आखिर क्या था वह प्रश्न जिसका उत्तर एक विद्वान मह्रिषी और
उसकी आठ पीढ़िया भी नही दे पायी, आदि पुराण की एक अनोखी कथा!
उसकी आठ पीढ़िया भी नही दे पायी, आदि पुराण की एक अनोखी कथा!
प्राचीन भारत में दार्शनिक एवं धार्मिक वाद-विवाद, चर्चा या
प्रश्नोत्तर को शास्त्रार्थ कहते थे, शास्त्रार्थ का शाब्दिक अर्थ तो शास्त्र का अर्थ है , वस्तुतः मूल
ज्ञान का स्रोत शास्त्र ही होने से प्रत्येक विषय के लिए निष्कर्ष पर पहुँचने के
लिए शास्त्र का ही आश्रय लेना होता है अतः इस वाद-विवाद को शास्त्रार्थ कहते हैं
जिसमे तर्क,प्रमाण और युक्तियों के आश्रय से सत्यासत्य निर्णय होता है. वैदिक काल में एक
से बढ़कर एक विद्वान ऋषि थे , उस काल में भी शास्त्रार्थ हुआ करता था , वैदिक काल में
ज्ञान अपनी चरम सीमा पर था , उस काल में शास्त्रार्थ का प्रयोजन ज्ञान कि
वृद्धि था क्यों कि उस काल कोई भ्रम नहीं था , ज्ञान के सूर्य
ने धरती को प्रकाशित कर रखा था , उस काल शास्त्रार्थ प्रतियोगिताएं होती थी , न सिर्फ ऋषि
अपितु ऋषिकाएँ भी एक से बढ़कर एक शास्त्रार्थ महारथी थी| इसी शास्त्रार्थ मे एक प्रश्न ऐसा उठ गया जिसका उत्तर 8
पढ़ियाँ भी ना दे पायी । तो क्या था वह प्रश्न किसने पूछा था ऐसा कठिन प्रश्न और
एफ़आर किसने उत्तर दिया उस प्रश्न का
प्रश्नोत्तर को शास्त्रार्थ कहते थे, शास्त्रार्थ का शाब्दिक अर्थ तो शास्त्र का अर्थ है , वस्तुतः मूल
ज्ञान का स्रोत शास्त्र ही होने से प्रत्येक विषय के लिए निष्कर्ष पर पहुँचने के
लिए शास्त्र का ही आश्रय लेना होता है अतः इस वाद-विवाद को शास्त्रार्थ कहते हैं
जिसमे तर्क,प्रमाण और युक्तियों के आश्रय से सत्यासत्य निर्णय होता है. वैदिक काल में एक
से बढ़कर एक विद्वान ऋषि थे , उस काल में भी शास्त्रार्थ हुआ करता था , वैदिक काल में
ज्ञान अपनी चरम सीमा पर था , उस काल में शास्त्रार्थ का प्रयोजन ज्ञान कि
वृद्धि था क्यों कि उस काल कोई भ्रम नहीं था , ज्ञान के सूर्य
ने धरती को प्रकाशित कर रखा था , उस काल शास्त्रार्थ प्रतियोगिताएं होती थी , न सिर्फ ऋषि
अपितु ऋषिकाएँ भी एक से बढ़कर एक शास्त्रार्थ महारथी थी| इसी शास्त्रार्थ मे एक प्रश्न ऐसा उठ गया जिसका उत्तर 8
पढ़ियाँ भी ना दे पायी । तो क्या था वह प्रश्न किसने पूछा था ऐसा कठिन प्रश्न और
एफ़आर किसने उत्तर दिया उस प्रश्न का
ये काल chakra है...
एक आश्रम में विद्वान ऋषि कक्षीवान रहते थे वे प्रत्येक
प्रकार के शास्त्र और वेद में निपुर्ण थे. एक बार वे उन्ही के समान शास्त्रात में
निपुर्ण ऋषि प्रियमेध से मिलने गए तथा उनके आश्रम में पहुँचते ऋषि प्रियमेध द्वारा
उनका खूब आदर सत्कार किया गया. ऋषि कक्षीवान जब भी ऋषि प्रियमेध से मिलते तो दोनों
के बीच बहुत लम्बी शास्त्रात होती इसी तरह उस दिन भी ऋषि कक्षीवान ने प्रियमेध से
एक पहेली पूछी की ऐसी कौन सी चीज है जिसे यदि जलाये तो उस से तनिक भी रौशनी न हो ?
