इन तीनों मे सबसे महान धनुर्धर कौन है ?
महाभारत में जीवन, धर्म, राजनीति, समाज, देश, ज्ञान, विज्ञान आदि सभी
विषयों से जुड़ा पाठ है। महाभारत एक ऐसा पाठ है, जो हमें जीवन
जीने का श्रेष्ठ मार्ग बताता है। महाभारत की शिक्षा हर काल में प्रासंगिक रही है।
1. किसी भी युद्ध
में भीष्म पितामह को मार पाना असंभव था क्योंकि उनके पास इच्छामृत्यु का वरदान था.
10 दिन तक युद्ध करने के बाद पांडव भी इस बात को समझ चुके थे की भीष्म पितामह को
हरा पाना असंभव है। श्रीकृष्ण ने जब देखा कि पांडव सेना मुसीबत में है तो हथियार न
उठाने का वचन देने के बावजूद वे स्वयं रथ का पहिया हाथ में थामकर भीष्म पितामह की
ओर दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाते देखकर भीष्म पितामह ने अपना शस्त्र नीचे रख
दिया। महाभारत में शीखंडी को आगे कर भीष्म पितामह पर वाणों के प्रहार किए गए। इस
तरह 58 दिनों तक बाणों के बिस्तर पर रहने के बाद उन्होंने स्वयं ही प्राण त्याग
दिए और उन्हें मनुष्य जाति से मुक्ति मिली।
2. द्रोणाचार्य को
धनुर्विद्या का सर्वश्रेष्ठ गुरु माना जाता था। धनुर्विद्या ही क्या, हर तरह के हथियार
चलाने के तरीके उन्हें आते थे। कौरव और पांडव उनके शिष्य थे। इन 105 भाइयों में
अर्जुन उनके सबसे प्रिय शिष्य थे, और इसीलिए उन्होंने अर्जुन को ही सबसे ज्यादा
सिखाया। वह जो कुछ भी जानते थे, वह सब कुछ उन्होंने सिर्फ अर्जुन को बताया।
इसके पीछे वजह यह नहीं थी कि द्रोणाचार्य पक्षपात करते थे। इसकी सीधी सी वजह यह थी
कि अर्जुन के अलावा किसी और में वे गुण ही नहीं थे,कि उनकी दी गई
सारी विद्या को ग्रहण कर पाते।
Doston yudh ke dauran युधिष्ठिर ने
कहा- "हाँ आचार्य, अश्वत्थामा मारा गया, किन्तु नर नहीं, कुंजर।"
युधिष्ठिर द्वारा नर कहते ही श्रीकृष्ण ने इतने जोर से शंख बजाया कि द्रोणाचार्य
आगे के शब्द न सुन सके। उन्होंने अस्त्र-शस्त्र फेंक दिए तथा रथ पर ही ध्यान-मग्न
होकर बैठ गए। तभी द्रुपद-पुत्र धृष्टद्युम्न ने खड्ग से द्रोणाचार्य का सिर काट
दिया।
3. कुरुक्षेत्र में
अर्जुन और कर्ण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था। महाबली अर्जुन के बाणों से कर्ण का
रथ बीस– तीस हाथ पीछे
खिसक जा रहा था जबकि कर्ण से बाणों से अर्जुन का रथ मात्र दो – तीन हाथ ही खिसक
पाता था। यह दृश्य देखकर अर्जुन के सारथि बने भगवान श्रीकृष्ण कर्ण के बाणों की
भरपूर प्रशंसा कर रहे थे जबकि अर्जुन के कोशल की नाममात्र भी प्रशंसा नहीं किये।
यह देखकर अर्जुन बड़ा दुखी हुआ और बोला – “ हे मधुसुदन ! आप मेरे शक्तिशाली प्रहारों की प्रशंसा करने
के बजाय उस शत्रु के तुच्छ प्रहारों की प्रशंसा कर रहे है । क्यों ?” भगवान श्री कृष्ण
मुस्कुराये और बोले – “ हे पार्थ ! तुम
ही बताओ, तुम्हारे रथ के
ध्वज पर साक्षात् हनुमान,
पहियों पर शेषनाग
और सारथि के रूप स्वयं नारायण विद्यमान है। उसके बाद भी यदि यह एक हाथ भी विचलित
होता है तो कर्ण का कौशल बड़ा है।”
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