Saturday, 27 November 2021

भगवान शिव और परशुराम जी बीच युद्ध क्यूँ हुआ था ? Bhagwan Shiva vs Parshuram

परशुराम और शिव जी का युद्ध

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनुमांश्च विभीषण:

कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।

अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति परशुराम भी चिरजीवी हैं। भगवान परशुराम तभी तो राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी उनके होने की चर्चा होती है। कल्प के अंत तक वे धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे।

परशुप्रतीक है पराक्रम का। रामपर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं, एक व्याख्या यह है कि परशुमें भगवान शिव समाहित हैं और राममें भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए परशुराम हरिहरस्वरूप हैं।

परंतु पुरानो मे शिव जी और पारसुरम जी के बीच युद्ध का भी वृतांत मिलता है तो आकीर क्यू हुआ था यह युद्ध भगवान शिव ने इस युद्ध के मद्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते थे और इस युद्ध का इस पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ा

परशुराम उन दिनों शिव से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. भगवान शिव अपने शिष्य को परखने के लिए परशुराम की समय-समय पर परीक्षा लिया करते थे. एक दिन शिव ने परशुराम की परीक्षा लेने के लिए निति के विरुद्ध कुछ कार्य करने का आदेश दिया. पहले परशुराम को कुछ संकोच हुआ परन्तु फिर उन्होंने भगवान शिव से साफ़ साफ़ कह दिया की वे वह कार्य नहीं करेंगे जो निति के विरुद्ध हो. वह लड़ने को खड़े हो गए और समझाने बुझाने से भी नहीं माने. महादेव शिव से ही भीड़ गए.

भगवान शिव और परशुराम दोनों के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ गया. परशुराम ने पहले बाणों से शिव पर प्रहार किया जो शिव ने अपने त्रिशूल से काट डाले. अंत में अति क्रोधित परशुराम ने अपने फरसे का प्रयोग किया. परशुराम ने महादेव शिव पर उनके ही दिए फरसे से प्रहार कर दिया. क्योकि शिव को अपने अस्त्र का मान रखना था था उन्होंने उस अस्त्र के प्रहार को अपने ऊपर ले लिया. भगवान शिव के मष्तक पर बहुत गहरी चोट लगी. भगवान शिव के एक नाम खण्डपरशु का यही रहस्य है.

भगवान शिव ने परशुराम के फरसे के उस प्रहार का बुरा नहीं माना बल्कि परशुराम को अपने गले से लगा लिया. और कहा अन्याय करने वाला चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, धर्मशील व्यक्ति को अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए, यह उसका कर्तव्य है.संसार में अधर्म मिटाने से मिटेगा सहने से नहीं. इसके बाद भगवान शिव ने नैतिक उपदेश देते हुए परशुराम से कहा की केवल धर्म, तप, जप, दान, व्रत, उपवास धर्म के लक्षण नहीं है . अन्याय अधर्म से लड़ना भी धर्म साधना का एक हिस्सा है.

Monday, 27 September 2021

वैज्ञानिकों ने भी माना जिन्दा है हनुमान जी ! मिल गया सबूत || Is Lord Han...

क्या हनुमान जी सच में जीवित हैं?

 

हिंदू धर्म के सबसे माने हुए भगवान हनुमान की करोड़ों भक्‍त पूजा करते हैं। उनपर विश्‍वास करते हैं, आस्‍था रखते हैं। हर युग में इनसे भक्‍तों ने साहस, पराक्रम, ताकत, मासूमियत, करुणा और निस्‍वार्थ होने की सीख ही ली है। इनको लेकर सिर्फ इतना ही सच नहीं है। इनसे जुड़ा एक सच ये भी है हिंदुओं के ये भगवान आज भी जीवित हैं। आइए, गौर करें उन संकेतों पर जो ये साबित कर रहे हैं कि आज भी भगवान हनुमान अस्‍तित्‍व में हैं।

 

ऐसे हैं प्रमाण

इसका सबसे पहला प्रमाण तो ये ही है कि हममें से हर किसी ने भगवान राम और भगवान श्री कृष्‍ण के धरती से जाने की कहानियां सुनी हैं, लेकिन आज तक क्‍या किसी ने हनुमान के यहां से जाने की कोई कहानी सुनी है। न ही तो इससे जुड़ी किसी जानकारी का जिक्र किसी हिंदू ग्रंथ में किया गया है। इसके अलावा और भी हैं कुछ तथ्‍य हैं, जो ये साबित करते हैं कि आज भी भगवान हनुमान धरती पर अस्‍तित्‍व में हैं।

 

