Monday, 11 September 2017

क्यों मारा भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु की छाती में लात || Kaal Chakra

क्यों
मारा भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु की छाती में लात




कालांतर मे एक बहुत ही महान ऋषि हुए थे जिनका नाम
था महर्षि  भृगु इनका जन्म 5000 ईसा पूर्व
मे हुआ था। महर्षि भृगु की महानता का अंदाज़ा इस बात से लगया जा सकता है की उनके
द्वारा रचित ज्योतिष ग्रंथ भृगु संहिता आज भी हमारे लिए अनुकरनिए है। महर्षि के  इस संहिता द्वारा किसी भी इंसान के तीन जन्मों
का फल निकाला जा सकता है। इस ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करने वाले सूर्य
, चन्द्रमा, मंगल, बुद्ध,
बृहस्पति,शुक्र  शनि आदि ग्रहों और नक्षत्रों पर आधारित वैदिक
गणित के इस वैज्ञानिक ग्रंथ के माध्यम से जीवन और कृषि के लिए वर्षा आदि की भी
भविष्यवाणियां की जा सकती हैं। परंतु आज हम 
महर्षि भृगु के जीवन काल से जुड़ी एक ऐसे घटना का वर्णन करने जा रहे हैं
, जब उन्होने भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैरों से प्रहार कर  दिया था। तो ऐसा क्या हुआ था जिसके कारण महर्षि
को इतना घोर पाप करना पड़ा
? इतने बड़े पाप का भागीदार कौन कौन
था
? और महर्षि को इस पाप की क्या सज़ा मिली ?
ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ। अगर आप इस विडियो को पूरा देखते हैं तो मै आशा करता हूँ की आप हमारे इस
चैनल को जरूर सुब्स्कृबे करेंगे । आइए सुनते हैं महर्षि भृगु की जीवन गाथा ।
पद्मपूरण के उपसंहार खंड मे वर्णित कथा के अनुसार
मनदारचल पर्वत पर हो रहे यज्ञ मे ऋषि मुनियों मे इस बात पर विवाद छिड़ गया की
त्रिदेवों यानि भगवान ब्रह्म भगवान विष्णु और भगवान शिव मे से सबसे श्रेस्ठ देव
कौन हैं
? इस विवाद के अंत मे ये निष्कर्ष निकला की जो देव सतोगुणी होंगे वही
श्रेस्ठ कहलएंगे। इसके परीक्षण के लिए भृगु ऋषि को नियुक्त किया गया।
त्रिदेवों की परीक्षा लेने के क्रम मे भृगु ऋषि
सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे- वहाँ जाकर वो बिना कारण ही ब्रह्मा जी के ऊपर क्रोधित
हो गए और ये कहने लगे की आप सभी ने मेरा यहाँ अनादर किया है । यह देख ब्रह्मा जी
को भी क्रोध आ गया और उन्होने कहा- तुम अपने पिता से ही आदर की आशा रखते हो भृगु
तुम कितने भी बड़े विद्वान क्यूँ ना हो जाओ तुम्हें अपने से बड़ों का आदर करना नहीं
भूलना चाहिए । इस पर भृगु ऋषि ने कहा – क्षमा कीजिये भगवन लेकिन आप क्रोधित हो गए
और मै तो बस इतना ही देख रहा था की आपको क्रोध आता है या नहीं। इतना कह कर भृगु
ऋषि महादेव की परीक्षा ले के लिए कैलाश की ओर चल दिये ।
कैलाश पहुँच कर उन्हे पता चला भगवान शिव अपने ध्यान
मे लिन हैं उन्होने नंदी से कहा – जाओ जा कर भगवान शिव को उनके आने की सूचना दो ।
नंदी ने कहा – मै ऐसा नहीं कर सकता भगवान शिव
क्रोधित हो जाएंगे। इसपर भृगु ऋषि स्वयं ही उस स्थल पर चले गए जहां भगवान शिव
ध्यान मे लिन थे और वहाँ पहुँच कर भगवान शिव का अहवाहन किया और बोले कैलाश हो या
कहीं कभी ऋषि मुनियों के लिए तो द्वार सदैव खुले होते हैं।
शिव जी का ध्यान भंग हो गया और वो क्रोधित हो गए-
भगवान शिव ने कहा भृगु तुम्हारी मौत तुम्हें यहा तक ले आयी है आज तुम्हारी मृत्यु
निश्चित है मै अभी तुम्हें भष्म कर देता हूँ। तभी माता पार्वती वहाँ आ गईं और
भगवान शिव से भृगु ऋषि के प्राणो की रक्षा के लिए नीवादन किया और ये बताया की इसमे
भृगु ऋषि की कोई गलती नहीं है वो तो बस पृथ्वी के सभी ऋषि मुनियों का मार्गदर्शन
करना चाहते हैं ।
यह सब जान कर भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया और
उन्होने भृगु ऋषि को बताया की क्रोध तो मेरा स्थायी भाव है।
इसके बाद भृगु ऋषि वैकुंठ पहुंचे, वहाँ पहुँच कर उन्होने देखा भगवान विष्णु निद्रा की अवस्था मे थे । भृगु
ऋषि को लगा की उन्हे आता देख भगवान विष्णु जानबूझकर सोने का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने
अपने दाहिने पैर का आघात श्री विष्णु जी की छाती पर कर दिया। भगवान विष्णु की
निद्रा भंग हो गई
, उठते ही उन्होने महर्षि का पैर पकड़ लिया
और कहा भगवन् ! मेरे कठोर वक्ष से आपके कोमल चरण में चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु
लज्जित भी हुए और प्रसन्न भी
, इसके बाद उन्होंने श्रीहरि
विष्णु को त्रिदेवों में श्रेष्ठ सतोगुणी घोषित कर दिया।
क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।



स्मृतिभ्रंशाद्
बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति
क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति
विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से
वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।।
दोस्तों भृगु ऋषि के जीवन की ये प्रेरणादायी कहानी
अगर आपको पसंद आयी है तो हमारे इस विडियो को लाइक जरूर करें
, अगर आपके पास हमारे हिन्दू देवी देवताओं से जुड़ा हुआ कोई प्रश्न है तो
हमे कमेंट बाक्स में बताए। हम उस प्रश्न का जवाब अवश्य देंगे ।
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