Saturday, 30 September 2017

अमरनाथ की गुफा मे दो कबूतरों का रहस्य.... Amarnath Cave Mystery

आदि
देव
,
महादेव
,
स्वयंभू पशुपति
,
नीलकंठ
,
भगवान आशुतोष
,
शंकर भोले भंडारी को सहस्त्रों नामों से
पुजा जाता है। श्री अमरनाथ धाम एक ऐसा शिव धाम है
जिसके संबंध में मान्यता है कि भगवान शिव साक्षात श्री अमरनाथ गुफा में विराजमान
रहते हैं। धार्मिक व ऐतिहासिक दृष्टी से अति महत्वपूर्ण श्री अमरनाथ यात्रा
हम
सब के लिए
स्वर्ग
की प्राप्ति का माध्यम
है। पावन गुफा में बर्फीली बूंदों से बनने वाला
हिमशिवलिंग ऐसा दैवी चमत्कार है जिसे देखने के लिए हर कोई
उत्साहित
रहता है और जो देख लेता है वो धन्य हो
जाता है। कश्मीर घाटी में स्थित पावन श्री अमरनाथ गुफा
एक प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा की लंबाई
 लगभग 160 फुट, और चौडाइ
लगभग
100 फुट है। आज
इस विडियो मे हम आपको अमरनाथ गुफा मे शिव जी के पधारने का कारण बताएँगे
, साथ ही ये जनेएंगे की यहाँ निवाश कर रहे उन कबूतरों के जोड़ो का क्या
रहस्य है
?




ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ मै आशा करता हूँ की आप इस विडियो को पूरा देखने के बाद हमारे इस चैनल को
subscribe
जरूर करेंगे और youtube के bell icon को बजाना न भूले हमरे latest अपडेट के लिए। आइए
सुनते हैं अमरनाथ की अमर गाथा।
बात उस समय की है एक बार जब माता पार्वती ने देवों
के देव महादेव से पूछा— ऐसा क्यों है की आप आजर हैं अमर हैं
? आपके कंठ में पडी़ नरमुंड माला और अमर होने के रहस्य क्या हैं?
इसपर महादेव ने पहले तो माता पार्वती को उन सवालों
का जवाब देना उचित नहीं समझा । इसलिए उन्होने उस बात को टालने की कोशिश की परंतु
माता पार्वती के हठ के कारण शिव जी ने उन्हे अमरता के इस गूढ रहश्य को बताना
स्वीकार किया।
इस रहस्य को बताने के लिए भगवान शिव को एक अत्यंत
एकांत जगह की आवश्यकता थी। और इसी जगह की तलाश करते हुए वो माता पार्वती को लेकर
आगे बढ़ते गए। गुप्त स्थान की तलाश में महादेव ने अपने वाहन नंदी को सबसे पहले
छोड़ा
,
नंदी जिस जगह पर छूटा, उसे ही पहलगाम कहा जाने
लगा। अमरनाथ यात्रा यहीं से शुरू होती है।
यहां से थोडा़ आगे चलने पर शिवजी ने अपनी जटाओं से
चंद्रमा को अलग कर दिया
, जिस जगह ऐसा किया वह चंदनवाडी
कहलाती है। इसके बाद गंगा जी को पंचतरणी में और कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़
दिया
, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। अमरनाथ यात्रा
में पहलगाम के बाद अगला पडा़व है गणेश टॉप
, मान्यता है कि
इसी स्थान पर महादेव ने पुत्र गणेश को छोड़ा।
जीवांदायिनी पांचों तत्वों को पीछे छोड़ने के बाद
भगवान शिव ने  माता पार्वती के साथ उस
पवित्र गुफा मे प्रवेश लिया। कोर्इ भी तीसरा प्राणी
, यानी कोई
व्यक्ति
, पशु या पक्षी गुफा के अंदर घुस कथा को न सुन सके इस
कारण भगवान शिव ने चारों ओर अग्नि प्रज्जवलित कर दी। फिर महादेव ने जीवन के उस गूढ़
रहस्यों की कथा शुरू कर दी।
मान्यता है की कथा सुनते सुनते देवी पार्वती को
नींद आ गई
, वो सो गईं, महादेव को पता
ही नहीं चला और वो कथा सुनते रहे। उस समय वो कथा दो सफ़ेद कबूतर सुन रहे थे और बीच
बीच मे गूं गूं की आवाज निकाल रहे थे जिससे महादेव को लगा की माता पार्वती उनकी
कथा सुन रही हैं।
दोनों कबूतर कथा सुनते रहे जब कथा समाप्त हुई और
भगवान शिव का ध्यान माता पार्वती पर गया तो उन्होने देखा की वो तो सो गईं हैं। तब
महादेव की नजर उन दोनों कबूतरों पर पड़ी उनको देखते ही महादेव को उनपर क्रोध आ गया।
कबूतर का जोड़ा उनकी शरण में आ गया और उन्होने बोला
-- भगवन्
हमने आपसे अमरकथा सुनी है
, यदि आप हमें मार देंगे तो यह कथा
झूठी हो जाएगी
, हमें पथ प्रदान करें। इस पर महादेव ने उन्हें
वर दिया कि तुम सदैव इस स्थान पर शिव व पार्वती के प्रतीक चिह्न में निवास करोगे।
अंतत: कबूतर का यह जोड़ा अमर हो गया और यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गर्इ। इस तरह
इस स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा।
आज का श्लोका ज्ञान :
 चन्दनं
शीतलं लोके
,चन्दनादपि चन्द्रमाः |
  चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये
शीतला साधुसंगतिः
अर्थात् : संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है
लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है
| अच्छे मित्रों का
साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है
|
दोस्तों हमरे द्वारा दी गई जानकारी अगर आपको पसंद
आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें
, अगर आपके मन मे
हमारे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा हुआ कोई प्रश्न है तो हमे कमेंट बाक्स में
बताए। हम उस प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगे। और ऐसी हीं प्रेरणादायी पौराणिक कहानीयां
सुनने के लिए हमारे इस चैनल को
subscribe जरूर करें ध्न्यवाद।
 How far
is Amarnath from Jammu?
 How is
shivling formed in Amarnath?
 Where is
the Shiv Khori?
Who built the Badrinath temple?
How many days it will take for Amarnath Yatra?