1 . चिरंजीवी हैं हनुमान

कहा जाता है कि हनुमान जी चिरंजीवी हैं। चिरंजीवी का हिंदी में मतलब होता है शाश्‍वत। इसका मतलब होता है, हमेशा अस्‍तित्‍व में रहने वाला। कुल मिलाकर हनुमान जी को हिंदू पुराणों के अनुसार इस धर्म के सभी भगवानों में से एकमात्र हमेशा धरती पर रहने वाला भगवान माना गया है। बताया जाता है कि वह इस धर्म के आठ महान शाश्‍वत किरदारों में से एक हैं।

 

2 . इनके जाने की कहानी नहीं है पुराणों में भी

बंदरों के भगवान, जिनके बारे में हम रामायण और महाभारत के समय से अपने इर्द-गिर्द होने को लेकर सुनते आए हैं। इनके अस्‍तित्‍व को हम त्रेता युग में भगवान राम के साथ होने से लेकर जानते हैं। इनके होने के प्रमाण द्वापर युग तक के मिले हैं, जो भगवान श्रीकृष्‍ण का समय था। अभी भी कलयुग में इनके होने के प्रमाण मिले हैं।

 

3 . हनुमान मंदिरों के आसपास हमेशा मिलेंगे बंदर

ये बात भी महज इत्‍तेफाक नहीं हो सकती कि ज्‍यादातर हनुमान मंदिरों के बाहर बंदरों की भीड़ लगी होती है। न यकीन हो तो किसी भी बड़े या छोटे हनुमान मंदिर के पास जाकर देखिए। आपको वहां बंदरों का झुंड बेहद आसानी से उछलकूद करता नजर आ जाएगा। इसका नजारा आप खुद ही इनके मंदिर के पास जाकर देख सकते हैं।

4 . इस बात के भी हैं साक्ष्‍य

इस बात के भी जबरदस्‍त साक्ष्‍य हैं कि पवनपुत्र का अस्‍तित्‍व अभी भी दुनिया में बरकरार है, लेकिन वह आसानी से सामान्‍य लोगों की आंखों से नजर नहीं आते। वैदिक पुराणों में बताया गया है कि उनके साक्षात दर्शनों के लिए सच्‍ची भक्‍त और भगवान राम से सच्‍ची लगन की जरूरत पड़ती है।

 

5 . राम नाम करेगा इनके दर्शन में मदद

कहते हैं कि जहां कहीं भी भगवान राम का नाम लिया जाता है, हनुमान जी की उपस्‍थित वहां पर जरूर होती है। एक सच्‍चा राम भक्‍त जब पूरी श्रद्धा उन्‍हें याद करता है, तो उसे भगवान हनुमान दर्शन जरूर देते हैं और हमेशा उसके आसपास रहते हैं। इस कहानी में भी उतनी ही सत्‍यता है, जितनी अन्‍य साक्ष्‍यों में।

Thursday, 9 September 2021

हनुमान जी और नागराज वासुकि के बीच महाप्रलयंकारी युद्ध क्यों हुआ ? Lord H...

हनुमान जी और नाग वशूकी युद्ध

हनुमान वानर योनि के होकर भी, मनुष्य की भाँति, अपनी बौद्धिक, मानसिक क्षमताओं का विकास करने में सफल रहे और अपनी लगन, श्रद्धा, कर्मठता, सज्जनता, ब्रह्मचर्य, साहस, वीरता, सेवा आदि सद्गुणों से देवताओं की भाँति पूजित हुए। हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। हनुमान जी भक्तों के हित के लिए सतत संकल्पित हैं। भक्त जिस हाल में भी उनको पुकारता है वे उसके संकटों को दूर करने में लग जाते हैं। भक्त की एक भावभरी पुकार से भी वे उसकी आराधना को स्वीकार कर लेते हैं. हनुमानजी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता निरअंहकारिता थी ।जिसका आशय है कि वो तो इतने ताकतवर थे कि वो सूरज तक को खा गये थे,वो सब कुछ कर सकते थे,मगर कभी भी उन्होंने अंहकार नहीं किया ।इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब उन्होंने सहस्त्र योजन समुद्र को पारकरके,सीताजी का पता लगा लिया,लंका दहन कर दिया और माँ सीता की अँगुठी लाकर अपने प्रभु राम को सीताजी के विषय में अवगत कराया और फिरभी श्रीरामजी के पूछने पर वो बार-बार यही कहते रहे कि ये तो मैंने नहीं किया,ये तो सब आपने किया है प्रभु।ये सब आपकी कृपा है।इसमें मेरा कोई योगदान नहीं है।हम सभीको हनुमानजी से ये सीख लेनी चाहिए कि अपने अन्दर के अंह भाव को जला दें और हमेशा विनम्र होकर रहना सीखें। पौराणिक पत्रों मे एक पत्र है नाग वासुकि  धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार समुद्रमंथन के समय नागराज वासुकी की नेती बनाई गई थी। त्रिपुरदाह के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।

दोस्तों क्या आपको पता रामायण काल मे एक वक्त ऐसा भी आया था जब नाग वासुकि और hanuman ji के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था आखिर कौन विजयी हुआ इस युद्ध मे ? वशूकी नाग और hanuman ji मे कौन अधिक शक्तिशाली हैं ?

