Saturday, 22 May 2021

क्या चीन के Monkey King और भारत के हनुमान जी एक हिन हैं ??

हनुमान ही मंकी किंग है.

 

रामायण मे हनुमान जी का नाम आता है और हनुमान जो राम के शिष्य थे प्रभु राम को अपना गुरु मानते थे और यह बात सभी को पता है प्रभु हनुमान जी कितने सकती साली थे .  हनुमान के बारे मे भारतिए  ग्रंथ में ख़फ़ी उलेख है बचपन मे हनुमान बोहोत शक्तिशाली थे और  हनुमान के पास एक गदा था जो उनकी ताकत था हनुमान इतने सक्तिसहली थे वो अगर चाहते थे तो राबन का विनाश अकेले करदेते और लंका को ध्यानश करदेते लेकिन हनुमान ने इस नही किया वो चाहते थे कि उनकी गुरु राम रावण का विनाश करे प्रभु हनुमान जी के बचपन मैं एक श्राफ मिलता एक ऋषि ने उनको श्राफ दियाथा की वो अपनी सारी सकती भुल जाए लेकिन  उनके पास ऐसा सकती था कि उनसे सारे दनब डरते थे रामायण के अनुसार हनुमान ने सूर्य को अम्ब समज कर निगल लिया था और वओ एक परबत को ब एक हाथ से उठा लएथे उसे पता चलता है उनके पास कितना सकती था।

दोस्तों ऐसी ही कुछ शक्तियाँ चीन के पौराणिक पत्र maonkey king मे भी मिलती हैं आइये जानते हैं क्या हनुमान जी ही monkey किंग हैं

हिंदू धर्मग्रंथों में हनुमान जी के बचपन के बारे में जो किस्से दर्ज हैं वो बताते हैं कि हनुमान जी बचपन में बेहद शरारती थे. ऐसा ही चीन के धर्मग्रंथों में मंकी किंग के बारे में लिखा है. बाकायदा मंकी किंग की शरारतों का चीनी दंतकथाओं में विस्तार से वर्णन है. एक जिक्र तो ये भी है कि मंकी किंग ने बाकायदा स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया था. हनुमान की तरh मंकी किंग ब अमर है क्या मंकी king  कोई और नही वो हनुमान है ???? माना जाता है हनुमान प्रभु शिवः का एक अंश है और शिव का घर कैलाश परबत मैं है बो परबत अभी चीन मैं है

अब मंकी किंग और हनुमान जी के हथियारों को देखिए. चीनी धर्मग्रंथों के मुताबिक मंकी किंग सिर्फ एक ही हथियार से लड़ते थे और वो धातु की बनी एक लाठी जैसा था. यानी वो धारदार हथियार का इस्तेमाल नहीं करते थे. हनुमान जी के द्वारा भी कभी किसी धारदार हथियार के इस्तेमाल का जिक्र रामायण में नहीं है. वो सिर्फ गदा से युद्ध करते थे. गदा जिसके बारे में शायद चीनी संस्कृति को उस वक्त जानकारी तक नहीं थी लेकिन ये समानता भी अपने आप में कम नहीं कि दोनों के हथियार काफी हद तक एक दूसरे से मिलते-जुलते थे.

सारे बातें को सुनके बाद पता चलता है कि श्याद हनुमान ही मंकी किंग है.

Wednesday, 19 May 2021

भारतीय पौराणिक इतिहास का सबसे बड़ा खलनायक कौन था ? Most sinful person of ...

सबसे बड़ा पापी कौन था

पौराणिक कथाओं मे खलनायक ताकत और अभिमान के मद मे अपनी सीमाओं का उलग्ङ्घन बेहिसाब करते नजर आते हैं कहते हैं एक या दो पापों का संभवतः प्र्यश्चित भी होता हो लेकिन तब क्या किया जाए जब खलनायकों द्वारा बेहिसाब पाप हो रहा हो जब जब उनका पाप का घड़ा भर जाता है ईश्वर अवतार लेकर उनका वध करते हैं और इस पृथ्वी का संतुलन पुनः स्थापित करते हैं। दोस्तों आज इस विडियो मे तीन  पौराणिक पत्रों के पापों की गणना करेंगे अपने सम्पूर्ण जीवन काल मे उन्होने क्या क्या कुकर्मों को अंजाम दिया है इस पर दृष्टि डालेंगे और ये समझने का प्रयास करेंगे की भारतिए पौराणिक इतिहास का सबसे पापी पत्र कौन था।