Thursday, 21 September 2017

माँ चंडिका और राक्षस महिसासुर के बीच महाप्रलयंकारी युद्ध। Durga and Mahi...

माँ चंडिका और राक्षस महिसासुर के बीच महाप्रलयंकारी
युद्ध




माँ दुर्गा को इस संसार मे शक्ति की देवी के रूप मे
पुजा जाता है। माँ ने कई बार पापियों के नाश के लिए इस धरती पर अलग अलग रूप मे
अवतार लिया है और कई राक्षसी शक्तियों से हमारी रक्षा की है। माता के इन्हीं
अवतारों मे से एक अवतार है माँ चंडिका का जिनहे हम माँ भगवती या माँ जगदंबा के नाम
से भी पुकारते हैं। माँ दुर्गा ने यह अवतार इसलिए लिया क्यूँ की एक दैत्य महिससुर
ने तीनों लोको पर अपना वर्चस्य स्थापित कर लिया था। पर यहाँ सवाल यह उठता है
त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्म भगवान विष्णु और भगवान शिव के होते हुए माँ दुर्गा को
यह अवतार लेने की आवश्यकता क्यूँ पड़ी
? क्या महिससुर से
सभी देव पराजित हो गए थे
? माँ ने उस द्त्य का वध किस प्रकार
किया
?
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ। आइए सुनते हैं महिससुर वध की कथा। मै आशा कर्ता हूँ आप हमारे इस विडियो
को पूरा देखने के बाद हमारे इस चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करेंगे।
महिषासुर दानवराज रम्भासुर का पुत्र था, जो बहुत शक्तिशाली था। कहा जाता है की महिषासुर का जन्म पुरुष और महिषी (भैंस)
के संयोग से हुआ था। इसलिए उसे महिषासुर कहा जाता था। वह अपनी इच्छा के अनुसार
भैंसे व इंसान का रूप धारण कर सकता था।
उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा को प्रसन्न करने
के लिए बड़ी कठिन तपस्या की। ब्रह्माजी उसके तप से प्रसन्न हुए। ब्रह्मा जी ने
प्रकट होकर महिषासुर से कहा
मांगो जो वर मांगना चाहते हो,
मैं तुम्हारी हर मनोकामना पूर्ण करूंगा। महिषासुर
ने उनसे अमर होने का वर मांगा। ब्रह्माजी ने कहा-- जन्मे हुए जीव का मरना तो तय
होता है इसलिए अमरता जैसी कोई बात अस्तित्व ही नहीं रखती । ब्रह्मा जी की बात
सुनकर महिषासुर ने उनसे कहा
ठीक है, अगर
मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दो कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से हो
,
कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए। ब्रह्मा जी ने तथास्तु
कहा और अंतर्ध्यान हो गए।
ब्रह्मा
जी से यह वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर का अहंकार
अपने चरम
पर पहुँच
गया।
अपनी सेना के साथ उसने धरती पर आक्रमण कर दिया। चारों तरफ त्राहिमाम-त्राहिमाम
होने लगा। समस्त जीवों और प्राणियों को उसके सामने नतमस्तक होना ही पड़ा। भूलोक और
पाताल को अपने अधीन करने के बाद महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया और
इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग को
भी अपने अधीन कर लिया।
तब सभी देवगन भगवान ब्रह्म भगवान विष्णु और भगवान
शिव के पास गए। भगवान विष्णु ने कहा-- हम सब को मिलकर देवी शक्ति का आह्वान करना
चाहिए। तब सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और फिर सभी
देवताओं के शरीर में से निकले तेज से माँ चंडिका का जन्म हुआ। इसके बाद सभी
देवताओं ने उन्हे अपने अस्त्र शस्त्र दिये भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल दिया।
भगवान विष्णु ने देवी को चक्र प्रदान किया। इसी तरह
, सभी
देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिए। इंद्र
ने अपना वज्र देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल
,
तलवार और दिव्य सिंह देवी को अर्पित कर दिया।  
इसके बाद युद्ध के लिए तैयार माता चंडिका ने महिससुर
को ललकारा और कहा – महिससुर या तो तू स्वयं पाताल लोक चला जा या फिर अपनी मृत्यु
के लिए तैयार हो जा। युद्ध की ललकार सुनकर महिषासुर भगवती से युद्ध करने आ पहुंचा।
महिषासुर की सेना का सेनापति आगे बढ़कर देवी के साथ युद्ध करने लगा माँ ने तत्काल
ही उसका वध कर दिया। अनेकों राक्षसो का वध करते हुए माँ महिससुर के पास पहुँचीं। सारे
देवता इस महायुद्ध को बड़े कौतूहल से देख रहे थे। असुर सम्राट महिससुर ने विभिन्न
रूप धारण कर भगवती देवी को छलने की कोशिश की। परंतु माता पर उसकी किसी शक्ति का
कोई प्रभाव नहीं पड़ा उसने अनेकों अस्त्रों से प्रहार करना चाहा परंतु माता ने सब प्रहार
विफल कर दिये अंत मे माता ने त्रिसुल से उसका वध कर दिया।
सत्य
-सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
सत्यमूलनि
सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥
सत्य
ही संसार में ईश्वर है
; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है; सत्य ही समस्त भव - विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
रम्भ
ने क्यूँ किया था एक भैस के साथ समागम
, Rambh and karambh story, how chandika devi killed
mahisasur, birth of mahisasur and raktaabeez, mahisasur mardini, mahisasur
mardini shivyog, birth of mahisasur, goddess durga, mahishasur, why did rambha
have sex with buffalo, sex with buffalo, buffalo sex, rambha karambha, karambha
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buffalo, rambha ox, facts of about mahisasur, indra dev, lord indra
what are the
different avataars of maa durga, story of durga and mahisasur, how mahisasur
was killed, how devi chadi was born or came into existense, story of nine
avataar of maa durga, how first time maa durga came into existense, love story
of lord shiv and parvati, dharma yatra, shreemad home remedies, gyan the
treasure, why laxman ji did not sleep for 14 years, did hanuman ji married,
which was the last roop of maa durga, story of devi laxmi, logical hindu

Tuesday, 19 September 2017

Navratri 2017 - सप्तमी, अष्टमी, नवमी के दिन होती है माँ के इन स्वरूपों...