बात तब की है जब सुंदरकांड में हनुमानजी सीता की खोज में समुद्र पार कर रहे थे, तब उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सुरसा और सिंहिका नाम की राक्षसियों ने हनुमानजी को समुद्र पार करने से रोका था,हनुमानजी ने समुद्र पार करते समय सुरसा से लड़ने में समय नहीं गंवाया। सुरसा हनुमान को खाना चाहती थी। उस समय हनुमानजी ने अपनी चतुराई से पहले अपने शरीर का आकार बढ़ाया और अचानक छोटा रूप कर लिया। छोटा रूप करने के बाद हनुमानजी सुरसा के मुंह में प्रवेश करके वापस बाहर आ गए। हनुमानजी की इस चतुराई से सुरसा प्रसन्न हो गई और रास्ता छोड़ दिया।

आगे चलते हुए उनका सामना नाग राज वासुकि से हुआ, नागराज वासुकि ने देखा की आज तक इस समुद्र को कोई पर नहीं कर पाया है फिर यर कौन वानर है जो उड़ता चला जा रहा है इसी कौतूहल वश नाग राज वासुकि हनुमान जी के समक्ष प्रकट हो गए और उनसे सवाल किया आप कौन हैं और कहा जा रहे हैं ... हनुमान जी यहाँ भी समय नही गवाना चाहते थे और उन्होने ने सोचा की ये कोई साधारण नाग है उन्होने बिना परिचय दिये ही आगे बढ़ गए। नाग राज वशूकी को क्रोध आ गया उन्होने हनुमान जी को अपने पुंछ मे बांध लिया। हनुमान जी समझ गए ये कोई साधारण नाग नहीं है हनुमान जी ने अपनी शक्ति दिखाई और किसी तरह नाग राज वशूकी के बंधन से खुद को मुक्त किया। नागराज वासुकि और हनुमान जी के बीच घमासान युद्ध प्रारम्भ हो गया। उसके बाद नागराज वासुकि ने कई बार हनुमान जी को बांधने का प्रयास किया लेकिन हनुमान जी हर बार उनके प्रहार से बच निकलते। हनुमान जी ने अपनी गदा का प्रहार नाग राज वासुकि पर किया लेकिन उस भयंकर गदा प्रहार के बावजूद वशूकी पर इसका असर नहीं हुआ वशूकी नाग की शक्ति का नदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं की उनही को समुद्रमन्थन के दौरान मंदरचल पर्वत मे बांध कर समुद्रमन्थन किया गया था। हनुमान जी और नाग वासुकि का युद्ध अपने चरम पर पहुँच गया था तभी भगवान शिव का आगमन हुआ... नाग वशूकी पर भगवान शिव की असीम कृपा है और हनुमान जी भगवान शिव के अंसअवतार हैं इसीलिए दोनों के इस युद्ध को रोकने के लिए भगवान शिव स्वयं उपस्थित हुए तब जा कर हनुमान जी को और नागराज वशूकी को एक दूसरे के विषय मे ज्ञात हुआ। नागराज वासुकि ने हनुमान जी से माफी मांगी और उनका रास्ता छोड़ दिया हनुमान जी अपने गंतव्य की ओर आगे बढ़े.....   

 

 

Tuesday, 24 August 2021

प्रेम क्या है ?? - By Lord Krishna || krishna janmashtami 2021 || #krish...

प्रेम क्या है

मैंने लोगों को कहते सुना है की वो प्रेम में हैं उन्हें प्रेम हुआ है । हालाँकि अधिकांशतः लोगों को प्रेम नहीं होता बस प्रेम होने का भ्रम मात्र होता है । प्रेम आपके चित्त को बदलता है जब आप प्रेम में होते हैं तो आप पूर्ण रूप से प्रेम में ही होते हैं । प्रेम बहुत व्यापक होता है ये केवल उस व्यक्ति तक ही सीमित नहीं रहता जिससे आपको प्रेम हुआ है वरन ये आपके चरो तरफ़ हर किसी में फैल जाता है । अगर आप कहते है की आप प्रेम में हैं और किसी से भी घृणा करते हैं तो जानिए आप भ्रम में हैं की आप प्रेम में हैं । अगर किसी के लिए आपमें प्रेम जागृत हो जाता है तो ये प्रेम आपकी पूरी दुनिया को महका देगा । केवल जिसके लिय प्रेम जगा उससे ही आपकी संवेदना नहीं जुड़ेगी बल्कि आपकी. संवेदना हर किसी से जुड़ जाएगी । आपको पूरी सृष्टि से प्रेम हो जाएगा ,हर कोई जीवित हो या कोई निर्जीव कण. आपको हर कोई प्रेम से भरा लगेगा और जिससे कारण ये प्रेम जागृत हुआ है वो व्यक्ति विशेष आपकी प्रेम से भरी सृष्टि का स्वामी हो जाएगा ।