लंकाधिपति रावण की जीवन गाथा

लंकाधिपति रावण के अधर्म की पराकाष्ठा पर तब हो गई जब उसने भगवान राम पत्नी सीता का हरण किया इस पाप के कारण ही समूची लंका और राक्षस कुल का सम्पूर्ण नाश हो गया यह उसका एकलौता पाप नही था इसके पहले उसने तमाम कुकर्मों को अंजाम दिया था एक प्रसंग आता है, जिसके अनसार महाशितशाल होने और सीता का हरण करने के बावजदू रावण ने सीता के साथ

जबरदसती करने का प्रयन नहीं करता है . ऐसा अनायास नहीं हुआ था, बल्कि इसके साथ एक प्रसंग जड़ा हुआ है. तब विश्व विजय अभियान पर निकाला रावण स्वर्गलोक पहुंचा था वहाँ जा कर वह रंभा नमक अप्सरा पर मोहित हो गया। रावण उसके समक्ष अपना प्रेम प्रस्ताव रखता है लेकिन रंभा ने यह कहकर इंकार कर दिया की वह नलकुबेर की पत्नी है लेकिन रावण नहीं मानता है वह रंभा के साथ जबदसती करने का प्रयास करता है यह सब देखकर नलकुबेर उसे शार्प देते हैं आज के बाद अगर तुमने किसी और के साथ जबदसती करने का प्रयास किया तो तुम्हारा मस्तक फट जाएगा

दोस्तों इसके घटना के पूर्व ऐसा ही एक घटना का वर्णन रावण संहिता मे मिलता है एक जब रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तब उसकी नजर वन मे ताप कर रही एक तपस्विनी पर पड़ी वह उसे देखकर मोहित हो अहंकार के मद मे चूर रावण ने उस तपस्वी के बलों को खिच कर अपने पुसपक विमान मे बैठने का प्रयत्न करने लगा तपस्विनी भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थी उसने ने कैसे भी कर के उससे दूर जा कर अपने प्राण दे दिये लेकिन जाते जाते उसने रावण को शार्प दिया की तुम्हारी मृत्यु एक स्त्री के कारण ही होगी ।

दुर्योधन की जीवन गाथा

कौरवों में दुर्योधन के बारे में कहा जाता है कि जब 100 कुटील और दुष्ट मनुष्यों की मृत्यु हुई होगी, तो महापापी दुर्योधन का जन्म हुआ होगा दुर्योधन के पापों की प्रकष्ठा तब पर हुई जब उसने महारानी द्रौपदी के चीर हरण का आदेश दिया एक स्त्री के एसटीएच इस तरह का वावहार करने वालों को इतिहास कभी माफ नही कर सकता है।

परंतु इसके पूर्व भी दुर्योधन ने कई पाप किए उसने एक लाक्षागृह मे सभी पांडवों को एक साथ मरने की कोशिश की बचपन मे उसने भीम को जहर देकर नदी मे फेंक दिया था इनसब के साथ उसने महाभारत युद्ध मे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को सबके साथ मिलकर मारा था ।

हिरण्यकशयप

हिरण्यकश्यप को वरदान था कि वह न तो दिन में मरेगा या रात में, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मनुष्य से मरेगा, न पशु से, न घर के भीतर मरेगा और न बाहर। ऐसी विचित्र और कठिन शर्तों के साथ मिला वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया, क्योंकि वरदान के साथ उसने भगवान से विवेक नहीं मांगा। यह वरदान प्राप्त कर हिरण्यकश्यपू को यह भ्रम हो गया की वह अब अमर हो गया है अपनी अमरता के उन्मद मे एसबी पर अनेकों अत्याचार करने शुरू कर दिये। जहां भी भगवान विष्णु की पुजा होई रही होती वह वहाँ अतिचार करता ऋषि मुनियों को मरने लगा वह चाहता था की सब लोग उसे ही अपना भगवान माने और उसकी पुजा करे। जिसके दिल में महिलाओं के प्रति सम्मान नहीं था, बालक का उत्पीड़न करना उसे खुशी देता था, प्रजा जिससे परेशान थी, जिसके कान सिर्फ अपनी प्रशंसा सुनने के आदी थे और अपने खिलाफ उठने वाला हर हाथ वह कुचल देता था। ऐसे व्यक्ति का अंत बहुत भयंकर होता है और हिरण्यकश्यप के साथ भी वही हुआ। भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर उस राक्षस का अंत किया।

इन सभी राक्षसों को देखने के बाद यही पता चलता है की सबसे बड़ा पापी वही है जिसकी मूर्ति हम हर दशहरे के दिन जलते हैं लंक्ध्पती रावण

 

Wednesday, 12 May 2021

रामभक्त हनुमान जी और शिव अंस वीरभाद्र के बीच भयंकर युद्ध। Battle between...