               
   
नवरात्रि episode 3



ये
काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन करता हूँ
, दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं, काल चक्र के पिछले अध्याय मे हमने आपको
नव दुर्गा के
छः स्वरूपों यानि माँ शैलपुत्री, माँ
ब्रह्मचारिणी
, माँ चंद्रघंटा, माँ कूष्माण्डा, स्कंदमाता, और माँ कात्यायनी के बारे में बताया था।
आज इस अगले अध्याय मे हम आपको नव दुर्गा के अन्य स्वरोपों की जानकारी देंगे। मै
आशा करता हूँ की हमारे इस विडियो को पूरा देखने के बाद आप इस चैनल को सुब्स्कृबे
जरूर करेंगे।
माँ
दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें
दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है।
जैसा की नाम से अभिव्यक्त होता है कि मां
दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला
है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले
में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली
शक्ति हैं कालरात्रि। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के
दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत
होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव
, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही
भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि
, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय का
नाश हो जाता है।
माँ
दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है।  इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए
उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। 4 भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए वृषारूढ़ा
भी कहा गया है ।
मान्यता है की  पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी
ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न
होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना
या
था। तभी से इनका रूप गौर वर्ण का हो गया और ये महागौरी कहलाईं। यह अमोघ फलदायिनी
हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं।
माँ
दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का
आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
हिमाचल के नंदापर्वत पर इनका प्रसिद्ध
तीर्थ है।
इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर
भी आसीन होती हैं। मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर
उपासना करना चाहिए।
माँ का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध
कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।
दोस्तों
आज के इस
episode मे बस इतना ही नव दुर्गा के अन्य सभी
रूपों की जानकारी के लिए हमारा
पिछले अन्य एपिसोड देखना बिलकुल मत भूलिएगा, दोस्तों देवी दुर्गा या नवरात्रों से
जुड़ी कोई भी जानकारी या पर्श्न हो तो आप हमे हमारे कमेंट बॉक्स मे बता सकते हैं हम
उसका जवाब अवश्य देंगे। इस तरह की और भी धार्मिक
videos के लिए हमारे चैनल को सुब्स्कृबे जरूर करें । ध्न्यवाद  

Sunday, 17 September 2017

Navratri 2017 - माँ दुर्गा के नौ स्वरूप || 9 avatars of durga || Kaal Ch...

       नवरात्रि
episode
2




ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ
, दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं, काल चक्र के
पिछले अध्याय मे हमने आपको नव दुर्गा के तीन स्वरूपों यानि माँ शैलपुत्री
, माँ ब्रह्मचारिणी, और माँ चंद्रघंटा के बारे में
बताया था। आज इस अगले अध्याय मे हम आपको नव दुर्गा के अन्य स्वरोपों की जानकारी
देंगे। मै आशा करता हूँ की हमारे इस विडियो को पूरा देखने के बाद आप इस चैनल को
सुब्स्कृबे जरूर करेंगे।
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के
स्वरूप की उपासना की जाती है। माना जाता है की माँ ने ही इस समस्त ब्रह्मांड की
रचना की थी और इसीलिए इन्हे कुष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। इस देवी की
आठ भुजाएं हैं
, इसलिए ये अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में
क्रमशः कमण्डल
, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र
तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस
देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े यानि कदु  की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को
कुष्मांड कहते हैं। दोस्तों माँ कुष्मांडा की भक्ति से व्यक्ति के सभी रोगों और
शोकों का नाश होता है और उसे आयु यश बल और आरोग्य प्राप्त होता है ।
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का
दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। स्कन्द कुमार यानि
भगवान कार्तकेय की माता होने के कारण इनका नाम स्कंदमता पड़ा। माता के विग्रह मे
भगवान स्कन्द बल स्वरूप मे विराजित होते हैं। स्कन्द माता की चार भुजाएँ हैं
, दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे
वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा
,
वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। यह कमल के आसन पर विराजमान
रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मन को एकाग्र रखकर और पवित्र
रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं
आती है और उसकी सभी इक्छए जल्दी ही पूर्ण हो जाती है ।
नवरात्र मे छठे दिन माँ कात्यायनी की पुजा अर्चना
की जाती है। कालांतर मे कात्य गोत्र मे एक बड़े ही महान ऋषि उत्पन्न हुए थे जिंका
नाम था महर्षि कात्यायन उन्होने माँ भगवती की बड़ी कठोर उपासना की
, उनकी इक्छा थी की माँ भगवती का जन्म उनकी पुत्री के रूप मे हो। उनकी
तपस्या सफल भी हुई और माता ने
महर्षि कात्यायन की पुत्री के रूप
मे जन्म लिया। तभी ने उनको कात्यायनी देवी पुकारा जाने लगा।
इनकी उपासना और आराधना से
भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ
, धर्म, काम
और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग
, शोक,
संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।
दोस्तों आज के इस episode मे
बस इतना ही नव दुर्गा के अन्य सभी रूपों की जानकारी के लिए हमारा अगला एपिसोड
देखना बिलकुल मत भूलिएगा
, दोस्तों देवी दुर्गा या नवरात्रों
से जुड़ी कोई भी जानकारी या पर्श्न हो तो आप हमे हमारे कमेंट बॉक्स मे बता सकते हैं
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Wednesday, 13 September 2017

किसने और क्यूँ मारा था एकलव्य को || how eklavya was killed || Kaal Chakr...