आप पूछेंगे की ठीक जिससे प्रीत लगी वो स्वामी हो गया , पूरी सृष्टि प्रेम मय हो गयी तो मैं क्या हुआ ? आप फिर रह ही नहीं जाएँगे । प्रेम का सबसे पहला काम वो आपके मैं को मार देता है । मैं यानी अहंकार । देखिए हर इंसान की ये प्रवृत्ति होती है की वो अपने आप को बहुत प्रेम करता है । अपने आपको सबसे पहले रखता है अपनी चिंता सबसे पहले करता है । जब आपको प्रेम होता है तो आपको अपने से भी अधिक मूल्य. उसे देना होता है जिससे आपको प्रेम है । उसकी ख़ुशी में आपकी ख़ुशी हो जाती है फिर आपकी ख़ुशी का कोई अस्तित्व कहाँ रह जाता है । किसी और को अपने से अधिक महत्व आप तब ही दे पाएँगे जब आपका मैं यानी अहंकार नाश हो जाय।

Friday, 13 August 2021

क्या हुआ जब हनुमान जी और वसुदेव पौंड्रिक के बीच हुआ महाप्रलयंकारी युद्ध ...

हनुमान और पौंडरिक युद्ध

कृष्ण एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं। वो एक सज्जन पुरुष हैं, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं। क्या आपको पता है कृष्ण के काल मे ही एक ऐसा मानव भी था जो स्वयं को कृष्ण कहता था उसका नाम था पौंडरिक । भगवान कृष्ण की नकल करने के कारण ही एक बार उसका सामना भगवान हनुमान से हुआ था आइए जानते हैं क्या जब भगवान हनुमान और पौंडरिक के बीच हुआ महाभ्यंकर युद्ध। कौन विजयी हुआ इस युद्ध में ? पौंडरिक और हनुमान जी के बीच कौन अधिक शक्तिसली था ?

 चुनार देश का प्राचीन नाम करुपदेश था। वहां के राजा का नाम पौंड्रक था। कुछ मानते हैं कि पुंड्र देश का राजा होने से इसे पौंड्रक कहते थे। कुछ मानते हैं कि वह काशी नरेश ही था। चेदि देश में यह पुरुषोत्तमनाम से सुविख्यात था। इसके पिता का नाम वसुदेव था। इसलिए वह खुद को वासुदेव कहता था। यह द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित था। कौशिकी नदी के तट पर किरात, वंग एवं पुंड्र देशों पर इसका स्वामित्व था। यह मूर्ख एवं अविचारी था।

पौंड्रक को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि असल में वही परमात्मा वासुदेव और वही विष्णु का अवतार है, मथुरा का राजा कृष्ण नहीं। कृष्ण तो ग्वाला है। पुराणों में उसके नकली कृष्ण का रूप धारण करने की कथा आती है।

 

राजा पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता था। एक दिन उसने भगवान कृष्ण को यह संदेश भी भेजा था कि पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर उनका उद्धार करने के लिए मैंने वासुदेव नाम से अवतार लिया है। भगवान वासुदेव का नाम एवं वेषधारण करने का अधिकार केवल मेरा है। इन चिह्रों पर तेरा कोई भी अधिकार नहीं है। तुम इन चिह्रों एवं नाम को तुरंत ही छोड़ दो, वरना युद्ध के लिए तैयार हो जाओ।

उस वक्त तो भगवान कृष्ण ने उसके इस संदेश को नजरंदाज कर दिया । उन्हीं दिनो आकाश मे उड़ते हनुमान जी की नजर उस नकली कृष्ण पर पड़ी उन्होने देखा की एक व्यक्ति भगवान कृष्ण की वेश भूषा धरण किए हुए है और अपनी प्रजा पर अत्याचार किए जा रहा है । हनुमान जी को बड़ी हैरानी हुई वो नीचे आए और दूर से सबकुछ देख कर समझ गए की यह मूरख खुद को भगवान कृष्ण समझ रहा है और सभी को यही कह रहा है की वो उसे ही कृष्ण माने । हनुमान जी उसके पास गए और बोले अरे दुष्ट मानव तू खुद को कृष्ण बोल रहा है और अपनी प्रजा पर अत्याचार कर रहा है कृष्ण कभी ऐसा नही करते हैं और अगर कृष्ण को पता चल गया की ऐसा कुछ हगो रहा है तो वो तुझे दंड देंगे । यह सुनकर पौंडरिक आग बबूला हो गया और बोला – अरे वानर तू कौन है और तुझमे इतनी हिम्मत है तो मुझसे युद्ध कर तुझे पता लग जाएगा की कौन असली कृष्ण है ।