प्रकार के शास्त्र और वेद में निपुर्ण थे. एक बार वे उन्ही के समान शास्त्रात में
निपुर्ण ऋषि प्रियमेध से मिलने गए तथा उनके आश्रम में पहुँचते ऋषि प्रियमेध द्वारा
उनका खूब आदर सत्कार किया गया. ऋषि कक्षीवान जब भी ऋषि प्रियमेध से मिलते तो दोनों
के बीच बहुत लम्बी शास्त्रात होती इसी तरह उस दिन भी ऋषि कक्षीवान ने प्रियमेध से
एक पहेली पूछी की ऐसी कौन सी चीज है जिसे यदि जलाये तो उस से तनिक भी रौशनी न हो ?
प्रियमेध ने कफ़ि सोच विचार किया परन्तु वे इस पहेली के
उत्तर दे पाने असमर्थ रहे,
जिस किसी भी चीज
के बारे में विचार करते उन्हें लगता की वह थोड़ी सी ही सही परन्तु रौशनी उत्तपन
करता है. पहली के उत्तर ढूढ़ने के उधेड़बुन में उनकी जिंदगी बीत गयी. जब प्रियमेध
ऋषि का अंत समय नजदीक आया तो उन्होंने कक्षीवान ऋषि को संदेश भेजा की मैं आपकी
पहेली का उत्तर ढूंढ पाने में समर्थ नही हो पाया परन्तु मुझे पूरा विश्वाश है की
भविष्य में मेरे वंश में ऐसा विद्वान जरूर जन्म लेगा जो आपके इस प्रश्न का उत्तर
दे पायेगा. उनके मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने
इस प्रश्न के उत्तर का जिम्मा लिया परन्तु वह इस प्रश्न का उत्तर ढूढ़ पाने
में असमर्थ रहा और एक दिन उसकी भी मृत्यु हो गयी. इस के बाद कक्षीवान के उस प्रश्न
के उत्तर को ढूढ़ने में प्रियमेध की कई पीढ़िया गुजरती गई.
उत्तर दे पाने असमर्थ रहे,
जिस किसी भी चीज
के बारे में विचार करते उन्हें लगता की वह थोड़ी सी ही सही परन्तु रौशनी उत्तपन
करता है. पहली के उत्तर ढूढ़ने के उधेड़बुन में उनकी जिंदगी बीत गयी. जब प्रियमेध
ऋषि का अंत समय नजदीक आया तो उन्होंने कक्षीवान ऋषि को संदेश भेजा की मैं आपकी
पहेली का उत्तर ढूंढ पाने में समर्थ नही हो पाया परन्तु मुझे पूरा विश्वाश है की
भविष्य में मेरे वंश में ऐसा विद्वान जरूर जन्म लेगा जो आपके इस प्रश्न का उत्तर
दे पायेगा. उनके मृत्यु के बाद उनके पुत्र ने
इस प्रश्न के उत्तर का जिम्मा लिया परन्तु वह इस प्रश्न का उत्तर ढूढ़ पाने
में असमर्थ रहा और एक दिन उसकी भी मृत्यु हो गयी. इस के बाद कक्षीवान के उस प्रश्न
के उत्तर को ढूढ़ने में प्रियमेध की कई पीढ़िया गुजरती गई.
इस तरह प्रियमेध की आठ पीढ़िया कक्षीवान के प्रश्न का उत्तर ना पा सकी तथा उत्तर खोजते-खोजते स्वर्ग को प्राप्त हो गई.
कक्षीवान अपने पहेली का हल पाने के लिए जिन्दा रहे. कक्षीवान के पास एक नेवले के
चमड़े से बनी थेली थी जिसमे कुछ चावल भरे थे प्रत्येक वर्ष वे उसमे से एक – एक दाना निकालकर
फेक देते थे. जब तक थेली के सारे चावल खत्म ना हो जाये उन्हें तब तक जीवन प्राप्त था.