एकलव्य
का वध श्री कृष्ण ने क्यों किया था
| Why did Krishna kill Ekalavya
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे ऐसे कई सारे पत्र थे
जो हमारे पुरानो वेदो उपनिषदों आदि के पन्नो मे खो गए जिनहे उनकी उचित पहचान नहीं
मिल पाई जिसके वो योग्य थे। आज हम एक एक ऐसे ही पत्र का वर्णन करने जा रहे हैं
जिनकी धनुर्विद्या अर्जुन और कर्ण के समान ही थी उनका नाम है एकलव्य। परंतु
दोस्तों ये वीर एकलव्य कौन था
? इस योद्धा का जिक्र अत्यधिक
क्यूँ नहीं मिलता
? एकलव्य की मृत्यु कैसे हुई ? किसने मारा था एकलव्य को ?
एकलव्य, निषादराज
हिरण्यधनु और रानी सुलेखा का पुत्र था
, जिसका नाम अभिद्युम्नरखा गया था। प्राय: लोग उसे अभयनाम से बुलाते थे। पाँच वर्ष की आयु मेँ एकलव्य
की शिक्षा की व्यवस्था कुलीय गुरूकुल मेँ की गई थी ।
बालपन से ही अस्त्र शस्त्र विद्या मेँ बालक की लगन
और एकनिष्ठता को देखते हुए उसके गुरू ने बालक का नाम
एकलव्यसंबोधित किया था । एकलव्य धनुर्विद्या की
उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता था। उस समय धनुर्विद्या मेँ गुरू द्रोण की ख्याति
थी। परंतु गुरु द्रोण केवल ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग को ही शिक्षा देते थे और
शूद्रोँ को शिक्षा देने के कट्टर विरोधी थे।उसके पिता महाराज हिरण्यधनु ने एकलव्य
को काफी समझाया कि द्रोण तुम्हे शिक्षा नहीँ देँगे। पर एकलव्य ने पिता को मनाया कि
उसकी  शस्त्र विद्या से प्रभावित होकर
आचार्य द्रोण स्वयं उसे अपना शिष्य बना लेँगे। पर एकलव्य का सोचना सही न था

द्रोण ने उसे शिक्षा देने से साफ इंकार कर दिया ।
एकलव्य हार मनाने वालों में से नहीं था, बिना शस्त्र विद्या सीखे वह घर वापिस जाना नहीं चाहता था इसी कारण उसने वन
में जाकर आचार्या द्रोण की प्रतिमा बनाई और धनुर्विद्या का अभ्यास आरंभ कर दीया।
धीरे धीरे उस अभ्यास से वो ध्नुर्विद्या में निपुण होता चला गया। एक दिन अभ्यास के
दौरान एक कुत्ता वहाँ आ कर भौकने लगा जिससे एकलव्य की एकाग्रता बार बार भंग हो जा
रही थी। उसने उसी वक़्त उस कुत्ते के ऊपर एक ऐसे बाण से प्रहार किया जिससे उस
कुत्ते का मुह भी बंद हो गया और उसे किसी प्रकार की कोई क्षति भी नहीं पहुंची।
वह कुत्ता गुरु द्रोण का था जब गुरु द्रोण ने उस
कुत्ते की ये अवस्था देखि तब वो समझ गए की ये किसी बहुत ही श्रेस्ठ धनुर्धर का कम
है। वे उस महान धुनर्धर की खोज मेँ लग गए अचानक उन्हे एकलव्य दिखाई दिया जिस
धनुर्विद्या को वे केवल क्षत्रिय और ब्राह्मणोँ तक सीमित रखना चाहते थे उसे
शूद्रोँ के हाथोँ मेँ जाता देख उन्हेँ चिँता होने लगी।  तभी उन्हे अर्जुन को संसार का सर्वश्रेष्ठ
धनुर्धर बनाने के वचन की याद आयी।  द्रोण
ने एकलव्य से पूछा- तुमने यह धनुर्विद्या किससे सीखी
? एकलव्य- आपसे आचार्य! एकलव्य ने द्रोण की मिट्टी की बनी प्रतिमा की ओर
इशारा किया। द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणा मेँ एकलव्य के दाएँ हाथ का अगूंठा
मांगा एकलव्य ने अपना अगूंठा काट कर गुरु द्रोण को अर्पित कर दिया।
लेकिन बाद में एकलव्य बिना अंगूठे के भी अपनी साधना
पूर्ण कौसल से  धनुर्विद्या मे पुनः दक्षता
हंसिल कर लेता है। आज के युग मेँ आयोजित होने वाली सभी तीरंदाजी प्रतियोगिताओँ मेँ
अंगूठे का प्रयोग नहीँ होता है
, अत: एकलव्य को आधुनिक
तीरंदाजी का जनक कहना उचित होगा।
एक बार वह जब जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर
आक्रमण करता है तो अपने बाणों से यादव सेना को तहस नहस करने लगता है तब यदुवंसियों
को बचाने के लिए भगवान शिरी कृष्ण अपने सुदरसन चक्र से एकलव्य का वध कर देते हैं ।
दोस्तों एकलव्य का एक बड़ा हि वीर पुत्र था केतुमन इसी योद्धा की कहानी हम अपने
किसी और एपिसोड में बताएँगे।
दोस्तों एकलव्य के जीवन की ये प्रेरणादायी कहानी
अगर आपको पसंद आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें
, अगर आपके पास हमारे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा हुआ कोई प्रश्न है तो
हमे कमेंट बाक्स में बताए। हम उस प्रश्न का जवाब अवश्य देंगे ।
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how eklavya was born, how eklavya was killed, how guru
dronacharya was born, how jarasandh was born, how sage shringi was born, who
wrote the first ramayana, did lord hanuman married, what are the nine avatars
of durga, love story of karna and draupadi, love story of radha and krishna,
did lord ram had a sister named shanta, how ajun got gandiv dhanush, how karna
got vijay dhanush, is ramayana real or fake Big Magic Entertainment (TV Genre) Eklavya
Episode
·        
 
     

Monday, 11 September 2017

क्यों मारा भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु की छाती में लात || Kaal Chakra

क्यों
मारा भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु की छाती में लात




