Tuesday, 5 September 2017

भगवान श्री राम की मृत्यु ??? Kaal Chakra

       भगवान
राम की मृत्यु




जिस प्रकार इस दुनिया मे आने वाला हर एक प्राणी
अपने जीवन और मृत्यु की तारीख यमलोक मे निर्धारित कर के आता है। उसी तरह इंसान रूप
में जन्म लेने वाले ईश्वर के अवतारों का भी इस पृथ्वी पर एक निश्चित समय था
, वो समय समाप्त होने के बाद उन्हें भी मृत्यु धारण  करके अपने लोक वापस लौटना ही था। भगवान विष्णु
के महान अवतार प्रभु श्री राम के इस दुनिया से चले जाने की काफी रोचक
कहानी
है।
काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ तो आइए सुनते भगवान राम के धरती लोक से विष्णु लोक जाने की ये पौराणिक
कथा ।
पद्मपुरान मे वर्णित कथा के अनुसार एक बार एक वृद्ध
साधू भगवान राम के दरबार मे पहुंचे और उनसे अकेले मे चर्चा करने के लिए निवेदन
किया उस साधू की बात मानकर भगवान राम उन्हे एक कक्ष मे ले गए और द्वार पर लक्ष्मण
को खड़ा कर दिया और कहा कि यदि उनके और उस साधू की चर्चा को किसी ने भंग करने की
कोशिश की तो उसे मृत्युदंड प्राप्त होगा।
लक्ष्मण
जी
ने अपने ज्येष्ठ भ्राता की आज्ञा का
पालन करते हुए दोनों को उस कमरे में एकांत में छोड़ दिया और खुद बाहर पहरा देने
लगे। वह
साधू कोई और नहीं बल्कि यम लोक से भेजे गए यम देव थे जिन्हें प्रभु राम को यह बताने भेजा
गया था कि उनका धरती पर जीवन पूरा हो चुका है और अब उन्हें अपने लोक वापस लौटना
होगा।
उनके इस तरह वेश बदलकर आने का कारण हनुमान जी थे जिनसे यमदेव
भयभीत रहते थे।
अभी यम देव जो साधू के वेश मे थे, और भगवान राम की चर्चा चल ही रही थी की अचानक द्वार पर ऋषि दुर्वासा आ गए
और भगवान राम से शीघ्र मिलने की इक्षा प्रकट की । लक्ष्मण जी ने उनसे क्षमा मांगते
हुए ये कहा की – भगवान राम अभी आपसे नहीं मिल सकते आप थोड़ी प्रतीक्षा कीजिये । यह
सुनकर दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और उन्होने कहा की – श्री राम को उनके आने की
सूचना दो वरना मै श्राप दे कर राम लक्ष्मण भरत सहित इस राज्य का विनाश कर दूंगा ।
दुर्वासा ऋषि की बात सुनकर लक्ष्मण जी चिंता मे पद
गए उन्हे ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिरकार अपने भाई की आज्ञा का पालन करें या फिर इस
समस्त साम्राज्य को श्राप मिलने से बचाएं। अंततः उन्होने सोचा की ऋषि के श्राप
पाकर सभी की मृत्यु से अच्छा है अकेले मेरी ही मृत्यु हो । और फिर वो उस कक्ष मे
चले गए जहां भगवान राम और उस साधू की बातचित हो रही थी और वह जाकर उन्होने  दुर्वासा ऋषि के आने की सूचना भगवान राम को दी।
तब भगवान श्री राम साधू रूपी काल को विदा कर के ऋषि
दुर्वासा का सत्कार करते हैं। भगवान श्री राम धर्म संकट में पड़ गए
, अब एक तरफ अपने फैसले के अनुसार उन्हे अपने भाई लक्ष्मण को मृत्यु दंड
देना था क्यूँ की उन्होने भगवान राम और उस साधू का एकांत भंग किया था।   और
दूसरी तरफ वो भाई के प्रेम से निस्सहाय थे। तब ऋषि वशिष्ठ जी श्रीराम से कहा आप अपने
भाई को मृत्यु दंड देने के स्थान पर राज्य एवं देश से बाहर निकाल दीजिये
, दोस्तों उस युग में देश निकाला मिलना मृत्यु दंड के बराबर ही माना जाता
था। यह सुनकर भगवान राम ने लक्ष्मण जी का परित्याग कर दिया।
लेकिन लक्ष्मण जी जो कभी अपने भाई राम के बिना एक
क्षण भी नहीं रह सकते थे उन्होंने इस धरती को ही छोड़ने का निर्णय ले लिया। वे सरयू
नदी के पास गए और संसार से मुक्ति पाने की इच्छा रखते हुए  नदी के भीतर चले गए। इस तरह लक्ष्मण जी के जीवन
का अंत हो गया
, लक्ष्मण जी के सरयू नदी के अंदर जाते ही वे
अनंत शेष नाग  के अवतार में बदल गए और
विष्णु लोक चले गए।
अपने भाई के चले जाने से प्रभु श्री राम काफी उदास
हो गए। जिस तरह राम के बिना लक्ष्मण नहीं
, ठीक उसी तरह
लक्ष्मण के बिना राम का जीना भी प्रभु राम को उचित ना लगा। उन्होंने भी इस लोक से
चले जाने का विचार किया
, यह विचार जानकर हनुमान, जामवंत, विभिसन सहित सभी वानर वहाँ आ गए और फिर
भगवान श्री राम
, भरत और सतृघन ने सरयू नदी मे प्रवेश किया और
उसी जल मे विलीन हो गए।
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