हनुमान और वीरभद्र युद्ध
निर्गुण शिव/विष्णु ही परम शक्ति है जो इस संसार को संचालित
करती है जिनका न आदि है और न ही अंत, लेकिन सृष्टि
सञ्चालन के लिए ये ही तीनो गुणों में विभक्त होकर ब्रह्मा विष्णु महेश के रूप में
सगुन रूप में अवतरित होकर इस दुनिआ का सञ्चालन करते है.
ऐसे में कभी उन्हें मनुष्य रूप में अवतरित होकर भी कर्म
करने पड़ते है, कई कई बार तो एक ही साथ कई अवतार लिए है इन्होने. इसमें
उनका कोई स्वार्थ नहीं नहीं ही स्पृहा है वो तो जन कल्याण के लिए युगो युगो से ऐसा
करते आये है और आगे भी करते रहे है. लेकिन कभी कभी देववश ही इन्ही त्रिदेवो के
अवतार ही खुद आपस में भीड़ जाते है, कई बार तो इनमे
युद्ध भी हुए है जिनका परिणाम भी सार्थक हुआ था. आज हम हनुमान जी और शिव अंस वीरभाद्र युद्ध की कहानी
सुनेंगे कौन विजयी हुआ इस युद्ध मे इस यद्ध के बाद प्र्थिवी पर क्या प्रभाव हुआ ?
रामजी के अश्मेघ यज्ञ की कथा पद्म पुराण के पाताल खंड में
है जिसमे हनुमना जी यज्ञ के घोड़े की सुरक्षा के लिए साथ गए थे यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान
लड़ा गया। जब श्रीराम द्वारा किए जा रहे अश्वमेघ यज्ञ का अश्व कई राज्यों को
श्रीराम की सत्ता के अधीन किए जा रहा था।
इसी बीच यज्ञ का अश्व देवपुर पहुंचा, जहां राजा वीरमणि
का राज्य था। राजा वीरमणि ने भगवान शंकर की तपस्या कर उनसे, उनकी और उनके
पूरे राज्य की रक्षा का वरदान मांगा था।
महादेव का परमभक्त होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर
आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो
राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया। ऐसे में अयोध्या और देवपुर
में युद्ध होना तय था।
महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में पाकर वीरभद्र के नेतृत्व
में नंदी, भृंगी सहित अपने
सारे गणों को भेज दिया। एक और राम की सेना तो दूसरी ओर शिव की सेना थी। वीरभद्र ने
एक त्रिशूल से राम की सेना के भरत के पुत्र पुष्कल का मस्तक शरीर से अलग कर दिया।
उधर भृंगी आदि गणों ने भी राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना
लिया। यह सब देख हनुमान जी क्रोधित हो गए और फिर
शिव अंस वीरभाद्र और हनुमान जी के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया चरो ओर हाहाकार मचाने
लगा, कभी हनुमान जी के प्रहार से वीरभद्र कमजोर
दिखाई पड़ते तो कभी वीरभद्र का प्रहार हनुमान जी पर भरी पड़ने लगता। दोनों ही योद्धा
शिव के अंस है और इसलिए दोनों ही लगभग बराबर शक्तिशाली थे यह युद्ध 11 दोनों तक चलता रहा दो शक्तिशाली योद्धाओं के बीच इस युद्ध का कोई अंत
दिखाई नहीं पड़ रहा था 11 वे दिन हनुमान जी ने अपने स्वरूप का विस्तार किया और अधिक
तिबरता से प्रहार करना आरंभ कर दिया वीरभद्र ने भी अपनी शक्ति का विस्तार किया
दोनों योद्धाओं के इस यद्ध से पृथ्वी पर प्रलय जैसा वातावरण बन चुका था हनुमान जी
ने अपने गदा से वीरभद्र पर एक ज़ोर का प्रहार किया वीरभद्र वही तत्काल मूर्छित हो
गए और फिर उठ नहीं सके सारा वातावरण शांत हो गया सबकुछ मानो रुक सा गया हो तब उस
युद्ध में स्वयं भगवान शिव का आगमन हुआ हनुमान जी भगवान श्री राम को याद किया अपने भक्तों की
पुकार सुनकर श्रीराम तुरंत लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए।
तब श्रीराम और शिव में युद्ध छिड़ गया। भयंकर युद्ध के
बाद अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर शिव से कहा, ‘हे प्रभु, आपने ही मुझे ये
वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए
बिना नहीं रह सकता इसलिए हे महादेव, आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता
हूं’, ये कहते हुए
श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया। वो अस्त्र सीधा
महादेव के ह्वदयस्थल में समा गया और भगवान रुद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने
प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो
इच्छा हो वर मांग लें। भगवान राम ने वहाँ
उपस्थित सभी मृत व्यक्तियों को जीवित करने का वरदान मांगा भगवान शिव की कृपा से
सभी जीवित हो गए।
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