कालांतर मे एक बहुत ही महान ऋषि हुए थे जिनका नाम
था महर्षि  भृगु इनका जन्म 5000 ईसा पूर्व
मे हुआ था। महर्षि भृगु की महानता का अंदाज़ा इस बात से लगया जा सकता है की उनके
द्वारा रचित ज्योतिष ग्रंथ भृगु संहिता आज भी हमारे लिए अनुकरनिए है। महर्षि के  इस संहिता द्वारा किसी भी इंसान के तीन जन्मों
का फल निकाला जा सकता है। इस ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले सूर्य
, चन्द्रमा, मंगल, बुद्ध,
बृहस्पति,शुक्र  शनि आदि ग्रहों और नक्षत्रों पर आधारित वैदिक
गणित के इस वैज्ञानिक ग्रंथ के माध्यम से जीवन और कृषि के लिए वर्षा आदि की भी
भविष्यवाणियां की जा सकती हैं। परंतु आज हम 
महर्षि भृगु के जीवन काल से जुड़ी एक ऐसे घटना का वर्णन करने जा रहे हैं
, जब उन्होने भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैरों से प्रहार कर  दिया था। तो ऐसा क्या हुआ था जिसके कारण महर्षि
को इतना घोर पाप करना पड़ा
? इतने बड़े पाप का भागीदार कौन कौन
था
? और महर्षि को इस पाप की क्या सज़ा मिली ?
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ। अगर आप इस विडियो को पूरा देखते हैं तो मै आशा करता हूँ की आप हमारे इस
चैनल को जरूर सुब्स्कृबे करेंगे । आइए सुनते हैं महर्षि भृगु की जीवन गाथा ।
पद्मपूरण के उपसंहार खंड मे वर्णित कथा के अनुसार
मनदारचल पर्वत पर हो रहे यज्ञ मे ऋषि मुनियों मे इस बात पर विवाद छिड़ गया की
त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्म भगवान विष्णु और भगवान शिव मे से सबसे श्रेस्ठ देव
कौन हैं
? इस विवाद के अंत मे ये निष्कर्ष निकला की जो देव सतोगुणी होंगे वही
श्रेस्ठ कहलएंगे। इसके परीक्षण के लिए भृगु ऋषि को नियुक्त किया गया।
त्रिदेवों की परीक्षा लेने के क्रम मे भृगु ऋषि
सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे- वहाँ जाकर वो बिना कारण ही ब्रह्मा जी के ऊपर क्रोधित
हो गए और ये कहने लगे की आप सभी ने मेरा यहाँ अनादर किया है । यह देख ब्रह्मा जी
को भी क्रोध आ गया और उन्होने कहा- तुम अपने पिता से ही आदर की आशा रखते हो भृगु
तुम कितने भी बड़े विद्वान क्यूँ ना हो जाओ तुम्हें अपने से बड़ों का आदर करना नहीं
भूलना चाहिए । इस पर भृगु ऋषि ने कहा – क्षमा कीजिये भगवन लेकिन आप क्रोधित हो गए
और मै तो बस इतना ही देख रहा था की आपको क्रोध आता है या नहीं। इतना कह कर भृगु
ऋषि महादेव की परीक्षा ले के लिए कैलाश की ओर चल दिये ।
कैलाश पहुँच कर उन्हे पता चला भगवान शिव अपने ध्यान
मे लिन हैं उन्होने नंदी से कहा – जाओ जा कर भगवान शिव को उनके आने की सूचना दो ।
नंदी ने कहा – मै ऐसा नहीं कर सकता भगवान शिव
क्रोधित हो जाएंगे। इसपर भृगु ऋषि स्वयं ही उस स्थल पर चले गए जहां भगवान शिव
ध्यान मे लिन थे और वहाँ पहुँच कर भगवान शिव का अहवाहन किया और बोले कैलाश हो या
कहीं कभी ऋषि मुनियों के लिए तो द्वार सदैव खुले होते हैं।
शिव जी का ध्यान भंग हो गया और वो क्रोधित हो गए-
भगवान शिव ने कहा भृगु तुम्हारी मौत तुम्हें यहा तक ले आयी है आज तुम्हारी मृत्यु
निश्चित है मै अभी तुम्हें भष्म कर देता हूँ। तभी माता पार्वती वहाँ आ गईं और
भगवान शिव से भृगु ऋषि के प्राणो की रक्षा के लिए नीवादन किया और ये बताया की इसमे
भृगु ऋषि की कोई गलती नहीं है वो तो बस पृथ्वी के सभी ऋषि मुनियों का मार्गदर्शन
करना चाहते हैं ।
यह सब जान कर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया और
उन्होने भृगु ऋषि को बताया की क्रोध तो मेरा स्थायी भाव है।
इसके बाद भृगु ऋषि वैकुंठ पहुंचे, वहाँ पहुँच कर उन्होने देखा भगवान विष्णु निद्रा की अवस्था मे थे । भृगु
ऋषि को लगा की उन्हे आता देख भगवान विष्णु जानबूझकर सोने का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने
अपने दाहिने पैर का आघात श्री विष्णु जी की छाती पर कर दिया। भगवान विष्णु की
निद्रा भंग हो गई
, उठते ही उन्होने महर्षि का पैर पकड़ लिया
और कहा भगवन् ! मेरे कठोर वक्ष से आपके कोमल चरण में चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु
लज्जित भी हुए और प्रसन्न भी
, इसके बाद उन्होंने श्रीहरि
विष्णु को त्रिदेवों में श्रेष्ठ सतोगुणी घोषित कर दिया।
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।



स्मृतिभ्रंशाद्
बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति
क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति
विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से
वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।।
दोस्तों भृगु ऋषि के जीवन की ये प्रेरणादायी कहानी
अगर आपको पसंद आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें
, अगर आपके पास हमारे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा हुआ कोई प्रश्न है तो
हमे कमेंट बाक्स में बताए। हम उस प्रश्न का जवाब अवश्य देंगे ।
और
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Saturday, 9 September 2017

जानिए किसके हाथों हुई थी ? भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु! || Lord Krishna's...