हनुमान और वीरभद्र युद्ध

निर्गुण शिव/विष्णु ही परम शक्ति है जो इस संसार को संचालित करती है जिनका न आदि है और न ही अंत, लेकिन सृष्टि सञ्चालन के लिए ये ही तीनो गुणों में विभक्त होकर ब्रह्मा विष्णु महेश के रूप में सगुन रूप में अवतरित होकर इस दुनिआ का सञ्चालन करते है.

ऐसे में कभी उन्हें मनुष्य रूप में अवतरित होकर भी कर्म करने पड़ते है, कई कई बार तो एक ही साथ कई अवतार लिए है इन्होने. इसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं नहीं ही स्पृहा है वो तो जन कल्याण के लिए युगो युगो से ऐसा करते आये है और आगे भी करते रहे है. लेकिन कभी कभी देववश ही इन्ही त्रिदेवो के अवतार ही खुद आपस में भीड़ जाते है, कई बार तो इनमे युद्ध भी हुए है जिनका परिणाम भी सार्थक हुआ था. आज हम हनुमान जी और शिव अंस वीरभाद्र युद्ध की कहानी सुनेंगे कौन विजयी हुआ इस युद्ध मे इस यद्ध के बाद प्र्थिवी पर क्या प्रभाव हुआ ?

रामजी के अश्मेघ यज्ञ की कथा पद्म पुराण के पाताल खंड में है जिसमे हनुमना जी यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा के लिए साथ गए थे यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लड़ा गया। जब श्रीराम द्वारा किए जा रहे अश्वमेघ यज्ञ का अश्व कई राज्यों को श्रीराम की सत्ता के अधीन किए जा रहा था।

इसी बीच यज्ञ का अश्व देवपुर पहुंचा, जहां राजा वीरमणि का राज्य था। राजा वीरमणि ने भगवान शंकर की तपस्या कर उनसे, उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान मांगा था।

महादेव का परमभक्त होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया। ऐसे में अयोध्या और देवपुर में युद्ध होना तय था।

महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में पाकर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित अपने सारे गणों को भेज दिया। एक और राम की सेना तो दूसरी ओर शिव की सेना थी। वीरभद्र ने एक त्रिशूल से राम की सेना के भरत के पुत्र पुष्कल का मस्तक शरीर से अलग कर दिया।

उधर भृंगी आदि गणों ने भी राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। यह सब देख हनुमान जी क्रोधित हो गए और फिर शिव अंस वीरभाद्र और हनुमान जी के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया चरो ओर हाहाकार मचाने लगा, कभी हनुमान जी के प्रहार से वीरभद्र कमजोर दिखाई पड़ते तो कभी वीरभद्र का प्रहार हनुमान जी पर भरी पड़ने लगता। दोनों ही योद्धा शिव के अंस है और इसलिए दोनों ही लगभग बराबर शक्तिशाली थे यह युद्ध 11 दोनों तक चलता रहा दो शक्तिशाली योद्धाओं के बीच इस युद्ध का कोई अंत दिखाई नहीं पड़ रहा था 11 वे दिन हनुमान जी ने अपने स्वरूप का विस्तार किया और अधिक तिबरता से प्रहार करना आरंभ कर दिया वीरभद्र ने भी अपनी शक्ति का विस्तार किया दोनों योद्धाओं के इस यद्ध से पृथ्वी पर प्रलय जैसा वातावरण बन चुका था हनुमान जी ने अपने गदा से वीरभद्र पर एक ज़ोर का प्रहार किया वीरभद्र वही तत्काल मूर्छित हो गए और फिर उठ नहीं सके सारा वातावरण शांत हो गया सबकुछ मानो रुक सा गया हो तब उस युद्ध में स्वयं भगवान शिव का आगमन हुआ हनुमान जी भगवान श्री राम को याद किया अपने भक्तों की पुकार सुनकर श्रीराम तुरंत लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए।

 तब श्रीराम और शिव में युद्ध छिड़ गया। भयंकर युद्ध के बाद अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर शिव से कहा, ‘हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता इसलिए हे महादेव, आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूं’, ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया। वो अस्त्र सीधा महादेव के ह्वदयस्थल में समा गया और भगवान रुद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें। भगवान राम ने वहाँ उपस्थित सभी मृत व्यक्तियों को जीवित करने का वरदान मांगा भगवान शिव की कृपा से सभी जीवित हो गए।

Friday, 7 May 2021

महाभारत का सबसे शक्तिशाली धनुर्धर कौन था ? Who was greatest Dhanurdhar i...

