Thursday, 27 September 2018

सतयुग का आगमन कब और कैसे ?? Kaal Chakra



        सतयुग
काल, समय या युग परिवर्तन कब होगा? कैसे होगा और किस मानव शरीर के द्वारा होगा? भविष्य के प्रति जिज्ञासा मानव स्वभाव का सबसे रूचिकर विषय
है। बचपन
,
कोमल, भावुक
निश्छल होता हैं। उठती उम्र में चंचलता आतुरता दिखाई पड़ती है। प्रौढ़ता में
अहंकार का बोल बाला रहता हैं और अन्त में जरा जीर्ण अवस्था अपनी मौत मरती हैं।
इसके उपरान्त नया जन्म होता हैं। चार युग जीवन की इन्हीं चार अवस्थाओं की तरह हैं।
इन दिनों विश्व मानवता मरण की तैयारी कर रहीं हैं
, पर वह दिन दूर नहीं, जब उज्ज्वल भविष्य का नये सिरे से निर्माण होगा। चक्र घूमते
हुए बार-बार अपने आरम्भिक स्थान पर आता हैं। कल्प कल्पान्तरों में यही होता आया
हैं। वस्त्र पुराना होने पर नये की अवधारणा ऐसी आवश्यकता हैं जो पूरी हुए बिना रह
ही नहीं सकती। देखना इतना भर हैं कि इस शुभारम्भ का श्री गणेश का नव निर्धारण किस
प्रकार होगा
? कलयुग के बाद सतयुग
कैसा होगा....
ये काल चक्र है....
हर युग की अपनी-अपनी वरिष्ठता
और महत्वाकाँक्षा होती है। आज हर व्यक्ति साज- सम्पन्नता
, साज-सज्जा की बहुलता इसलिए चाहता हैं कि उसे अधिकाधिक
सुविधा एवं ख्याति मिले। यही मनोवृत्ति अनेक दिशाओं में घुमाती है। इसी प्रवाह में
परिवर्तन होने पर युग बदलते हैं। सतयुग विश्लेषण करने पर सिद्ध होता है कि उस समय
के व्यक्तियों की शारीरिक बनावट भले ही आधुनिक मानवों जैसी रही हो पर मानसिकता में
, स्वभाव प्रयास में, भारी अन्तर रहा है। उन दिनों मनुष्य अधिक परिश्रमी और साहसी
होंगे।  असत्य द्वारा चाहे अपना ही हित
होता है
,
पर लोग उससे घृणा करेंगे। सत्य पक्ष द्वारा यदि अपना अहित
हुआ हो तो भी बुरा न मानेंगे। जब इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने लगें तो समझना
चाहिए कि सतयुग आ गया।
कलयुग के अंत मे कल्कि अवतार
होगा कल्कि अवतार समाज के विचारों
, मान्यताओँ और गतिविधियों की दिशाधारा में बदलाव के लिए
होगा। इस बार का ये अवतार असुरों या दुष्टों के संहार के बजाय उनके मन मानस को
अपने विधान से बदलने की नीति पर है। सतयुग मे चरो ओर धर्म ही धर्म दिखेगा
, ऋषि परम्परा जीवित होगी, वही अंकुरित होकर फली फूलेगी और समस्त जन समुदाय उसका समग्र लाभ उठाएगा, दृष्टिकोण बदलने से वातावरण का परिवर्तन होता हैं। उत्थान के बाद जिस
प्रकार पतन देखा जाता हैं उसी प्रकार पतन के उपरान्त अभ्युदय का विज्ञान भी
सुनिश्चित होगा। वर्तमान समय मे इस दुनिया मे मानवीय समाज के सामने जितनी भी
प्राब्लम है उन सबका कारण है मानवीय चिंतन का दूषित हो जाना
,
विचार परिवर्तन से ही युग परिवर्तन संभव है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है
ब्राह्माण्ड व्यापी देव शक्तिया अब इस सृष्टि मे आमूल चूल परिवर्तन चाहती है इस
पवन धरा धाम पर देव शक्तिया सतयुगी वातावरण लाने के लिये कृत संकल्पित हैं।
एकवर्णं यथा दुग्धं
भिन्नवर्णासु धेनुषु ।
तथैव धर्मवैचित्र्यं
तत्त्वमेकं परं स्मृतम् ॥

जिस प्रकार विविध रंग रूप की
गायें एक ही रंग का (सफेद) दूध देती है
, उसी प्रकार विविध धर्मपंथ एक ही तत्त्व की सीख देते है

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