जानिए किसके हाथों हुई थी ? भगवान श्री कृष्ण की मृत्यु! || Lord Krishna's death!
महाभारत का युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया
एक ऐसा भयानक युद्ध था जिसके कारण न जाने कितने लोगों ने अपनी जान गवाई और आज भी
उनके लहू से कुरुक्षेत्र की मिट्टी का रंग लाल ही है।  महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की कहानी को 18
खण्डों में संकलित किया था। कुरुक्षेत्र का युद्ध इस ग्रंथ का सबसे बड़ा भाग है
लेकिन युद्ध के पश्चात भी बहुत कुछ ऐसा रह गया जिसके विषय में जानना बहुत जरूरी
है। भगवान् श्रीकृष्ण की मृत्यु की घटना भी इसी का हिस्सा है।  मौसल पर्व
, महाभारत ग्रंथ के
18 पर्वों में से एक है जो 8 अध्यायों का संकलन है। इसी पर्व में भगवान् कृष्ण के
मानव रूप को छोड़ने की घटना का वर्णन है।
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ आइए जानते हैं क्या छिपा है मौसल पर्व की इस कहानी के भीतर...
हम सभी ये तो जानते ही हैं की भगवान कृष्ण की
मृत्यु जरा नाम के बहेलिये के तीर मारने से हुई थी परंतु सवाल ये उठता है की सिर्फ
एक बाण से ही भगवान की मृत्यु कैसे हो सकती है
? भगवान कृष्ण ने
अपने लिए भगवान राम की तरह इच्छा मृत्यु क्यूँ नहीं चुनी
?
इस पृथ्वी पर कोई भी घटना अकारण नहीं होती, इस घटना का संबंध त्रेता युग से जुड़ता है जब भगवान राम ने वानर राज
सुग्रीव की  सहायता करने का निश्चय किया और
उन्हे उनकी पत्नी समेत उनका राज्य वापिस दिलाने का वचन दिया । इसी क्रम मे वानर
राज सुग्रीव ने अपने बड़े भाई बाली को मल्ल युद्ध का निमंत्रण दिया
, क्यूंकी बाली को कोई भी सामने से पराजित नहीं कर सकता था, इसीलिए भगवान राम ने उसे एक पेड़ के पीछे छिप कर अपने बाण से मर गिराया ।
तब बाली ने भगवान राम से बड़े ही करुणा भरे शब्दों मे कहा भगवान इस जन्म मे अपने
मुझे मारा है अगले जन्म मे ठीक ऐसे ही मै आपको मरूँगा। भगवान राम ने तथस्तु कहा।
यही कारण था की द्वापर युग मे बाली का जन्म एक
बहेलिये के घर हुआ था
, और उसका नाम जरा था, बताया जाता है की भगवान कृष्ण के चरणो मे जन्म से ही एक नीसान था जो रात
के वक़्त चमकता था एक बार जब भगवान कृष्ण रात मे एक पेड़ की छाव मे विश्राम कर रहे
थे तभी जरा बहेलिये को उनके पैरों के निशान को देखकर लगा की ये किसी पक्षी की आँख
है और उसने बाण चला दिया जो भगवान कृष्ण के परों मे लगी और इस प्रकार उनकी मृत्यु
हो गई।


आज का श्लोका ज्ञान भगवत गीता से --

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।२३।।

इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, जल गला नहीं सकता और वायु सूखा
नहीं सकता।     



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Tuesday, 5 September 2017

भगवान श्री राम की मृत्यु ??? Kaal Chakra

       भगवान
राम की मृत्यु




जिस प्रकार इस दुनिया मे आने वाला हर एक प्राणी
अपने जीवन और मृत्यु की तारीख यमलोक मे निर्धारित कर के आता है। उसी तरह इंसान रूप
में जन्म लेने वाले ईश्वर के अवतारों का भी इस पृथ्वी पर एक निश्चित समय था
, वो समय समाप्त होने के बाद उन्हें भी मृत्यु धारण  करके अपने लोक वापस लौटना ही था। भगवान विष्णु
के महान अवतार प्रभु श्री राम के इस दुनिया से चले जाने की काफी रोचक
कहानी
है।
काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ तो आइए सुनते भगवान राम के धरती लोक से विष्णु लोक जाने की ये पौराणिक
कथा ।
पद्मपुरान मे वर्णित कथा के अनुसार एक बार एक वृद्ध
साधू भगवान राम के दरबार मे पहुंचे और उनसे अकेले मे चर्चा करने के लिए निवेदन
किया उस साधू की बात मानकर भगवान राम उन्हे एक कक्ष मे ले गए और द्वार पर लक्ष्मण
को खड़ा कर दिया और कहा कि यदि उनके और उस साधू की चर्चा को किसी ने भंग करने की
कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
लक्ष्मण
जी
ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का
पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने
लगे। वह
साधू कोई और नहीं बल्कि यम लोक से भेजे गए यम देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा
गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना
होगा।
उनके इस तरह वेश बदलकर आने का कारण हनुमान जी थे जिनसे यमदेव
भयभीत रहते थे।
अभी यम देव जो साधू के वेश मे थे, और भगवान राम की चर्चा चल ही रही थी की अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए
और भगवान राम से शीघ्र मिलने की इक्षा प्रकट की । लक्ष्मण जी ने उनसे क्षमा मांगते
हुए ये कहा की – भगवान राम अभी आपसे नहीं मिल सकते आप थोड़ी प्रतीक्षा कीजिये । यह
सुनकर दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होने कहा की – श्री राम को उनके आने की
सूचना दो वरना मै श्राप दे कर राम लक्ष्मण भरत सहित इस राज्य का विनाश कर दूंगा ।
दुर्वासा ऋषि की बात सुनकर लक्ष्मण जी चिंता मे पद
गए उन्हे ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर इस
समस्त साम्राज्य को श्राप मिलने से बचाएं। अंततः उन्होने सोचा की ऋषि के श्राप
पाकर सभी की मृत्यु से अच्छा है अकेले मेरी ही मृत्यु हो । और फिर वो उस कक्ष मे
चले गए जहां भगवान राम और उस साधू की बातचित हो रही थी और वह जाकर उन्होने  दुर्वासा ऋषि के आने की सूचना भगवान राम को दी।
तब भगवान श्री राम साधू रूपी काल को विदा कर के ऋषि
दुर्वासा का सत्कार करते हैं। भगवान श्री राम धर्म संकट में पड़ गए
, अब एक तरफ अपने फैसले के अनुसार उन्हे अपने भाई लक्ष्मण को मृत्यु दंड
देना था क्यूँ की उन्होने भगवान राम और उस साधू का एकांत भंग किया था।   और
दूसरी तरफ वो भाई के प्रेम से निस्सहाय थे। तब ऋषि वशिष्ठ जी श्रीराम से कहा आप अपने
भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकाल दीजिये
, दोस्तों उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता
था। यह सुनकर भगवान राम ने लक्ष्मण जी का परित्याग कर दिया।
लेकिन लक्ष्मण जी जो कभी अपने भाई राम के बिना एक
क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस धरती को ही छोड़ने का निर्णय ले लिया। वे सरयू
नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए  नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण जी के जीवन
का अंत हो गया
, लक्ष्मण जी के सरयू नदी के अंदर जाते ही वे
अनंत शेष नाग  के अवतार में बदल गए और
विष्णु लोक चले गए।
अपने भाई के चले जाने से प्रभु श्री राम काफी उदास
हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं
, ठीक उसी तरह
लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से
चले जाने का विचार किया
, यह विचार जानकर हनुमान, जामवंत, विभिसन सहित सभी वानर वहाँ आ गए और फिर
भगवान श्री राम
, भरत और सतृघन ने सरयू नदी मे प्रवेश किया और
उसी जल मे विलीन हो गए।
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Sunday, 3 September 2017