हनुमान जी और पौंडरिक दोनों के बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया हनुमान जी ने पौंडरिक को अपनी पुंछ मे लपेट कर भूमि मे पटक दिया पौंडरिक गुस्से मे उठा और जैसे ही प्रहार करने के लिए आगे बढ़ा हनुमान जी के मुक्के के एक हल्के से प्रहार से पुनः भूमि मे गिर गया पौंडरिक जितनी बार उठाने की कोशिश करता उतनी बार हनुमान जी मुक्का मरते और वो भूमि मे गिर जाता । जब वो नही उठ पाया तब हनुमान जी ने कहा की मै चाहता तो तुम्हारा वध यही कर सकता हूँ लेकिन तुम्हारी मृत्यु मेरे हाथों ने नहीं लिखी तुम्हारा वध वही करेंगे जिनका वेश तूने धरण कर रखा है । इतना कह कर हनुमान जी वहाँ से चले गए ।

बहुत समय तक श्रीकृष्ण उसकी बातों और हरकतों को नजरअंदाज करते रहे, बाद में उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुईं। उन्होंने प्रत्युत्तर भेजा, ‘तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करूंगा।'

यह सुनकर पौंड्रक कृष्ण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी शुरू करने लगा। अपने मित्र काशीराज की सहायता प्राप्त करने के लिए वह काशीनगर गया। यह सुनते ही कृष्ण ने ससैन्य काशीदेश पर आक्रमण किया।

 

कृष्ण आक्रमण कर रहे हैं- यह देखकर पौंड्रक और काशीराज अपनी-अपनी सेना लेकर नगर की सीमा पर आए। युद्ध के समय पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मूल्यवान आभूषण आदि धारण किया था एवं वह गरूड़ पर आरूढ़ था।

नाटकीय ढंग से युद्धभूमि में प्रविष्ट हुए इस नकली कृष्णको देखकर भगवान कृष्ण को अत्यंत हंसी आई। इसके बाद में बदले की भावना से पौंड्रक के पुत्र सुदक्षण ने कृष्ण का वध करने के लिए मारण-पुरश्चरण किया, लेकिन द्वारिका की ओर गई वह आग की लपट रूप कृत्या ही पुन: काशी में आकर सुदक्षणा की मौत का कारण बन गई। उसने काशी नरेश पुत्र सुदक्षण को ही भस्म कर दिया।बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए।

 

Monday, 9 August 2021

भगवान श्री कृष्ण के सबसे बड़ा शत्रु कौन था ? Krishna biggest Enemy

भगवान कृष्ण का सबसे बड़ा शत्रु कौन था ?

कृष्ण एक किंवदंती, एक कथा, एक कहानी। जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत! प्रेम को परिभाषित करने और उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा, वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए। मां के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं, पर कितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर से भी पकड़ो कि यह अंक में समा जाए, पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है। दोस्तों आज इस विडियो मे हम भगवान कृष्ण के शत्रुओं के बारे मे बात करते हैं और ये एसएमजेएचने का प्रयास करते है की भगवान कृष्ण का सबसे खतरनाक शत्रु कौन था ??

 

कंस श्रीकृष्ण की मां देवकी के भाई कंस श्रीकृष्ण के सबसे बड़े दुश्मन थे. कंस का अपनी बहन के प्रति लगाव था, लेकिन जब भविष्यवाणी हुई कि देवकी के गर्भ से पैदा हुआ बालक ही कंस का वध करेगा तो उसने पहले सात बच्चों की हत्या कर दी. जब कृष्ण का जन्म हुआ तो पिता वासुदेव उन्हें दबे पांव मथुरा में यशोदा के यहां छोड़ आए. कंस को इसकी भनक तक नहीं लगी. आगे चलकर श्रीकृष्ण ही कंस की मौत का कारण बने.

जरासंध कंस की मौत के बाद उनके ससुर जरासंध कृष्ण की जान के दुश्मन बन गए. जरासंध बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था. श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने के लिए भीम और अर्जुन की सहायता ली. तीनों हुलिया बदलकर जरासंध के पास पहुंचे. लेकिन उसे इस ढोंग के बारे में पता चल गया. अंत में भीम ने उसे कुश्ती करने की चुनौती दे डाली. भीम को पता था कि जरासंध को हराना इतना आसान नहीं है. श्रीकृष्ण ने जैसे ही एक तिनके के दो हिस्से कर उन्हें विपरीत दिशाओं में फेंका भीम इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध को बीच में चीरकर उसके जिस्म के दोनों हिस्सों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया.

