अजन्मे शिव के जन्म का रहस्य
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शिव
कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? या बस एक पौराणिक कथा?
या फिर शिव का कोई गहरा अर्थ है,
जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो
खोज रहे हैं? भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव, महादेव शिव, के बारे में कई गाथाएँ और दंतकथाएं सुनने
को मिलती हैं। क्या वे भगवान हैं या केवल हिन्दू संस्कृति की कल्पना हैं?
या फिर शिव का एक गहरा अर्थ है,
जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो
सत्य की खोज में हैं? भगवान शिव अजन्मा और अविनाशी कहे जाते हैं। शिवपुराण में कथा है कि
ब्रह्मा विष्णु भी इनके आदि और अंत का पता नही कर पाए थे। लेकिन इनके जन्म की भी
एक रोचक कथा है,
इस कथा का उल्लेख बहुत कम मिलता है
इसलिए कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। तो आइए जानें भगवान शिव के जन्म की अद्भुत
कथा।
त्रिदेवों
में भगवान शंकर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता,
भगवान विष्णु संरक्षक और भगवान शिव
विनाशक की भूमिका निभाते हैं. त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि
जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है. इन त्रिदेव की उत्पत्ति खुद एक रहस्य
है. कई पुराणों का मानना है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु शिव से उत्पन्न हुए.
हालांकि शिवभक्तों के मन में सवाल उठता है कि भगवान शिव ने कैसे जन्म लिया था?
भगवान
शिव स्वयंभू है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं. जब कुछ नहीं
था तो भगवान शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व रहेगा. भगवान
शिव को आदिदेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ हिंदू माइथोलॉजी में सबसे पुराने देव से
है. वह देवों में प्रथम हैं. भगवान ब्रह्मा, विष्णु और भगवान महेश,
इन तीनों देवताओं का जन्म अपने आपमें
एक महान रहस्य है। कई पुराणों का कहना है कि ब्रह्मा और विष्णु शिव से पैदा हुए
थे। लेकिन पुराण ही इस मत को खंडित कर देते हैं और सवाल लाकर खड़ा कर देते हैं कि
शिव का जन्म फिर कैसे हुआ था। इस विषय में शिव पुराण की बातों पर
अधिक विश्वास किया जाता है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है अर्थात
(सेल्फ बॉर्न) माना गया है। शास्त्रों में इसको लेकर कहा गया कि ‘वह वहां था, जब कुछ भी और कोई भी नहीं था और वह सब
कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी रहेगा।’ इसीलिए वह ‘आदि देव’ हैं। इन्हीं आदि देव से अखिल
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति बताई गयी है। जो सभी देवों में प्रथम हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार,
भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के जन्म
के बाद दोनों में बहस हो गई कि कौन अधिक श्रेष्ठ हैं। अचानक,
कहीं से एक चमकदार लिंग दिखाई दिया।
उसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि जो भी इस लिंग का आरंभ या अंत पता लगा लेगा,
वह बड़ा होगा। भगवान विष्णु नीचे की ओर
गए और ब्रह्मा जी ऊपर की ओर। दोनों कई वर्षों तक खोज करते रहे लेकिन उन्हें न तो
उस लिंग का आरम्भ मिला और न ही अंत। भगवान विष्णु को अहसास हुआ यह
ज्योतिर्लिंग एक परमशक्ति हैं जो इस ब्रह्मांड का मूलभूत कारण है और यही भगवान शिव
हैं। इसके साथ ही आकाशवाणी हुई यह शिवलिंग है और मेरा कोई आकार नहीं है। मैं
निरंकार हूं। भगवान शिव के जन्म के विषय में इस कथा के अलाव भी कई कथाएं हैं।
दरअसल शिव के ग्यारह अवतार माने जाते हैं। इन अवतारों की कथाओं में रुद्रावतार की
कथा काफी प्रचलित है। कूर्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि को उत्पन्न करने में
ब्रह्मा जी को कठिनाई होने लगी तो वह रोने लगे। ब्रह्मा जी के आंसुओं से
भूत-प्रेतों का जन्म हुआ और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए। रुद्र भगवान शिव के अंश और
भूत-प्रेत उनके गण यानी सेवक माने जाते हैं।
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