शिव और विष्णु का महाप्रलयंकारी युद्ध | Battle between Shiva and Vishnu |...

शिव
और विष्णु का महाप्रलयंकारी युद्ध




भगवान विष्णु ही इस शृष्टि के पालनहार हैं और भगवान
शिव को शृष्टि के संहारक माना जाता है । ये दोनों ही सर्वशक्तिमान हैं और माना
जाता है की दोनों ही एक दूसरे के परम भक्त हैं । लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि
भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच भी कभी भयंकर युद्ध हुआ था। बहुत ही कम लोगों को
ये पता है कि इन दोनों के बीच भी युद्ध हुआ था। तो फिर यह युद्ध कितने दिनो तक चला
? इस युद्ध का इस शृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ा? इस
युद्ध मे कौन विजयी हुआ
?
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ। आज हम भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच होने वाले महाप्रलयंकारी युद्ध
की कथा सुनयेंगे ।
एक दिन माता लक्ष्मी अपने पिता समुद्र देव से मिलने
आयीं तब उन्होने देखा की उनके पिता काफी चिंतित प्रतीत हो रहे हैं । उन्होने ने
उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा – तब समुद्र देव ने कहा हे ! पुत्री मै तुम्हारे लिए
अति प्रसन्न हूँ की तुम्हारा विवाह श्री हरी विष्णु के साथ हुआ है लेकिन तुम्हारी
पाँच बहने सुवेषा
, सुकेशी समिषी, सुमित्रा और वेधा भी मन ही मन विष्णु देव को अपना पति मन चुकीं हैं और
उनको पाने के लिए कठोर तप्श्या कर रहीं हैं । यह बात सुनकर माता लक्ष्मी भी अत्यंत
चिंतित हो गईं
, और वैकुंठ धाम वापिस आ गईं ।
वापिस आकर माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा- हे
प्राणनाथ आज मुझे विश्वश दिला दीजिये की आपके सम्पूर्ण हृदय मे केवल मेरा स्थान है
भगवान विष्णु ने कहा – देवी आप इस सत्या से अनभिज्ञ
नहीं हैं की मेरे हृदय के आधे भाग मे केवल महादेव हैं
, मै ये कैसे कह दूँ की मेरे संपूर्ण हृदय मे आप हैं ।
इसपर देवी लक्ष्मी ने कहा – तो फिर शेष आधा भाग तो
मेरे लिए होना चाहिए ।
भगवान विष्णु ने कहा – देवी मै जगत का पालनहार हूँ
शेष आधे भाग मे मेरे अनेक भक्त जो मुझे प्रिए हैं
, ये संसार
जो मुझे प्रिए है ये सब भी मेरे हृदय के आधे भाग मे आपके साथ रहते हैं ।
देवी लक्ष्मी ने कहा – ये संसार मुझे भी प्रिए है
स्वामी किन्तु मेरे हृदय मे केवल आप हैं । मुझे आपका प्रेम सम्पूर्ण स्वरूप मे ही
चाहिए यदि ये संभव नहीं है तो आप मुझे अपने हृदय से निकाल दीजिये ।
यहाँ दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी की पांचों बहने
तप्श्या मे सफल हुईं और भगवान विष्णु ने पटल लोक आ कर उन्हे दर्शन दिया और
मनवांछित वरदान मांगने को कहा। तब उन पांचों बहनों ने यह मांगा की भगवान आप हम
पांचों बहनों के पति बन जाएँ और अपनी सारी स्मृतियों को और इस संसार को भूलकर उनके
साथ ही पाताल लोक मे वाश करें। भगवान विष्णु ने उन्हे तथस्तु कहा और उनके साथ ही
पाताल लोक मे वाश करने लगे।
भगवान विष्णु के चले जाने से संसार का संतुलन
बिगड़ने लगा। माता लक्ष्मी भी बहुत व्याकुल हो गईं और भगवान शिव के पास गईं वह माता
पार्वती ने उनसे कहा – हे! देवी भगवान विष्णु तो जगत पालक हैं आप उनसे ये आशा कैसे
रख सकतीं हैं की उनके सम्पूर्ण हृदया मे केवल आप का ही स्थान हो । मेरे पति महादेव
के हृदया मे भी भगवान विष्णु हैं और उनके समस्त भक्तों के साथ मै भी हूँ और मै इस
बात से खुश हूँ की उनके हृदय मे मेरा एक विशेष स्थान है ।
यह बात सुनकर देवी लक्ष्मी को अपनी भूल का एहसास
हुआ। भगवान शिव यह देख कर अत्यंत दुखी हुए
, शृष्टि के संतुलन
को पुनः स्थापित करने का और भगवान विष्णु को पाताल से वापिस लाने का निश्चय किया ।
उन्होने वृषभ अवतार लेकर पाताल लोक पर आक्रमण कर दिया। उन्हे देख कर भगवान विष्णु
अत्यंत क्रोधित हुए और महादेव के सामने आ गए और उन दोनों के बीच युद्ध प्रारम्भ हो
गया ।
भगवान विष्णु ने महादेव पर अनोकों अस्त्रों से
प्रहार करना आरंभ कर दिया महादेव भी अपने वृसभ स्वरूप मे उनके सभी प्रहारों को
विफल करते गए । दोनों ही सर्वशक्तिमान थे अतः युद्ध बिलकुल बराबरी का चल रहा था।
ये युद्ध अनेकों वर्षों तक चलता रहा किसी को भी इस युद्ध की समाप्ती का उपाय समझ नहीं
आरहा था। भगवान विष्णु का क्रोध इतना बढ़ गया की उन्होने ने अपने नारायण अश्त्र से
महादेव के ऊपर प्रहार कर दिया और महादेव ने उनपर पसूपतस्त से प्रहार कर दिया। इस
कारण दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों मे बांध गए।
यह सब देख कर गणेश जी माता लक्ष्मी की उन पांचों बहनों
के पास गए और बोले – भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों मे
बंध गए हैं यदि भगवान विष्णु की स्मृति वापिस नहीं आई तो ये दोनों अनंत काल तक ऐसे
ही बंधे रहेंगे और इस समस्त शृष्टि का सर्वनाश हो जाएगा ।
यह सुनकर वो पंचो बहने युद्ध क्षेत्र मे आयीं और
भगवान शिव से बोलीं- भगवान विष्णु हम हमारे सारे वचनो से आपको मुक्त करते हैं।
उनके वचन से मुक्त होते हि भगवान विष्णु की सारी स्मृति वापिस आ जाती है और फिर
उन्होने भगवान शिव को अपने अस्त्रों के बंधन से मुक्त कर दिया भगवान शिव ने भी
उन्हे मुक्त कर अपने साकार रूप मे आ गए । और फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु को
लेकर वैकुंठधाम आ गए ।    