कालयवन कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया था. तभी श्रीकृष्ण ने उसे संदेश भेजा कि युद्ध सिर्फ कृष्ण और कालयवन में होगा. कालयवन ने स्वीकार कर लिया. कालयवन को शिव का वरदान मिला था, इसलिए उसे कोई नहीं मार सकता था. युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण मैदान छोड़कर भाग निकले और कालयवन उनके पीछे एक गुफा में चला गया. गुफा में सो रहे राजा मुचुकुंद को कृष्ण ने अपनी पोशाक से ढक दिया. कालयवन ने जैसे ही मुचुकुंद को कृष्ण समझकर उठाया उनकी नजर पड़ते ही वो भस्म हो गया. मुचुकुंद को वरदान मिल रखा था कि जब भी कोई उसे नींद से जगाएगा, उनकी नजर पड़ते ही वो भस्म हो जाएगा.

शिशुपाल शिशुपाल 3 जन्मों से श्रीकृष्ण से बैर-भाव रखे हुआ था. एक यंज्ञ में सभी राजाओं को बुलाया गया. ये यज्ञ श्री कृष्ण और पांडवों ने रखा था. यज्ञ के दौरान शिशुपाल श्रीकृष्ण को अपमानित करने लगा. ये सुनकर पांडव गुस्सा गए और उसे मारने के लिए खड़े हो गए. कृष्ण ने उन्हें शांत किया और यज्ञ करने को बोला. श्रीकृष्ण ने शिशुपाल से कहा कि उन्होंने 100 अपमानजनक शब्दों को सहने का प्रण लिया हुआ है और वो अब पूरे हो चुके हैं. शांत बैठो, इसी में तुम्हारी भलाई. है.' जिसके बाद शिशुपाल ने जैसे ही गाली दी तो श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर गिर गया.

पौंड्रक खुद को श्रीकृष्ण बताने वाले राजा पौंड्रक की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. नकली सुदर्शन चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता था. पौंड्रक की हर गलतियों के लिए लोग श्रीकृष्ण को जिम्मेदार ठहराने लगे थे. इस बीच पौंड्रक ने श्रीकृष्ण को युद्ध की चुनौती दे डाली. इसके बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए.

Monday, 2 August 2021

भगवान शिव का जन्म कैसे हुआ ? भगवान शिव के माता पिता कौन हैं ? सबसे बड़ा ...

अजन्मे शिव के जन्म का रहस्य

शिव कौन हैं? क्या वे भगवान हैं? या बस एक पौराणिक कथा? या फिर शिव का कोई गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो खोज रहे हैं? भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के सबसे अहम देव, महादेव शिव, के बारे में कई गाथाएँ और दंतकथाएं सुनने को मिलती हैं। क्या वे भगवान हैं या केवल हिन्दू संस्कृति की कल्पना हैं? या फिर शिव का एक गहरा अर्थ है, जो केवल उन्हीं के लिए उपलब्ध है जो सत्य की खोज में हैं? भगवान शिव अजन्मा और अविनाशी कहे जाते हैं। शिवपुराण में कथा है कि ब्रह्मा विष्णु भी इनके आदि और अंत का पता नही कर पाए थे। लेकिन इनके जन्म की भी एक रोचक कथा है, इस कथा का उल्लेख बहुत कम मिलता है इसलिए कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। तो आइए जानें भगवान शिव के जन्म की अद्भुत कथा।

 

त्रिदेवों में भगवान शंकर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता, भगवान विष्णु संरक्षक और भगवान शिव विनाशक की भूमिका निभाते हैं. त्रिदेव मिलकर प्रकृति के नियम का संकेत देते हैं कि जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश भी होना तय है. इन त्रिदेव की उत्पत्ति खुद एक रहस्य है. कई पुराणों का मानना है कि भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु शिव से उत्पन्न हुए. हालांकि शिवभक्तों के मन में सवाल उठता है कि भगवान शिव ने कैसे जन्म लिया था?