 इन तीनों मे सबसे महान धनुर्धर कौन है ?

महाभारत में जीवन, धर्म, राजनीति, समाज, देश, ज्ञान, विज्ञान आदि सभी विषयों से जुड़ा पाठ है। महाभारत एक ऐसा पाठ है, जो हमें जीवन जीने का श्रेष्ठ मार्ग बताता है। महाभारत की शिक्षा हर काल में प्रासंगिक रही है।

 

1.    किसी भी युद्ध में भीष्म पितामह को मार पाना असंभव था क्योंकि उनके पास इच्छामृत्यु का वरदान था. 10 दिन तक युद्ध करने के बाद पांडव भी इस बात को समझ चुके थे की भीष्म पितामह को हरा पाना असंभव है। श्रीकृष्ण ने जब देखा कि पांडव सेना मुसीबत में है तो हथियार न उठाने का वचन देने के बावजूद वे स्वयं रथ का पहिया हाथ में थामकर भीष्म पितामह की ओर दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाते देखकर भीष्म पितामह ने अपना शस्त्र नीचे रख दिया। महाभारत में शीखंडी को आगे कर भीष्म पितामह पर वाणों के प्रहार किए गए। इस तरह 58 दिनों तक बाणों के बिस्तर पर रहने के बाद उन्होंने स्वयं ही प्राण त्याग दिए और उन्हें मनुष्य जाति से मुक्ति मिली।

2.    द्रोणाचार्य को धनुर्विद्या का सर्वश्रेष्ठ गुरु माना जाता था। धनुर्विद्या ही क्या, हर तरह के हथियार चलाने के तरीके उन्हें आते थे। कौरव और पांडव उनके शिष्य थे। इन 105 भाइयों में अर्जुन उनके सबसे प्रिय शिष्य थे, और इसीलिए उन्होंने अर्जुन को ही सबसे ज्यादा सिखाया। वह जो कुछ भी जानते थे, वह सब कुछ उन्होंने सिर्फ अर्जुन को बताया। इसके पीछे वजह यह नहीं थी कि द्रोणाचार्य पक्षपात करते थे। इसकी सीधी सी वजह यह थी कि अर्जुन के अलावा किसी और में वे गुण ही नहीं थे,कि उनकी दी गई सारी विद्या को ग्रहण कर पाते।

Doston yudh ke dauran युधिष्ठिर ने कहा- "हाँ आचार्य, अश्वत्थामा मारा गया, किन्तु नर नहीं, कुंजर।" युधिष्ठिर द्वारा नर कहते ही श्रीकृष्ण ने इतने जोर से शंख बजाया कि द्रोणाचार्य आगे के शब्द न सुन सके। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र फेंक दिए तथा रथ पर ही ध्यान-मग्न होकर बैठ गए। तभी द्रुपद-पुत्र धृष्टद्युम्न ने खड्ग से द्रोणाचार्य का सिर काट दिया।

 

3.    कुरुक्षेत्र में अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। महाबली अर्जुन के बाणों से कर्ण का रथ बीसतीस हाथ पीछे खिसक जा रहा था जबकि कर्ण से बाणों से अर्जुन का रथ मात्र दो तीन हाथ ही खिसक पाता था। यह दृश्य देखकर अर्जुन के सारथि बने भगवान श्रीकृष्ण कर्ण के बाणों की भरपूर प्रशंसा कर रहे थे जबकि अर्जुन के कोशल की नाममात्र भी प्रशंसा नहीं किये। यह देखकर अर्जुन बड़ा दुखी हुआ और बोला – “ हे मधुसुदन ! आप मेरे शक्तिशाली प्रहारों की प्रशंसा करने के बजाय उस शत्रु के तुच्छ प्रहारों की प्रशंसा कर रहे है । क्यों ?” भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले – “ हे पार्थ ! तुम ही बताओ, तुम्हारे रथ के ध्वज पर साक्षात् हनुमान, पहियों पर शेषनाग और सारथि के रूप स्वयं नारायण विद्यमान है। उसके बाद भी यदि यह एक हाथ भी विचलित होता है तो कर्ण का कौशल बड़ा है। 

कलयुग में नारायणी सेना की वापसी संभव है ? The Untold Story of Krishna’s ...

क्या महाभारत युद्ध में नारायणी सेना का अंत हो गया ... ? या फिर आज भी वो कहीं अस्तित्व में है ... ? नारायणी सेना — वो ...