Friday, 1 September 2017

महाभारत का गुप्त रहस्य जो जुड़ा है अंक 18 से | Mahabharat Secrets |Kaal ...

महाभारत मे अंक 18 का रहस्य



महाभारत मे सम्पूर्ण धर्म, दर्शन, युद्ध, ज्ञान विज्ञान, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र,
वास्तुशास्त्र
, कामशास्त्र,
शिल्पशास्त्र
, और खगोलविद्या की बातें शामिल हैं । ऐसा कुछ
भी नहीं है जो महाभारत मे नहीं है और इसीलिए महाभारत को पंचवा वेद भी कहा जाता है
। इसे साहित्य की सबसे अनुपम कृतियों मे से एक माना जाता है और आज भी ये ग्रंथ प्रत्येक

भारतीय के लिए अनुकरनिए स्रोत है । महाभारत प्राचीन भारत के
इतिहास की एक गाथा है और इसी मे हिन्दू धर्म का पवित्रतम ग्रंथ भगवद्गीता सनहित है
हालांकि यह एक आश्चर्य और रहस्य आज भी बरकरार है की
आखिर महाभारत मे 18 अंक का क्या रहश्य है और यह एक सोध का विषय भी हो सकता है ।
पहला संयोग : महाभारत की पुस्तक मे कुल 18
पर्व(अध्याय) हैं ।
आदि पर्व, सभा पर्व, अरयण्कपर्व, विराट पर्व,
उद्योग पर्व
, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, कर्ण पर्व , शल्य पर्व ,
सौप्तिकपर्व,
 स्त्रीपर्व शांतिपर्व , अनुशनपर्व, अश्वमेधिकापर्व, आश्रम्वासिकापर्व, मौसुलपर्व, महाप्रस्थानिकपर्व, स्वर्गारोहणपर्व  ।
दूसरा संयोग : कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को
ज्ञान दिया ।
तीसरा संयोग : महाभारत का युद्ध कुल 18 दिनो तक चला
था ।
चौथा संयोग : श्रीमद्भगवत गीता मे भी कुल 18 अध्याय
हैं ।
पंचवा संयोग : कौरवों और पांडवों की कुल सेना की
संख्या भी 18 अक्षोनि ही थी । जिसमे कौरवों के पास 11 अक्षोहिणी और पांडवों के पास
7 अक्षोहिणी सेना थी ।
छठा संयोग :   इस
युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 हैं। धृतराष्ट्र
, दुर्योधन,
दुह्शासन, कर्ण, शकुनी,
भीष्मपितामह, द्रोणचार्य, कृपाचार्य, अश्वस्थामा, कृतवर्मा,
श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीम,
अर्जुन, नकुल, सहदेव,
द्रौपदी एवं विदुर ।
संतवा संयोग : महाभारत के युद्ध के पश्चात् कौरवों
के तरफ से तीन और पांडवों के तरफ से 15 यानि कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे।

आज का श्लोक ज्ञान :
"कर्मणये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन ।
 मां
कर्मफलहेतुर्भू: मांते संङगोस्त्वकर्मणि" ।।
अर्थात : कर्म करना तो तुम्हारा अधिकार है, लेकिन उसके फल पर कभी नहीं|
कर्म को फल की इच्छा से कभी मत करो, तथा तेरा कर्म ना करने में भी कोई आसक्ति न हो|

कलयुग में नारायणी सेना की वापसी संभव है ? The Untold Story of Krishna’s ...

क्या महाभारत युद्ध में नारायणी सेना का अंत हो गया ... ? या फिर आज भी वो कहीं अस्तित्व में है ... ? नारायणी सेना — वो ...