हनुमान और पौंडरिक युद्ध
कृष्ण
एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे
अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने
वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं। वो एक सज्जन
पुरुष हैं, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं। क्या
आपको पता है कृष्ण के काल मे ही एक ऐसा मानव भी था जो स्वयं को कृष्ण कहता था उसका
नाम था पौंडरिक । भगवान कृष्ण की नकल करने के कारण ही एक बार उसका सामना भगवान
हनुमान से हुआ था आइए जानते हैं क्या जब भगवान हनुमान और पौंडरिक के बीच हुआ
महाभ्यंकर युद्ध। कौन विजयी हुआ इस युद्ध में ?
पौंडरिक और हनुमान जी के बीच कौन अधिक शक्तिसली था ?
चुनार देश का प्राचीन नाम करुपदेश था।
वहां के राजा का नाम पौंड्रक था। कुछ मानते हैं कि पुंड्र देश का राजा होने से इसे
पौंड्रक कहते थे। कुछ मानते हैं कि वह काशी नरेश ही था। चेदि देश में यह ‘पुरुषोत्तम’ नाम से सुविख्यात था। इसके पिता का नाम
वसुदेव था। इसलिए वह खुद को वासुदेव कहता था। यह द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित था।
कौशिकी नदी के तट पर किरात, वंग
एवं पुंड्र देशों पर इसका स्वामित्व था। यह मूर्ख एवं अविचारी था।
पौंड्रक
को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि असल में वही परमात्मा वासुदेव और
वही विष्णु का अवतार है, मथुरा
का राजा कृष्ण नहीं। कृष्ण तो ग्वाला है। पुराणों में उसके नकली कृष्ण का रूप धारण
करने की कथा आती है।
राजा
पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता
था। एक दिन उसने भगवान कृष्ण को यह संदेश भी भेजा था कि ‘पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर
उनका उद्धार करने के लिए मैंने वासुदेव नाम से अवतार लिया है। भगवान वासुदेव का
नाम एवं वेषधारण करने का अधिकार केवल मेरा है। इन चिह्रों पर तेरा कोई भी अधिकार
नहीं है। तुम इन चिह्रों एवं नाम को तुरंत ही छोड़ दो, वरना युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।’
उस वक्त तो भगवान कृष्ण ने उसके इस संदेश को
नजरंदाज कर दिया । उन्हीं दिनो आकाश मे उड़ते हनुमान जी की नजर उस नकली कृष्ण पर
पड़ी उन्होने देखा की एक व्यक्ति भगवान कृष्ण की वेश भूषा धरण किए हुए है और अपनी
प्रजा पर अत्याचार किए जा रहा है । हनुमान जी को बड़ी हैरानी हुई वो नीचे आए और दूर
से सबकुछ देख कर समझ गए की यह मूरख खुद को भगवान कृष्ण समझ रहा है और सभी को यही
कह रहा है की वो उसे ही कृष्ण माने । हनुमान जी उसके पास गए और बोले अरे दुष्ट
मानव तू खुद को कृष्ण बोल रहा है और अपनी प्रजा पर अत्याचार कर रहा है कृष्ण कभी
ऐसा नही करते हैं और अगर कृष्ण को पता चल गया की ऐसा कुछ हगो रहा है तो वो तुझे
दंड देंगे । यह सुनकर पौंडरिक आग बबूला हो गया और बोला – अरे वानर तू कौन है और
तुझमे इतनी हिम्मत है तो मुझसे युद्ध कर तुझे पता लग जाएगा की कौन असली कृष्ण है ।
हनुमान जी और पौंडरिक दोनों के बीच युद्ध प्रारम्भ
हो गया हनुमान जी ने पौंडरिक को अपनी पुंछ मे लपेट कर भूमि मे पटक दिया पौंडरिक
गुस्से मे उठा और जैसे ही प्रहार करने के लिए आगे बढ़ा हनुमान जी के मुक्के के एक
हल्के से प्रहार से पुनः भूमि मे गिर गया पौंडरिक जितनी बार उठाने की कोशिश करता
उतनी बार हनुमान जी मुक्का मरते और वो भूमि मे गिर जाता । जब वो नही उठ पाया तब
हनुमान जी ने कहा की मै चाहता तो तुम्हारा वध यही कर सकता हूँ लेकिन तुम्हारी
मृत्यु मेरे हाथों ने नहीं लिखी तुम्हारा वध वही करेंगे जिनका वेश तूने धरण कर रखा
है । इतना कह कर हनुमान जी वहाँ से चले गए ।
बहुत
समय तक श्रीकृष्ण उसकी बातों और हरकतों को नजरअंदाज करते रहे, बाद में उसकी ये सब बातें अधिक सहन
नहीं हुईं। उन्होंने प्रत्युत्तर भेजा, ‘तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करूंगा।'
यह
सुनकर पौंड्रक कृष्ण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू करने लगा। अपने मित्र
काशीराज की सहायता प्राप्त करने के लिए वह काशीनगर गया। यह सुनते ही कृष्ण ने
ससैन्य काशीदेश पर आक्रमण किया।
कृष्ण
आक्रमण कर रहे हैं- यह देखकर पौंड्रक और काशीराज अपनी-अपनी सेना लेकर नगर की सीमा
पर आए। युद्ध के समय पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मूल्यवान आभूषण आदि धारण किया था एवं
वह गरूड़ पर आरूढ़ था।
नाटकीय
ढंग से युद्धभूमि में प्रविष्ट हुए इस ‘नकली कृष्ण’ को
देखकर भगवान कृष्ण को अत्यंत हंसी आई। इसके बाद में बदले की भावना से पौंड्रक के
पुत्र सुदक्षण ने कृष्ण का वध करने के लिए मारण-पुरश्चरण किया,
लेकिन द्वारिका की ओर गई वह आग की लपट
रूप कृत्या ही पुन: काशी में आकर सुदक्षणा की मौत का कारण बन गई। उसने काशी नरेश
पुत्र सुदक्षण को ही भस्म कर दिया।बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण
पुन: द्वारिका चले गए।
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