत्या कर दी. जब कृष्ण का जन्म हुआ तो पिता वासुदेव उन्हें दबे
पांव मथुरा में यशोदा के यहां छोड़ आए. कंस को इसकी भनक तक नहीं लगी. आगे चलकर
श्रीकृष्ण ही कंस की मौत का कारण बने.
जरासंध
कंस की मौत के बाद उनके ससुर जरासंध कृष्ण की जान के दुश्मन बन गए. जरासंध बृहद्रथ
नाम के राजा का पुत्र था. श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने के लिए भीम और अर्जुन की
सहायता ली. तीनों हुलिया बदलकर जरासंध के पास पहुंचे. लेकिन उसे इस ढोंग के बारे
में पता चल गया. अंत में भीम ने उसे कुश्ती करने की चुनौती दे डाली. भीम को पता था
कि जरासंध को हराना इतना आसान नहीं है. श्रीकृष्ण ने जैसे ही एक तिनके के दो
हिस्से कर उन्हें विपरीत दिशाओं में फेंका भीम इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध को
बीच में चीरकर उसके जिस्म के दोनों हिस्सों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया.
कालयवन
कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया था. तभी श्रीकृष्ण ने उसे संदेश भेजा कि
युद्ध सिर्फ कृष्ण और कालयवन में होगा. कालयवन ने स्वीकार कर लिया. कालयवन को शिव
का वरदान मिला था, इसलिए
उसे कोई नहीं मार सकता था. युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण मैदान छोड़कर भाग निकले और
कालयवन उनके पीछे एक गुफा में चला गया. गुफा में सो रहे राजा मुचुकुंद को कृष्ण ने
अपनी पोशाक से ढक दिया. कालयवन ने जैसे ही मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठाया उनकी नजर
पड़ते ही वो भस्म हो गया. मुचुकुंद को वरदान मिल रखा था कि जब भी कोई उसे नींद से
जगाएगा, उनकी नजर पड़ते ही वो भस्म हो जाएगा.
शिशुपाल
शिशुपाल 3 जन्मों से श्रीकृष्ण से बैर-भाव रखे
हुआ था. एक यंज्ञ में सभी राजाओं को बुलाया गया. ये यज्ञ श्री कृष्ण और पांडवों ने
रखा था. यज्ञ के दौरान शिशुपाल श्रीकृष्ण को अपमानित करने लगा. ये सुनकर पांडव
गुस्सा गए और उसे मारने के लिए खड़े हो गए. कृष्ण ने उन्हें शांत किया और यज्ञ
करने को बोला. श्रीकृष्ण ने शिशुपाल से कहा कि उन्होंने 100 अपमानजनक शब्दों को सहने का प्रण लिया
हुआ है और वो अब पूरे हो चुके हैं. शांत बैठो, इसी में तुम्हारी भलाई. है.' जिसके बाद शिशुपाल ने जैसे ही गाली दी
तो श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर
गिर गया.
पौंड्रक
खुद को श्रीकृष्ण बताने वाले राजा पौंड्रक की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. नकली
सुदर्शन चक्र,
शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता
था. पौंड्रक की हर गलतियों के लिए लोग श्रीकृष्ण को जिम्मेदार ठहराने लगे थे. इस
बीच पौंड्रक ने श्रीकृष्ण को युद्ध की चुनौती दे डाली. इसके बाद युद्ध हुआ और
पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए.
शिव
कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? या बस एक पौराणिक कथा?
या फिर शिव का कोई गहरा अर्थ है,
जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो
खोज रहे हैं? भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव, महादेव शिव, के बारे में कई गाथाएँ और दंतकथाएं सुनने
को मिलती हैं। क्या वे भगवान हैं या केवल हिन्दू संस्कृति की कल्पना हैं?
या फिर शिव का एक गहरा अर्थ है,
जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो
सत्य की खोज में हैं? भगवान शिव अजन्मा और अविनाशी कहे जाते हैं। शिवपुराण में कथा है कि
ब्रह्मा विष्णु भी इनके आदि और अंत का पता नही कर पाए थे। लेकिन इनके जन्म की भी
एक रोचक कथा है,
इस कथा का उल्लेख बहुत कम मिलता है
इसलिए कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। तो आइए जानें भगवान शिव के जन्म की अद्भुत
कथा।
त्रिदेवों
में भगवान शंकर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता,
भगवान विष्णु संरक्षक और भगवान शिव
विनाशक की भूमिका निभाते हैं. त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि
जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है.इन त्रिदेव की उत्पत्ति खुद एक रहस्य
है. कई पुराणों का मानना है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु शिव से उत्पन्न हुए.
हालांकि शिवभक्तों के मन में सवाल उठता है कि भगवान शिव ने कैसे जन्म लिया था?
भगवान
शिव स्वयंभू है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं. जब कुछ नहीं
था तो भगवान शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व रहेगा. भगवान
शिव को आदिदेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ हिंदू माइथोलॉजी में सबसे पुराने देव से
है. वह देवों में प्रथम हैं.भगवान ब्रह्मा, विष्णु और भगवान महेश,
इन तीनों देवताओं का जन्म अपने आपमें
एक महान रहस्य है। कई पुराणों का कहना है कि ब्रह्मा और विष्णु शिव से पैदा हुए
थे। लेकिन पुराण ही इस मत को खंडित कर देते हैं और सवाल लाकर खड़ा कर देते हैं कि
शिव का जन्म फिर कैसे हुआ था।इस विषय में शिव पुराण की बातों पर
अधिक विश्वास किया जाता है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है अर्थात
(सेल्फ बॉर्न) माना गया है। शास्त्रों में इसको लेकर कहा गया कि ‘वह वहां था, जब कुछ भी और कोई भी नहीं था और वह सब
कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी रहेगा।’ इसीलिए वह ‘आदि देव’ हैं। इन्हीं आदि देव से अखिल
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति बताई गयी है। जो सभी देवों में प्रथम हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार,
भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के जन्म
के बाद दोनों में बहस हो गई कि कौन अधिक श्रेष्ठ हैं। अचानक,
कहीं से एक चमकदार लिंग दिखाई दिया।
उसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि जो भी इस लिंग का आरंभ या अंत पता लगा लेगा,
वह बड़ा होगा। भगवान विष्णु नीचे की ओर
गए और ब्रह्मा जी ऊपर की ओर। दोनों कई वर्षों तक खोज करते रहे लेकिन उन्हें न तो
उस लिंग का आरम्भ मिला और न ही अंत।भगवान विष्णु को अहसास हुआ यह
ज्योतिर्लिंग एक परमशक्ति हैं जो इस ब्रह्मांड का मूलभूत कारण है और यही भगवान शिव
हैं। इसके साथ ही आकाशवाणी हुई यह शिवलिंग है और मेरा कोई आकार नहीं है। मैं
निरंकार हूं।भगवान शिव के जन्म के विषय में इस कथा के अलाव भी कई कथाएं हैं।
दरअसल शिव के ग्यारह अवतार माने जाते हैं। इन अवतारों की कथाओं में रुद्रावतार की
कथा काफी प्रचलित है। कूर्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि को उत्पन्न करने में
ब्रह्मा जी को कठिनाई होने लगी तो वह रोने लगे। ब्रह्मा जी के आंसुओं से
भूत-प्रेतों का जन्म हुआ और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए। रुद्र भगवान शिव के अंश और
भूत-प्रेत उनके गण यानी सेवक माने जाते हैं।