भगवान शिव स्वयंभू है जिसका अर्थ है कि वह मानव शरीर से पैदा नहीं हुए हैं. जब कुछ नहीं था तो भगवान शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी उनका अस्तित्व रहेगा. भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है जिसका अर्थ हिंदू माइथोलॉजी में सबसे पुराने देव से है. वह देवों में प्रथम हैं. भगवान ब्रह्मा, विष्णु और भगवान महेश, इन तीनों देवताओं का जन्म अपने आपमें एक महान रहस्य है। कई पुराणों का कहना है कि ब्रह्मा और विष्णु शिव से पैदा हुए थे। लेकिन पुराण ही इस मत को खंडित कर देते हैं और सवाल लाकर खड़ा कर देते हैं कि शिव का जन्म फिर कैसे हुआ था। इस विषय में शिव पुराण की बातों पर अधिक विश्वास किया जाता है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू है अर्थात (सेल्फ बॉर्न) माना गया है। शास्त्रों में इसको लेकर कहा गया कि वह वहां था, जब कुछ भी और कोई भी नहीं था और वह सब कुछ नष्ट हो जाने के बाद भी रहेगा।इसीलिए वह आदि देवहैं। इन्हीं आदि देव से अखिल ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति बताई गयी है। जो सभी देवों में प्रथम हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के जन्म के बाद दोनों में बहस हो गई कि कौन अधिक श्रेष्ठ हैं। अचानक, कहीं से एक चमकदार लिंग दिखाई दिया। उसके बाद एक आकाशवाणी हुई कि जो भी इस लिंग का आरंभ या अंत पता लगा लेगा, वह बड़ा होगा। भगवान विष्णु नीचे की ओर गए और ब्रह्मा जी ऊपर की ओर। दोनों कई वर्षों तक खोज करते रहे लेकिन उन्हें न तो उस लिंग का आरम्भ मिला और न ही अंत। भगवान विष्णु को अहसास हुआ यह ज्योतिर्लिंग एक परमशक्ति हैं जो इस ब्रह्मांड का मूलभूत कारण है और यही भगवान शिव हैं। इसके साथ ही आकाशवाणी हुई यह शिवलिंग है और मेरा कोई आकार नहीं है। मैं निरंकार हूं। भगवान शिव के जन्म के विषय में इस कथा के अलाव भी कई कथाएं हैं। दरअसल शिव के ग्यारह अवतार माने जाते हैं। इन अवतारों की कथाओं में रुद्रावतार की कथा काफी प्रचलित है। कूर्म पुराण के अनुसार जब सृष्टि को उत्पन्न करने में ब्रह्मा जी को कठिनाई होने लगी तो वह रोने लगे। ब्रह्मा जी के आंसुओं से भूत-प्रेतों का जन्म हुआ और मुख से रुद्र उत्पन्न हुए। रुद्र भगवान शिव के अंश और भूत-प्रेत उनके गण यानी सेवक माने जाते हैं।

Friday, 30 July 2021

अमरनाथ की गुफा और शिवलिंग के रहस्य, जिन्हें विज्ञान भी सुलझा नहीं पाया |...

अमरनाथ की गुफा और शिवलिंग के रहस्य, जिन्हें विज्ञान भी सुलझा नहीं पाया

अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है क्यों कि यहीं पर भगवान शिव ने माँ पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था। यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ के पानी की बूँदें जगह-जगह टपकती रहती हैं। यहीं पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूँदों से लगभग दस फुट लंबा शिवलिंग बनता है। क्या आप जानते हैं बाबा अमरनाथ की यात्रा कुछ चमत्कारी यात्रा क्यों कहा जाता है। क्या आप भी जानते हैं अमरनाथ की गुफा और उसमें बनने वाले बर्फ के शिवलिंग के रहस्य

 

बाबा अमरनाथ की गुफा में बर्फ से शिवलिंग तैयार होता है, लेकिन इस बर्फ का स्त्रोत क्या है, इसका पता आज तक नहीं चल पाया है। शिवलिंग के ऊपर चट्टानों से एक बूंद पानी नहीं गिरता। यह एक बड़ा रहस्य है कि फिर बर्फ का शिवलिंग कैसे बन जाता है।

अमरनाथ की गुफा में अंदर की बर्फ तो ठोस होती है लेकिन बाहर की बर्फ बेहद ही मुलायम और कच्ची होती है। ऐसा क्यों होता है इस बारे में आजतक कोई भी नहीं जान पाया है।

जो लोग यहां आते हैं वो काफी ज्यादा थके हुए होते हैं लेकिन जैसे ही वो बाबा बर्फानी की गुफा में प्रवेश करते हैं उनकी सारी थकान अपने आप ही दूर हो जाती है, ऐसा क्यों होता है ये कोई भी आजतक नहीं जान पाया।

एक बूंद पानी नीचे सेंटर में गिरता है और वही ‍धीरे धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है। लेकिन अब सवाल उठता है कि गर्मी में तो बर्फ पिघलना शुरू होती है तब फिर गर्मी में कैसे बनता है यह हिमलिंग?