कक्षीवान अपने पहेली का हल पाने के लिए जिन्दा रहे. कक्षीवान के पास एक नेवले के
चमड़े से बनी थेली थी जिसमे कुछ चावल भरे थे प्रत्येक वर्ष वे उसमे से एक – एक दाना निकालकर
फेक देते थे. जब तक थेली के सारे चावल खत्म ना हो जाये उन्हें तब तक जीवन प्राप्त था.
प्रियमेध के नोवी पीढ़ी में साकमश्व नाम का बालक पैदा हुआ व
बचपन से ही बहुत विद्वान था तथा अपने मित्रो के साथ हर शास्त्राथ में वह विजयी
होता था. साकमश्व जब बड़ा हुआ तो उसे एक बात चुभने लगी की एक पहेली का उत्तर उसकी
पूरी 8 पीढ़िया देने में
असमर्थ रही और स्वर्गवासी हो गई परन्तु अब तक उस प्रश्न को पूछने वाला जिन्दा है.
साकमश्व ने निश्चय किया की वह इस प्रश्न का उत्तर ढूढ के ही चेन लेगा. एक दिन उसे
प्रश्न का उत्तर सोचते सोचते सामवेद का एक
श्लोक सुझा तथा उसने सामवेद के उस श्लोक
को एक निर्धारित सुर में गाना शुरू किया, इसके साथ ही उसे प्रश्न का उत्तर मिल गया.
बचपन से ही बहुत विद्वान था तथा अपने मित्रो के साथ हर शास्त्राथ में वह विजयी
होता था. साकमश्व जब बड़ा हुआ तो उसे एक बात चुभने लगी की एक पहेली का उत्तर उसकी
पूरी 8 पीढ़िया देने में
असमर्थ रही और स्वर्गवासी हो गई परन्तु अब तक उस प्रश्न को पूछने वाला जिन्दा है.
साकमश्व ने निश्चय किया की वह इस प्रश्न का उत्तर ढूढ के ही चेन लेगा. एक दिन उसे
प्रश्न का उत्तर सोचते सोचते सामवेद का एक
श्लोक सुझा तथा उसने सामवेद के उस श्लोक
को एक निर्धारित सुर में गाना शुरू किया, इसके साथ ही उसे प्रश्न का उत्तर मिल गया.
वह तुरंत कक्षीवान के आश्रम की ओर भागा तथा कक्षीवान उसे
देखते ही जान गए की उन्हें आज उनके प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा. उन्होंने अपने एक
शिष्य को बुला कर उनकी चावल के दानो से भरी थेली फिकवा दी. साकमश्व ऋषि कक्षीवान
के करीब पहुंचकर उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए बोला की जो मनुष्य केवल ऋचा गाता है साम नही वह गायन उस अग्नि के समान
कहलाता है जिससे प्रकाश पैदा नही होता लेकिन जो ऋग्वेद के ऋचा के बाद सामवेद का साम भी गाता हो उसका गायन उस अग्नि जैसा है
जिससे रौशनी भी पैदा होती है. साकमश्व के
उत्तर को सुनकर कक्षीवान संतुष्ट हुए और उसे अपना आशीर्वाद दिया इस प्रकार साकमश्व
ने अपने अपने पूर्वजो का कलंक भी मिटा दिया !
देखते ही जान गए की उन्हें आज उनके प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा. उन्होंने अपने एक
शिष्य को बुला कर उनकी चावल के दानो से भरी थेली फिकवा दी. साकमश्व ऋषि कक्षीवान
के करीब पहुंचकर उनके प्रश्न का उत्तर देते हुए बोला की जो मनुष्य केवल ऋचा गाता है साम नही वह गायन उस अग्नि के समान
कहलाता है जिससे प्रकाश पैदा नही होता लेकिन जो ऋग्वेद के ऋचा के बाद सामवेद का साम भी गाता हो उसका गायन उस अग्नि जैसा है
जिससे रौशनी भी पैदा होती है. साकमश्व के
उत्तर को सुनकर कक्षीवान संतुष्ट हुए और उसे अपना आशीर्वाद दिया इस प्रकार साकमश्व
ने अपने अपने पूर्वजो का कलंक भी मिटा दिया !
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