अकबर के इतिहासकार अबुल फजल (16वीं शताब्दी) ने आइना-ए-अकबरी में उल्लेख किया है कि अमरनाथ एक पवित्र तीर्थस्थल है। गुफा में बर्फ का एक बुलबुला बनता है। जो थोड़ा-थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है और दो गज से अधिक ऊंचा हो जाता है। चन्द्रमा के घटने के साथ-साथ वह भी घटना शुरू कर देता है और जब चांद लुप्त हो जाता है तो शिवलिंग भी विलुप्त हो जाता है।

क्या यह चमत्कार या वास्तुशास्त्र का एक उदाहरण नहीं है कि चंद्र की कलाओं के साथ हिमलिंग बढ़ता है और उसी के साथ घटकर लुप्त हो जाता है? चंद्र का संबंध शिव से माना गया है। ऐसे क्या है कि चंद्र का असर इस हिमलिंग पर ही गिरता है अन्य गुफाएं भी हैं जहां बूंद बूंद पानी गिरता है लेकिन वे सभी हिमलिंग का रूप क्यों नहीं ले पाते हैं?

मान्यता है कि भगवान शिव ने अमरनाथ गुफा में ही मां पार्वती को अमरता का मंत्र सुनाया था, इसलिए हिंदू धर्म में अमरनाथ गुफा का महत्व बहुत ज्यादा है। कहा जाता है जब भगवान शिव ने पार्वती को अमरता का मंत्र सुनाया था उस समय गुफा में उन दोनों के अलावा सिर्फ कबूतरों का एक जोड़ा मौजूद था। कथा सुनने के बाद कबूतर का जोड़ा अमर हो गया था। आज भी अमरनाथ गुफा में कबूतर का वो जोड़ा दिखाई देता है। कहते हैं कि अमरनाथ की गुफ़ा में कबूतरों के इस जोड़े को जिसने भी दर्शन दे दिए उन्हें मोक्ष मिल जाता है।

Wednesday, 2 June 2021

Important Questions of Hindu Mythology | General Knowledge Questions For...

पौराणिक प्रश्नोतरी भाग 1

हिन्दुत्व केवल एक धर्म ही नहीं है, इसे एक सफल जीवन जीने के तरीके के तौर पर भी देखा जा सकता है। हिन्दू धर्म की अनेकों विशेषताएं को देखते हुए इसे सनातन धर्म की भी उपाधि दी गई है दोस्तों आज से हम पौराणिक प्रश्नोतरी की एक श्रंखला शुरू करने जा रहे हैं जिसमे आपसे रामायण महाभारत इत्यादि ग्रंथो से कुछ प्रश्न पूछे जाएंगे चलिये जानते है आप हिन्दू धर्म को कितना जानते हैं??

 

1.    इनमे में से किसे रावण की लंका का निर्माणकर्ता माना जाता है?*👇

अ -  विश्वकर्मा

ब -  कामदेव

स -  वरुण

द -  कुबेर

'विश्वकर्मा' को हिन्दू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के अनुसार निर्माण एवं सृजन का देवता माना जाता है। भारतीय संस्कृति और पुराणों में विश्वकर्मा को यंत्रों का अधिष्ठाता और देवता माना गया है। उन्हें हिन्दू संस्कृति में यंत्रों का देव माना जाता है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे।

1.    "रावण मेरे पाँव को तुमने जिस प्रकार पकड़ा है, यदि ऐसे ही श्रीराम के चरण पकड़ते तो तुम्हारा कल्याण हो जाता।" रावण से यह कथन किसने कहा था?*👇

अ -  हनुमान

ब -  अंगद

स -  सुग्रीव

द -  नील

अंगद' महाबली बालि के पुत्र थे। ये परम बुद्धिमान, अपने पिता के समान बलशाली तथा श्रीराम के भक्त थे। राम के दूत रूप में लंका जाकर अंगद ने रावण को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रावण सीता को लौटाने को राजी नहीं हुआ। लंका से लौटने से पूर्व रावण के दरबार में अंगद ने अपना पाँव जमीन पर जमाया और रावण को ललकारा कि- "यदि उसके दरबार का कोई भी योद्धा जमीन से मेरा पाँव हिला दे तो हम हार स्वीकार कर लेंगे।" मेघनाद और कुंभकर्ण सहित रावण के कई योद्धाओं ने प्रयत्न किए, किंतु कोई भी अंगद का पाँव जमीन से नहीं हिला पाया। अंत में रावण स्वयं पाँव हिलाने के लिए आया और अंगद के पाँव पकड़े, किंतु अंगद ने पाँव छुड़ा लिए और रावण से कहा- "रावण मेरे पाँव को तुमने जिस प्रकार पकड़ा है, यदि ऐसे ही श्रीराम के चरण पकड़ते तो तुम्हारा कल्याण हो जाता।

आपके लिए अगला प्रश्न

भगवान राम की पत्नी सीता किसकी पुत्री थी

राजा जनक

राजा वीरमणी

ऋषि विश्वामित्र

ऋषि कश्यप

दोस्तों इस प्रश्न का ऊतर आप हमे कमेंट बॉक्स मे बता सकते हैं अगर नही पता तो हमारे अगले पौराणिक प्रश्नोतरी का इंतज़ार कीजिये हम आप इस प्रश्न का उत्तर अवश्य देंगे।

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